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विरासत: मैनपुरी से लखनऊ तक है मुलायम परिवार का दबदबा, 2019 है बड़ा चैलेंज

इस बार के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव, आजमगढ़ से अखिलेश यादव, कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव तो वहीं फिरोजाबाद से अक्षय यादव चुनाव लड़ रहे हैं.

राजनीति में ये कहावत आम है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, लेकिन जब बात उत्तर प्रदेश की होगी और बीते 4 दशक की सियासत की होगी, तो जिस नाम का जिक्र सबसे पहले होगा, वो हैं मुलायम सिंह यादव... और जैसे-जैसे उनकी सियासत की उम्र बढ़ती गई, सूबे की राजनीति में उनके परिवार का दखल भी बढ़ता गया... 2019 के लोकसभा चुनाव में कई परिवारों की विरासत दांव पर है. इसमें मुलायम परिवार सबसे अहम है. इस परिवार के 6 सदस्य इस बार चुनावी मैदान में हैं.... आज इस कड़ी में बात... मुलायम परिवार की.

मुलायम परिवार से ये हैं चुनाव मैदान में इस बार के लोकसभा चुनाव में मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव, आजमगढ़ से अखिलेश यादव, कन्नौज से डिंपल यादव, बदायूं से धर्मेंद्र यादव तो वहीं फिरोजाबाद से अक्षय यादव चुनाव लड़ रहे हैं. साल 2014 के चुनाव में भी मुलायम परिवार पांच सीटें जीतने में कामयाब हुआ था. मुलायम सिंह यादव के भाई और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने भी लोकसभा चुनाव में ताल ठोंक दी है. शिवपाल अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के टिकट पर भतीजे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

ऐसा रहा है मुलायम का सियासी सफर मुलायम सिंह यादव तीन बार यूपी के सीएम रहे, भारत के रक्षामंत्री रहे और भारत के प्रधानमंत्री बनते-बनते भी रह गए. मुलायम सिंह यादव राजनीति में सक्रिय हैं, उनके भाई सक्रिय हैं, बेटे सक्रिय हैं, भतीजे सक्रिये हैं, बहु सक्रिय हैं, पोते सक्रिय हैं. दूर के नाते रिश्तेदारों की गिनती ना भी करें तो एक आंकलन ये है कि 20 से 60 लोग इस परिवार के ऐसे हैं जो किसी न किसी रसूखदार राजनीतिक पद पर हैं. लेकिन इसकी शुरुआत चंबल के बीहड़ के पास उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव से होती है.

यूपी की सियासत का अहम अध्याय माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव का जन्म यूपी के इटावा के सैफई गांव में हुआ था. वो सबसे ज्यादा राम मनोहर लोहिया से प्रेरित रहे. मुलायम का राजनीतिक सफर बेहद लंबा रहा है. 1967 में पहली बार मुलायम सिंह यादव ने विधायक का कार्यभार संभाला और उसके बाद वो 7 बार विधायक रहे. 28 साल की उम्र में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के जसवंत नगर सीट से सबसे कम उम्र के विधायक बने. वो आबादी के लिहाज से सबसे बड़े प्रदेश यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे. यूपी के मुख्यमंत्री के अलावा वो 1996 से 1998 तक केंद्र सरकार में रक्षामंत्री भी रहे.

मुलायम सिंह यादव ने दो शादियां की. उनकी पहली पत्नी का नाम मालती देवी था. जिनका 2003 में निधन हो गया. अखिलेश यादव उन्हीं के बेटे हैं. उन्होंने दूसरी शादी साधना गुप्ता से की जिनके बेटे प्रतीक यादव हैं.

मुलायम सिंह यादव का सियासी सफर... 1960 में राजनीति में कदम रखा 1967 में पहली बार विधायक बने 1977 में वो राज्य मंत्री बने 1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला, जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गई 1985-87 तक वे उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे 1989 में वो पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन किया 1993-95 में वो दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने 1996-1998 केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री के पद पर भी रहे 2003 से 2007 में वो तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने

यहां से हुई मुलायम के परिवारवाद की शुरुआत जब मुलायम सिसायत की साइकिल घुमा रहे थे तब उनके छोटे भाई शिवपाल ने एक पहिया थामा. शिवपाल ने मुलायम के लिए पर्चे बांटने से लेकर बूथ मजबूत करने का काम किया. 1977 में जब वो राज्य के सहकारिता मंत्री बने तो छोटे भाई शिवपाल को भी मेहनत का फल मिला. शिवपाल ने अपनी राजनीति को-ऑपरेटिव से शुरू की. को-ऑपरेटिव के जरिये हर जिले में समाजवादी पार्टी की पकड़ बनाई और उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड के अध्यक्ष बने.

इसके बाद जब मुलायम राष्ट्रीय राजनीति में कूदे तो उन्होंने जसवंत नगर की अपनी सीट छोटे भाई के लिए छोड़ दी. शिवपाल उस सीट से लड़े और 1996 से लेकर अब तक इस सीट से वह जीतते आ रहे हैं.

मुलायम ने अपने भाई शिवपाल को राज्य की राजनीति में आगे बढ़ाया तो अपने चचेरे भाई राम गोपाल यादव को दिल्ली की राजनीति में भेज दिया. 1992 में उन्होंने राम गोपाल को राज्यसभा का सांसद बनवा दिया. वो आज भी राज्यसभा में सांसद हैं.

ऐसे हुई राजनीति में अखिलेश की एंट्री अखिलेश यादव ने धौलपुर के सैनिक स्कूल से अपनी पढ़ाई की शुरुआत करने के बाद मैसूर से इंजीनियरिंग की शिक्षा ली. कॉलेज के बाद अखिलेश पर्यावरण इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने सिडनी चले गए. अखिलेश 1998 में आस्ट्रेलिया से पढ़ाई पूरी कर लौटे थे. तब तक उनके लिए पिता मुलायम ने राजनीति का मैदान तैयार कर रखा था. अखिलेश के लिए मुलायम ने अपनी कन्नौज की सीट खाली कर दी. अखिलेश चुनावी अखाड़े में कूद पड़े और साल 2000 में हुए उप चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की. अब मुलायम के कुनबे का एक और चिराग राजनीति के फलक पर जगमगाने लगा था.

2009 में हुई डिंपल के राजनीतिक सफर की शुरुआत साल 2009 के आम चुनावों में अखिलेश ने फिरोजाबाद और कन्नौज सीट से चुनाव लड़ा और दोनों पर जीत दर्ज की. अखिलेश ने फिरोजबाद छोड़ी और वहां चुनाव लड़ने पहुंची उनकी पत्नी डिंपल यादव. यानि मुलायम सिंह यादव के परिवार का एक और सदस्य राजनीति के मैदान में था. डिंपल यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत बड़ी ख़राब रही. 2009 में वे फ़िरोज़ाबाद से लोकसभा का उप चुनाव लड़ीं लेकिन कांग्रेस के राज बब्बर ने उन्हें हरा दिया. डिंपल की हार ने परिवार और पार्टी को हिला कर रख दिया था.

2012 में अखिलेश यादव बने सीएम और चमक गई डिंपल की किस्मत इसी बीच यूपी 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बन गई. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बन गए. डिंपल को फ़िरोज़ाबाद से लड़ाना मुलायम सिंह यादव का फ़ैसला था. लेकिन इस बार डिंपल के बारे में फ़ैसला ख़ुद अखिलेश ने लिया. सीएम बनने के बाद अखिलेश यादव ने कन्नौज के सांसद पद से इस्तीफ़ा दे दिया. 2012 में इस सीट पर उप चुनाव हुआ. डिंपल यादव ने ये चुनाव निर्विरोध जीत लिया. कांग्रेस और बीएसपी ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे. 2014 के लोकसभा चुनाव में डिंपल और बीजेपी के बीच कड़ा मुक़ाबला हुआ. मोदी लहर में भी डिंपल अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं.

यहां से शुरू हुई मुलायम परिवार में फूट 2012 से पहले अखिलेश यादव सांसद तो थे लेकिन राज्य की राजनीति में अपनी जमीन तैयार कर रहे थे. 2012 के विधानसभा चुनाव के लिए अखिलेश ने जमकर प्रचार किया. लेकिन उससे भी अहम बात यह थी कि पार्टी की टिकट उन्हें मिली जो अखिलेश के समर्थक थें. चुनावों के नतीजे समाजवादी पार्टी के पक्ष में आए. सपा को स्पष्ट बहुमत तो मिला. लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कि राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा. पार्टी इसे लेकर दो गुटों में बंट गई. शिवपाल चाहते थे कि मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बनें वहीं अखिलेश चाहते थे कि वे खुद मुख्यमंत्री बनें. आखिरकार मुलायम सिंह यादव ने बेटे और भाई में से अपने बेटे को चुना.

2014 ने बदल दी तस्वीर 2014 के आम चुनावों में मोदी लहर ने सपा को भारी नुकसान पहुंचाया. समाजवादी पार्टी लोकसभा में 23 सीटों से सिमट कर पांच सीटों पर रह गई. इन सभी पांच सीटों पर संसद में चुनकर जाने वाले सांसद मुलायम सिंह के परिवार से थे.

2014 में सपा की सीटें औऱ सांसद आजमगढ़ से मुलायम सिंह यादव फिरोजाबाद से मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव के लड़के अक्षय यादव मैनपुरी से मुलायम सिंह के बड़े भाई रतन सिंह पोते तेजप्रताप बदायूं से मुलायम सिंह के बड़े भाई अभयराम सिंह के बेटे धर्मेंद्र यादव कन्नौज से अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव

समाजवादी पार्टी की टिकट पर घर के पांच लोग संसद पहुंचे जरूर लेकिन पारिवारिक खटपट दिनों दिन बढ़ती गई. घर का झगड़ा सार्वजनिक मंच पर जा पहुंचा. इस हाल में 2017 के विधानसभा चुनाव हुए. 2017 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी हार मिली. चाचा शिवपाल यादव ने हार का ठीकरा अखिलेश यादव के सिर फोड़ दिया.

अगस्त 2018 में मुलायम परिवार पूरी तरह से टूट गया. समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल ने समाजवादी पार्टी छोड़ दी. शिवपाल ने नई पार्टी बनाई, नाम रखा- प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) और अपने भतीजे भतीजे अक्षय के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया.

शिवपाल और अखिलेश के बीच के झगड़े ने पार्टी तोड़ दी. परिवार बिखर गया. लेकिन क्या इन झगड़ों से मुलायम परिवार का राजनीतिक रसूख खत्म हो जाएगा? यह तो 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही तय होगा. खास बात ये है कि मुलायम सिंह यादव का दरवाजा फिलहाल सभी के लिए खुला हुआ है. परिवार की लड़ाई में कभी वो भाई के साथ खड़े दिखते हैं तो कभी बेटे के साथ.

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