Election 2022: एक से ज्यादा कितनी सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं नेता? क्या है इसका नियम, क्यों बदलाव की होती रही है मांग
Assembly Election 2022 Special: राजनीतिक रूप से अहम उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर इस बार सात चरणों में मतदान होगा. मणिपुर में 2, जबकि उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में एक चरण में वोट डाले जाएंगे.
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Assembly Election 2022: पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए सियासी रण सजा हुआ है. उम्मीदवारों के एलान के साथ ही चुनाव प्रचार का दौर भी तेज हो चला है. दिग्गज उम्मीदवारों की सीटों का एलान होना भी शुरू हो गया है. कई दिग्गज एक सीट से ज्यादा सीटों पर भी चुनाव लड़ते हैं. इसके पीछे की वजह चाहे सेफ सीट की तलाश हो या अपने आपको साबित करने की जंग, लेकिन आखिर इसके पीछे का नियम क्या है. कोई उम्मीदवार अधिकतम कितनी सीटों से चुनाव लड़ सकता है. एक, दो, तीन, चार कितनी सीटों से उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर सकता है. चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो उम्मीदवारों ने एक, दो नहीं तीन-तीन सीटों से चुनाव मैदान में ताल ठोंकी है.
उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनावी बिगुल बज गया है. निर्वाचन आयोग ने पांच राज्यों में चुनाव तारीखों की घोषणा कर दी है. 10 मार्च को वोटों की गिनती होगी यानी 10 मार्च को तय हो जाएगा, किस राज्य में कौन बनेगा मुख्यमंत्री. राजनीतिक रूप से अहम उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर इस बार सात चरणों में मतदान होगा. मणिपुर में 2, जबकि उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में एक चरण में वोट डाले जाएंगे.
अभी दिग्गजों की सीटों का एलान नहीं
अयोध्या, मथुरा के बाद खबर है कि यूपी के चुनाव में सीएम योगी गोरखपुर से चुनाव लड़ेंगे. हालांकि क्या वो सिर्फ एक सीट से ही चुनाव मैदान में उतरेंगे या किसी और सीट से भी, इसको लेकर अभी कुछ भी साफ नहीं है. वहीं अगर पंजाब की बात करें तो मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब से चुनाव मैदान में हैं. इससे पहले चर्चा थी कि चन्नी दो विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि एक उम्मीदवार कितनी विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ सकता है. वहीं अन्य दिग्गजों की सीटों का एलान अभी बाकी है.
राहुल और पीएम मोदी भी कर चुके हैं ऐसा
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा था. वो अमेठी के साथ ही केरल के वायनाड से भी चुनाव मैदान में उतरे थे. अमेठी से राहुल को जहां हार मिली, वहीं वायनाड से वो चुनाव जीत गए थे. वहीं पीएम मोदी भी 2014 के लोकसभा चुनावों में दो सीटों से चुनाव लड़े थे. पीएम मोदी वाराणसी और वडोदरा दो सीटों से उम्मीदवार थे. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने वडोदरा सीट छोड़ दी थी. इससे पहले इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, सोनिया गांधी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता एक से ज्यादा सीटों से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं. इतिहास के पन्नों से धूल हटाएं तो साल 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी ने यूपी की तीन सीटों से चुनाव लड़ा था. बलरामपुर, मथुरा और लखनऊ इन तीन सीटों से अटल बिहारी वाजपेयी उम्मीदवार थे. साल 1980 में इंदिरा गांधी दो सीटों से चुनावों में उतरी थीं और दोनों सीटों पर जीत भी हासिल की.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम
चुनाव लड़ने का नियम, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम से साफ होता है. इस एक्ट की धारा 33 में साफ किया गया था कि एक उम्मीदवार एक से ज्यादा कितनी सीटों से ताल ठोंक सकता है. साल 1996 से पहले यही नियम था. जिसमें कोई भी उम्मीदवार एक से ज्यादा कितनी भी सीटों पर चुनाव लड़ सकता था. हालांकि 1996 के बाद इस एक्ट की धारा 33 में संशोधन किया गया. 33 (7) के बाद तय किया गया कि एक उम्मीदवार एक से ज्यादा सिर्फ दो ही सीटों से चुनाव लड़ सकता है. एक से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करने पर उम्मीदवार को दोनों सीटों में से एक सीट का चुनाव करना होता है. इसके साथ ही एक सीट छोड़नी पड़ती है. जिसके बाद छोड़ी गई सीट पर उपचुनाव कराया जाता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को एक सीट छोड़नी पड़ी थी. वहीं इंदिरा गांधी के साथ भी ऐसा हुआ था, उन्हें भी जीत के बाद एक सीट छोड़नी पड़ी.
सीट छोड़ने के बाद क्या
दोनों सीटों पर जीत के बाद एक सीट चुनाव परिणाम के 10 दिनों के भीतर छोड़नी होती है. जिसके बाद वो सीट खाली हो जाती है और चुनाव आयोग को वहां उपचुनाव कराना होता है. हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में चुनाव आयोग को मशक्कत करनी पड़ती है और राजस्व को भी नुकसान होता है. एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने के नियम के विरोध में कई सिफारिशें भी हुईं. 2019 में सुप्रीम कोर्ट में भी इस संबंध में एक याचिका दाखिल की गई. चुनाव आयोग ने भी इसका समर्थन किया. हालांकि सरकार ने कहा कि इससे उम्मीदवारों के हक का उल्लंघन होगा. साल 2019 से पहले 1999 में चुनावी सुधार पर विधि आयोग ने भी रिपोर्ट दी. उससे पहले 1990 में भी एक रिपोर्ट दाखिल की गई, लेकिन नया नियम नहीं बन पाया.
किस दिग्गज ने कितनी सीटों से ठोंकी ताल
अटल बिहारी वाजपेयी का हम पहले भी जिक्र कर चुके हैं. उन्होंने साल 1957 में तीन लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था. 1977 में जब अपने ही गढ़ रायबरेली में इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं तो 1980 के चुनाव में वह रायबरेली के अलावा मेडक से भी चुनाव लड़ा था. साल 1991 में लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी, लखनऊ और एमपी की विदिशा सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे. लाल कृष्ण आडवाणी ने नई दिल्ली और गांधीनगर से चुनाव में ताल ठोंकी थी. 1999 में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी बेल्लारी और अमेठी से चुनाव लड़ी थीं.
मुलायम सिंह यादव साल 2014 में लोकसभा चुनाव मैनपुरी और आजमगढ़ से लड़े. 2009 में लालू यादव सारण और पाटलीपुत्र से चुनाव मैदान में उतरे. हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम देवीलाल ने तीन सीटों से चुनाव लड़ा. एनटीरामाराव ने साल 1985 में तीन सीटों से चुनाव लड़ा और तीनों पर जीते. वहीं देवीलाल को तीनों ही सीटों पर हार मिली.
क्या है और क्या था नियम
पहले जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 के मुताबिक एक उम्मीदवार एक से ज्यादा कितनी भी सीटों पर चुनाव लड़ सकता था. बाद में इसको लेकर जब सवाल उठने लगे तो साल 1996 में धारा 33 में संशोधन किया गया. इसके बाद घारा 33 (7) के अनुसार कोई भी उम्मीदवार केवल दो सीटों पर ही चुनाव एक साथ लड़ सकता है. अगर वह दोनों सीटों पर जीतता या जीतती है तो नतीजे आने के 10 दिन बाद उसे एक सीट खाली कर देनी होती है. चुनाव आयोग ने साल 2004 में धारा 33 (7) में संशोधन का प्रस्ताव दिया था. हालांकि चुनाव आयोग ने कहा था कि अगर मौजूदा प्रावधानों को बनाए रखते हैं तो दो सीटों से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को जीत के बाद खाली किए गए सीट पर होने वाले उपचुनाव का खर्च वहन करना चाहिए.
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