उत्तर प्रदेश: राजनीति के दृष्टिकोण से देश का सबसे महत्वपूर्ण राज्य यूपी है. यहां 80 लोकसभा सीटें हैं. इस राज्य की राजनीति में कई ऐसे चेहरे हैं जिन्हें भारतीय राजनीति का धुरंधर खिलाड़ी माना जाता है. वैसे तो सूबे की राजनीति में पुरुष राजनेताओं का काफी बोलबाला रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक नाम राज्य की राजनीति में ऐसा उभर कर आया है जिनके व्यक्तित्व और राजनीतिक क्षमता से कोई भी अपरिचित नहीं है. सूबे की सियासत में अपने सौम्य छवी से जनता के दिल में जगह बनाने वाली उस राजनेता का नाम है डिंपल यादव.
यह वही डिंपल यादव हैं जिनके आते ही कार्यकर्ता और प्रदेश की जनता एकसुर में नारे लगाने लगते हैं,’ विकास की चाभी, डिंपल भाभी’ या फिर ‘भैया का विकास है, भाभीजी का साथ है'. डिंपल यादव उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी हैं. हालांकि प्रदेश की राजनीति में इससे कई अलग और स्वतंत्र रूप से उनकी राजनैतिक पहचान बन गई है. एक ऐसी राजनेता के तौर पर उनकी पहचान बनी है जिसे देखकर ही जनता की नज़र में एक भारतीय संस्कारों से युक्त पत्नी, बहू, स्त्री और राजनेता की छवि बनती है.
अब लोकसभा चुनाव में बहुत कम समय बचा है और ऐसे में डिंपल यादव की भूमिका को लेकर बातचीत होने लगी है. क्या डिंपल खुद चुनावी समर में बतौर उम्मीदवार उतरेंगी या बाहर से ही पार्टी और सपा-बसपा गठबंधन को मजबूत करेंगी. जानकारों की माने तो पार्टी को डिंपल यादव इस बार भी बाहर से मजबूत करने की कोशिश करेंगी. साथ ही पार्टी को उनके भारतीय स्त्री वाले छवि से कितना फायदा होगा?
वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता वह लोकसभा चुनाव लड़ेंगी. सपा के पास कम सीटें हैं. कन्नौज से खुद अखिलेश यादव लड़ेंगे क्योंकि कन्नौज के अलावा सपा के लिए मैनपुरी का सीट सुरक्षित है जहां से मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ेंगे. ऐसी स्थिति में अखिलेश यादव इतना रिस्क नहीं लेंगे कि किसी गैर सुरक्षित सीट से डिंपल को उतार दें. मुझे लगता है कि न मायावती चुनावी मैदान में होंगी न प्रियंका और न डिंपल यादव. ये तीनों महिलाएं बाहर से संचालित करेंगी.''
योगेश मिश्रा आगे कहते हैं, ''डिंपल यादव ने एक अच्छी बहु, एक अच्छी मां और एक अच्छी पत्नी होने का प्रमाण दिय़ा है. इसलिए जो कॉमन मध्यम वर्गीय महिला हैं उनकी वो रोल मॉडल हैं. वह एक हैप्पी फैमली लाइफ लीड कर रहीं हैं. ऐसे में वह महिलाओं को निश्चित पसंद आएंगी. इससे चुनाव प्रचार में भी फायदा होगा''
योगेश मिश्रा यह भी कहा हैं कि सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को भी शामिल करना चाहिए था अगर वह एंटी बीजेपी माहौल बनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ''अगर अखिलेश यादव और मायावती एंटी नरेंद्र मोदी पोल बना रहे हैं और हराने की मंशा रखते हैं तो उन्हें अपने साथ कांग्रेस को लेना ही होगा. कांग्रेस के बिना एंटी बीजेपी पोल बनता ही नहीं. जिस तरह से कांग्रेस ने 11 लोगों का लिस्ट जारी किया है उससे लगता है कि वह सपा-बसपा को फिलर का काम दे रही है और अंदर कुछ बात चल रही है.''
आइए जानते हैं कि अब तक डिंपल यादव का व्यक्तिगत और राजनीतिक सफर कैसा रहा है.
डिंपल यादव का राजनीतिक करियर
साल 2009 में उन्होंने राजनीतिक सफर शुरू किया. फिरोजाबाद में सांसद के लिए उपचुनाव हुए. दरअसल अखिलेश यादव कन्नौज और फिरोजाबाद दोनों जगहों से खड़े थे और जीत दर्ज की थी. बाद में उन्होंने फिरोजाबाद की सीट खाली कर दी. पार्टी ने डिंपल यादव को उस सीट से उप-चुनाव में उतारा. डिंपल यादव का मुकाबला समाजवादी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए राज बब्बर से था.
अमर सिंह ने डिंपल यादव के प्रचार के लिए पूरी कोशिश की. एक तरफ जया प्रदा, जया बच्चन और संजय दत्त डिंपल के लिए प्रचार कर रहे थे तो वहीं सलमान खान और गोविंदा जैसे बड़े स्टार राज बब्बर के लिए वोट मांग रहे थे. नतीजा यह हुआ कि डिंपल यादव अपना डेब्यू मैच हार गईं. राज बब्बर की इस उपचुनाव में जीत हुई. लेकिन कहते हैं कि 'मन के जीते जीत है मन के हारे हार'. डिंपल फिरोजाबाद के नतीजे से निराश जरूर थीं लेकिन हार नहीं माना. वह लगातार लोगों की सेवा में लगी रहीं.
इसके बाद साल 2012 में अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बन गए. मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने कन्नौज वाली सीट भी खाली कर दी. यहां से उपचुनाव में डिंपल के खिलाफ कोई भी खड़ा नहीं हुआ. डिंपल यादव को निर्विरोध चुना गया.
डिंपल यादव का व्यक्तिगत जीवन
पुणे में डिंपल का जन्म 1978 में हुआ था. उनके पिता का नाम एस सी रावत है और वह आर्मी में कर्नल थे. वो उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के रहने वाले हैं. डिंपल की दो बहनें भी हैं. डिंपल यादव पुणे से इंटर करने के बाद लखनऊ से ग्रेजुएशन करने आईं. इसी दौरान उनकी मुलाकात अखिलेश यादव से हुई. पहले अखिलेश ने नहीं बताया कि वह मुलायम सिंह यादव के पुत्र हैं. बाद में बता दिया और दोनों के मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया. फिर जब अखिलेश ऑस्ट्रेलिया पढ़ने के लिए गए तब डिंपल और उनकी बातचीत फोन पर होती थी.
जब अखिलेश यादव वापस आए तब उनपर घरवालों की तरफ से शादी का दबाव बनाया जाने लगा. अखिलेश के सामने समस्या थी कि घर में डिंपल के बारे में बताएं तो बताएं कैसे. ऐसे वक्त में अखिलेश ने अपनी दादी की मदद लेते हुए बात परिवार को बताई. अखिलेश यादव की डिंपल से शादी की मांग को मानना मुलायम के लिए आसान नहीं था, क्योंकि उस वक्त एक तो जातिवादी राजनीति हो रही थी और डिंपल राजपूत थीं.
दूसरी बड़ी समस्या जो मुलायम के सामने थी वह यह थी कि उस वक्त उत्तराखंड राज्य की अलग मांग हो रही थी और ऐसी स्थिति में वहीं की एक लड़की से अखिलेश की शादी करवाना काफी मुश्किल लग रहा था.
उस वक्त एक किस्सा और है. कहते हैं कि मुलायम लालू की बेटी से अखिलेश की शादी की बात कर रहे थे और ऐसे में फिर लालू को ना कहना भी मुश्किल था. तमाम रुकावटों के बावजूद डिंपल और अखिलेश एक हुए. शादी की तारीख के बारे में एक इंटरव्यू में उन्होंने खुद कहा था कि उनकी और अखिलेश की शादी 24 नवंबर 1999 को हुई थी.
हर कदम पर अखिलेश यादव के साथ रहीं
डिंपल यादव जब राजनीति में आईं तो उस वक्त उन्हें भाषण देने में काफी दिक्कत होती थी. लेकिन वक्त और धैर्य ने उन्हें सब सिखा दिया. आज वह अपने भाषण से उत्तर प्रदेश की जनता में जोश भर देती हैं. वह हमेशा अखिलेश यादव के साथ प्रदेश की जनता की सेवा में लगी रहीं. जब अखिलेश सूबे की सियासत देखते तब वह उनके छवि को मजबूत करने के लिए उनके सोशल मीडिया के अकॉउंट को मैनेज करती रहीं.
डिंपल लगातार कोशिश करती हैं कि अखिलेश यादव का इमेज अच्छा से अच्छा बनाया जाए. वह हर चीज को सोच-समझकर बड़े ही प्लानिंग के साथ करती हैं. दिसंबर 2016 में लखनऊ में मेट्रो का उद्घाटन हुआ तो उस दिन 2 महिला ड्राइवरों को भी बुलाया गया था. डिंपल यादव ने दोनों को मेट्रो की चाभी सौंपी. कहते हैं इस तरह से डिंपल यादव अपनी पार्टी की और अखिलेश यादव की छवी को हमेशा सकारात्मक बनाने की कोशिशों में जुटी रहती हैं.
पारिवारिक कलह के बीच भी नहीं बिगड़ने दी अपनी छवी
समाजवादी पार्टी में आंतरिक कलह की वजह से अखिलेश और मुलायम समेत पूरे परिवार की किरकिरी हो चुकी है. चाचा शिवपाल अलग पार्टी बना चुके हैं. इन तमाम परिस्थितियों में भी डिंपल ने किसी के साथ रिश्ता खराब नहीं किया. वह लगातार परिवार को एकजुट करने की कोशिशों में लगी रहीं. इससे उनकी छवी सकारात्मक पारिवारिक सदस्य की बनी. डिंपल की छवी पार्टी के लिए इस लोकसभा चुनाव में भी बेहद अहम रोल निभा सकती है, क्योंकि कई लोगों के नजरों में सपा की छवी एक महिला विरोधी पार्टी की है. कई लोगों के जहन में मुलायम सिंह यादव का रेप को लेकर दिया गया बेतुका बयान हो या महिला आरक्षण का विरोध करते हुए दिया गया विवादास्पद बयान सब याद है. इस कारण पार्टी की जो महिला विरोधी छवी है उसको काफी हद तक डिंपल ठीक करने का प्रयास कर रही हैं.