महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन के चेहरे मनोज जरांगे पाटिल ने आंदोलन को और उग्र करने का ऐलान कर दिया है. राज्य के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी, पाटिल के मुख्य निशाने पर हैं. फडणवीस ने इस पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आंदोलन की आड़ में मनोज जरांगे पाटिल उनके राजनीतिक विरोधियों के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं.
सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि विपक्षी पार्टियां मराठा आरक्षण आंदोलन को और उग्र करने के लिए रणनीति बना रही हैं और साधन जुटाने की कवायद भी शुरू हो गई है. यह चर्चा तब और तेज हो गई जब उद्धव ठाकरे और राहुल गांधी की दिल्ली में मुलाक़ात हुई.
फडणवीस निशाने पर क्यों?
पिछले साल दिसंबर से ही मनोज जरांगे पाटिल ने देवेंद्र फडणवीस को निशाना बनाना शुरू कर दिया था. कहा जाता है कि पाटिल को कई नेताओं का संरक्षण प्राप्त है. इसी बीच, शिंदे और शरद पवार के बीच हुई हाल की मुलाकातों ने इस चर्चा को बल दिया. जिस तरह से फडणवीस ने उद्धव और पवार की पार्टी से टूटे हुए धड़ों को साथ लाकर सरकार बनाई है. उससे उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए भी देवेंद्र फडणवीस ही आंख की किरकिरी बने हुए हैं.
फडणवीस ने सवाल उठाया है कि मनोज जरांगे पाटिल सिर्फ उन्हें ही क्यों निशाना बना रहे हैं, जबकि मौजूदा सरकार में तीन पार्टियों के नेता शामिल हैं, लेकिन पाटिल उन नेताओं का नाम तक नहीं लेते हैं. यह सवाल सत्ता में भीतर ही एक राजनीतिक साजिश की ओर इशारा करता है.
पर्दे के पीछे से कौन कर रहा समर्थन?
महाराष्ट्र की राजनीति में करीब 6 महीने पहले हुई कुछ विपक्षी नेताओं की मुलाकातें भी चर्चा का विषय बनी हुई है. इसी बैठक में मराठा आरक्षण आंदोलन को पर्दे के पीछे समर्थन दिए जाने की रणनीति बनाई गई. शरद पवार की एनसीपी के नेता और विधायक राजेश टोपे पर पहले ही मराठा आरक्षण आंदोलन को सहायता उपलब्ध कराने के आरोप लग चुके हैं.
शरद पवार के विश्वासपात्र रहे छगन भुजबल ने भी यह आरोप लगाया है कि पवार और उनके पोते रोहित पवार ने राजेश टोपे के साथ मिलकर जरांगे पाटिल को फिर से आंदोलन शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया था. मराठा आंदोलन की सभाओं को आयोजित कराने और उसके लिए संसाधन उपलब्ध कराने को लेकर भी राजेश टोपे के करीबियों पर उंगली उठती रही है.