Election Commission: लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले अरुण गोयल ने चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा देकर चुनाव आयोग की परेशानी बढ़ा दी हैं. 18वें लोकसभा चुनाव का समय आ चुका है. ये चुनाव मई और जून के महीने में प्रस्तावित हैं. ऐसे में चुनाव आयोग में तीन की जगह सिर्फ एक चुनाव आयुक्त काम कर रहे हैं. अरुण गोयल इस्तीफा दे चुके हैं और अनूप चंद्र पांडे का कार्यकाल 14 फरवरी को खत्म हो चुका है. प्रधानमंत्री की अगुआई वाली चयन समिति जल्द ही बैठक कर दो चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी, जो मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के सहायक होंगे.
चयन समिति में विपक्ष के नेता अधीरंजन चौधरी भी शामिल हैं. इसके बावजूद विपक्षी पार्टियां नए चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया पर बवाल कर रही हैं और सरकार पर गंभीर आरोप लगा रही हैं. आइए जानते हैं कि पुरानी प्रक्रिया क्या थी और नई प्रक्रिया में क्या बदलाव आए हैं.
क्या थी पुरानी प्रक्रिया?
भारतीय संविधान में यह स्पष्ट है कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य आयुक्त होंगे और तीनों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे. इनके चयन से जुड़े नियम केंद्र सरकार तय करेगी. अब तक इसी प्रक्रिया से चुनाव आयोग का चयन हो रहा था.
क्या है नई प्रक्रिया?
नए कानून के अनुसार प्रधानमंत्री, विपक्षी दल के नेता और एक अन्य मंत्री मिलकर चुनाव आयुक्त का नाम राष्ट्रपति को सुझाते हैं. इसी सुझाव के आधार पर राष्ट्रपति नए आयुक्त का चयन करते हैं. इसी काम के लिए पीएम मोदी के साथ अधीर रंजन चौधरी और एक अन्य मंत्री बैठक करेंगे. कुछ समय पहले ही पीएम मोदी, अधीर रंजन चौधरी और अमित शाह ने मिलकर लोकपाल और सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर का चयन किया था.
क्यों हो रहा बवाल?
2015 में अनूप बर्नवाल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए. इसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले 73 वर्षों में स्पष्ट कानून नहीं होने से इसकी कमी रही है. निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता जरूरी है. इससे पहले दिनेश गोस्वामी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता को मिलकर चुनाव आयुक्त का चयन करना चाहिए. इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायधीश और विपक्ष के नेता मिलकर चुनाव आयुक्त का चनय करेंगे, जब तक संसद में इसे लेकर कोई नियम नहीं बनता. इसके बाद दिसंबर 2023 में संसद में नियम पारित किया गया और मुख्य आयुक्त की जगह समिति में एक केंद्रीय मंत्री का नाम चयन समिति में शामिल कर लिया गया. इसी वजह से बवाल हो रहा है. विपक्ष का कहना है कि सरकार के नेताओं के होने से यह समिति निष्पक्ष नहीं है. अगर मुख्य न्यायधीश इसमें शामिल होंगे तो समिति की निष्पक्षता ज्यादा होगी.
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