नई दिल्ली: कहते हैं केंद्र की सत्ता तक पहुंचने के लिए हर राजनीतिक पार्टी को उत्तर प्रदेश की गलियों की खाक छाननी ही पड़ती है. ये वो सूबा है, जिसके बिना दिल्ली फतह करने की बात सोची भी नहीं जा सकती. सबसे ज्यादा 80 सांसदों वाले इस राज्य में जातिगत रणनीति के लिहाज़ से छोटे छोटे दल भी बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं. यूपी में कुर्मी समाज की आबादी लगभग 3 से 4 प्रतीशत के बीच बताई जाती है. यही वजह है कि अपना दल से अलग होकर अपना दल (सोनेलाल) पार्टी बनाने वाली अनुप्रिया सिंह पटेल उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी अहम नेता मानी जा रही हैं. ‘2019 की 19 महिलएं’ सीरीज़ में आज अनुप्रिया पटेल की राजनीति पर बात करेंगे.


पहले निजी ज़िंदगी जान लेते हैं
राजनीतिक पार्टी अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल और कृष्णा पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल का जन्म 28 अप्रैल 1981 को उत्तर प्रदेश के कानपूर में हुआ था. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज और कानपूर के छत्रपति साहूजी महाराज यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. अनुप्रिया पटेल की शादी 28 साल की उम्र में 27 सितंबर 2009 को आशीष सिंह के साथ हुई. सांसद अनुप्रिया पटेल राजनीति में आने से पहले ऐमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ाया करती थीं.


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पिता का जाना और अनुप्रिया का राजनीति में आना
अनुप्रिया पटेल की शादी के चंद रोज़ बाद ही अपना दल के अध्यक्ष और उनके पिता सोनेलाल पटेल का एक कार हादसे में निधन हो गया था. इस हादसे के बाद अनुप्रिया पटेल ने राजनीति में आने का फैसला किया. पार्टी में उन्हें महासचिव का पद दिया गया और उनकी मां कृष्णा पटेल अध्यक्ष बनीं. अनुप्रिया के पार्टी में शामिल होने से पहले यूपी की राजनीति में अपना दल की हैसियत कुछ खास नहीं थी.


1995 में सोनेलाल पटेल ने पार्टी का गठन किया था. उन्होंने पार्टी को मज़बूत करने के लिए काफी मेहनत की. लेकिन खुद सोनेलाल कभी चुनाव नहीं जीत पाए. उनके परिवार में सबसे पहले चुनावी जीत का स्वाद चखने वाली भी अनुप्रिया पटेल ही हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी लोकसभा के अंतर्गत आने वाली रोहनिया विभानसभा सीट पर जीत हासिल की और उसके बाद वो आगे बढ़ती चली गईं.



पति, पार्टी, परिवार और विवाद
कहा जाता है कि अनुप्रिया पटेल के राजनीतिक करियर के पीछे उनके पति आशीष सिंह हैं. आशीष को अनुप्रिया का चाणक्य माना जाता है. साल 2014 में सांसद बनने के बाद अनुप्रिया पटेल ने रोहनिया विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. बाद में रोहनिया सीट पर हो रहे उपचुनाव के वक्त अनुप्रिया और उनकी मां कृष्णा के बीच विवाद हो गया. विवाद की वजह बने अनुप्रिया के पति आशीष सिंह.


दरअसल अनुप्रिया पटेल रोहनिया विधानसभा सीट पर अपने पति आशीष को चुनाव लड़वाना चाहती थीं और उनकी पार्टी उनकी मां कृष्णा पटेल को. हालांकि बाद में उनकी मां कृष्णा पटेल उपचुनाव में खड़ी हुईं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. और इसके पीछे वजह बताया गया अनुप्रिया पटेल को. कहा गया कि अनुप्रिया ने अपनी मां के लिए नकारात्मक प्रचार किया. इस घटना के बाद अपना दल की अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने बेटी अनुप्रिया और उनके कुछ करीबियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.


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अनुप्रिया पटेल के लिए 2014 से 2019 के हालात कितने अलग हैं ? इस पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी मंडल कहते हैं, “सोनेलाल पटेल की जो विरासत है वो अनुप्रिया पटेल के पास भी है, क्योंकि उनका व्यक्तित्व बड़ा हो गया है. वोट बैंक उस तरह नहीं बंटता कि चार भाई हैं तो चारों में बट गया. ये कोई प्रोपर्टी नहीं है. आमतौर पर इसे कोई एक ही ले जाता है. अनुप्रिया पटेल बड़ी नेता हैं. अपने परिवार की सबसे बड़ी नेता हैं. विरासत आज की तारीख में उनके पास है.”



एनडीए में शामिल होकर अनुप्रिया ने तय किया आगे का रास्ता
2014 के लोकसभा चुनाव में अपना दल ने एनडीए में शामिल होकर चुनाव लड़ने का फैसला किया. ये फैसला उनके दल के हित में रहा. दो सीटों पर चुनाव लड़ने वाली अपना दल ने मिर्ज़ापुर (अनुप्रिया पटेल) और प्रतापगढ़ (हरिबंश सिंह) की सीटों पर भारी अंतर से जीत हासिल की. इस जीत के साथ ही जहां एक तरफ उन्हें अपनी पार्टी से बाहर कर दिया गया वहीं दूसरी तरफ यूपी की राजनीति में उनका कद अचानक बढ़ गया था.


5 जुलाई 2016 में मोदी कैबिनेट ने अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री बनाया दिया. हालांकि फिलहाल अनुप्रिया पटेल की अपना दल और बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. दोनों पार्टियों में सीट बंटवारे को लेकर अब तक कोई बात नहीं हो पाई है.


सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अनुप्रिया पटेल रही हैं मुखर
बीजेपी से चल रही नाराज़गी पर अनुप्रिया पटेल क्या कदम उठाएंगी, इसपर दिलीप मंडल ने कहा, “उनको अपना रास्ता तय करना है. मुझे नहीं मालूम कि वो आखिर कौन-सा रास्ता तय करेंगी. बीजेपी के साथ रहने का फैसला करेंगी या फिर जैसा कि बीच में खबरें आई थीं कि कांग्रेस से बातचीत चल रही है. आखिर वो क्या फैसला करेंगी ये कहना मुश्किल है. लेकिन एक चीज़ तय है कि अनुप्रिया पटेल ने एक लाइन ज़रूर खींची है कि सामाजिक न्याय के सवाल पर वो सरकार में रहते हुए भी लगातार मुखर रही हैं. फिर वो चाहे रोस्टर का प्रश्न हो या जाति जनगणना की बात हो. इन सब मुद्दों पर वो अपनी आवाज़ उठाती रही हैं और अपने वोट बैंक को एड्रेस करती रही हैं. इसके साथ वो जहां भी जाएंगी मुझे लगता है कि वो महत्वपूर्ण साबित होंगी.”



यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन पहले ही बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब बन चुका है. ऐसे वक्त में अनुप्रिया पटेल की नाराज़गी बीजेपी के लिए कैसी मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं? इस सवाल पर दिलीप मंडल सीधे सीधे कहते हैं कि अगर अनुप्रिया पटेल गठबंधन की तरफ जाती हैं तो निश्चित रूप से बीजेपी के लिए बुरी खबर होगी. उनका कहना है, “अनुप्रिया पटेल का कितने ज़िले में कितना असर होगा इसको नापा नही जा सकता. लेकिन 2014 में बीजेपी ने जो सामाजिक गठजोड़ बनाया था, उसमें कहीं भी दरार आती है तो ये उनके लिए बुरी खबर होगी.”


दिलीप मंडल का मानना है कि यूपी में कुर्मी वोट बैंक एक बैलेंसिंग फैक्टर के तौर पर उभरा है. यही वजह है कि सभी पार्टियां उनको अपने साथ लाने की कोशिश कर रही हैं. आपको बता दें कि चुनाव नज़दीक हैं, ऐसे में यूपी का रण कितना दिलचस्प होगा इसका दारोमदार अब अनुप्रिया पटेल पर भी है.