Election Fact Chek: कांग्रेस ने कर्नाटक में मुसलमानों को धर्म के आधार पर आरक्षण दिया? जानिए वायरल दावे का सच
Lok Sabha Elections 2024: चुनावी माहौल के बीच पीएम मोदी ने कहा था कि कांग्रेस ने "धर्म आधारित आरक्षण लागू करने का संकल्प" लिया है. हालांकि, पार्टी के मैनिफेस्टो में ऐसा कोई वादा नहीं किया गया है.
Lok Sabha Elections 2024: उत्तर प्रदेश (यूपी) के आगरा में 25 अप्रैल, 2024 को चुनावी जन सभा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था, "कांग्रेस ने धर्म आधारित आरक्षण लागू करने का संकल्प लिया है. उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के 27 फीसदी कोटे में सेंधमारी करने का फैसला किया है. उन्होंने इसे चुपचाप छीनने और धर्म आधारित आरक्षण देने का फैसला किया है."
दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक (जहां कांग्रेस सत्ता में है) का जिक्र करते हुए पीएम ने यह भी बताया कि कर्नाटक में कांग्रेस ने रातों-रात सभी मुसलमानों को ओबीसी की सूची में शामिल कर लिया है और उन्हें "ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षित" समूचा आरक्षण दे दिया. उन्होंने इस दौरान आरोप लगाया था कि पार्टी ने पिछड़े वर्गों के साथ अन्याय किया है और अब वह उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसा ही करेगी.
OBCs में 1994 में शामिल किए गए थे मुसलमान?
पीएम मोदी ने इस तरह की टिप्पणियां कुछ और चुनावी रैलियों में भी कीं, जबकि उनके बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी ऐसे ही बयान दिए. पीएम मोदी और सीएम योगी के इन बयानों के बाद सोशल मीडिया पर कई दक्षिणपंथी यूजर्स ने दावा किया कि मुसलमानों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का काम 1994 में कांग्रेस सरकार के तहत हुआ था. हालांकि, ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि इस मुद्दे पर साल 1921 की शुरुआत से ही विचार-विमर्श हुआ था और जब कांग्रेस सत्ता में थी तब इसे प्रस्तावित किया गया था. बाद में इसे 1995 में जेडी (एस) सरकार के तहत लागू किया गया था.
कब क्या हुआ? जानें, पूरी टाइमलाइन
1921: जस्टिस मिलर कमेटी की सिफारिश के बाद मुस्लिम समुदाय को पहली बार 1921 में पिछड़े वर्ग के रूप में आरक्षण दिया गया. कमेटी की स्थापना 1918 में मैसूर के महाराजा ने की थी.
1961: आर नागाना गौड़ा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मुस्लिमों में 10 से अधिक जातियों को सबसे ज्यादा पिछड़े के रूप में पहचाना और उन्हें पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल किया. तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1962 में इस सिफारिश के आधार पर एक आदेश जारी किया पर इसे अदालत में चुनौती दी गई. आगे यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.
1972: हवानूर आयोग की स्थापना सीएम देवराज उर्स के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की ओर से की गई थी. इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1977 में उर्स के नेतृत्व वाली सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों में मुसलमानों के लिए आरक्षण लागू किया, जिसके बाद इसे लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में चुनौतियां दी गईं.
1983: शीर्ष अदालत ने मुसलमानों को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल करने की समीक्षा के लिए एक और आयोग गठित करने का निर्देश दिया. 1984 में वेंकटस्वामी आयोग ने मुस्लिमों को शामिल करने का सुझाव दिया पर प्रमुख वोक्कालिगा और कुछ लिंगायत संप्रदायों को पिछड़े वर्गों की सूची से बाहर कर दिया. वोक्कालिगाओं के विरोध के कारण रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया.
1990: इस साल ओ. चिन्नाप्पा रेड्डी आयोग ने पिछड़े वर्गों में मुसलमानों के वर्गीकरण की पुष्टि की. बाद में वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 20 अप्रैल, 1994 को आधिकारिक तौर पर मुसलमानों को श्रेणी-2 के तहत शामिल करने का आदेश जारी किया.
25 जुलाई, 1994 को सरकार ने "सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन" के आधार पर जातियों की सूची को 2ए (अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ा), 2बी (अधिक पिछड़ा), 3ए (पिछड़ा) और 3बी (अपेक्षाकृत पिछड़ा) श्रेणियों में पुनःवर्गीकृत करने का आदेश जारी किया. आदेश में श्रेणी 2बी के तहत मुसलमानों के साथ बौद्ध और ईसाई धर्म में परिवर्तित अनुसूचित जाति के लोग भी थे. मुसलमानों को जहां चार प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, वहीं बौद्धों और ईसाइयों के लिए दो प्रतिशत आरक्षण निर्धारित किया गया. आदेश के आधार पर कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़कर 57 प्रतिशत हो गया था.
कांग्रेस के बाद सत्ता में आई JD(S) तो यह हुआ
नौ सितंबर, 1994 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित एक अंतरिम आदेश में कर्नाटक सरकार को पूरे आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित करने का निर्देश दिया गया था. 17 सितंबर 1994 को सरकार ने सभी कोटा कम करने का आदेश पारित किया. अब 2बी श्रेणी के तहत मुस्लिमों के लिए आरक्षण चार प्रतिशत तय किया गया था. हालांकि, सरकार दिसंबर 1994 में बदल गई और 14 फरवरी, 1995 को एचडी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली जनता दल (सेक्युलर) सत्ता में आई और ओबीसी के लिए कुल 32 प्रतिशत कोटा में से मुस्लिम कोटा चार प्रतिशत (श्रेणी 2 बी के तहत) तय करने के आदेश को लागू किया.
समय के साथ संरचना विकसित हुई पर बीजेपी की ओर से राज्य में पहली बार 2006 में जेडी (एस) के साथ गठबंधन में और उसके बाद दो बार सरकार बनाने के बावजूद इस चार प्रतिशत आरक्षण कोटा में कोई बदलाव नहीं किया गया. फिलहाल जेडी (एस) का राज्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन है. मौजूदा समय में श्रेणी 1 (सबसे पिछड़ा) और 2ए के तहत शामिल मुसलमानों के 36 समुदाय भी ओबीसी की केंद्रीय सूची में हैं. वैसे, सिर्फ वे लोग जो 'क्रीमी लेयर' (आठ लाख रुपए या अधिक की वार्षिक आय) नहीं हैं, इस आरक्षण के लिए पात्र हैं.
मुसलमानों को आरक्षण किस आधार पर?
मार्च 2023 में कर्नाटक में विधानसभा चुनावों से पहले तब के सीएम बसवराज बोम्मई ने मुसलमानों को ओबीसी के कोटा से हटाने और इसके बजाय उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा में शामिल करने का फैसला किया. हालांकि, इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और अप्रैल 2023 में इसे रोक दिया गया था. बोम्मई प्रशासन ने चार प्रतिशत को नव निर्मित समूहों 2सी और 2डी के बीच बांटने का भी निर्णय लिया था, जिसके तहत प्रमुख वोक्कालिगा और लिंगायत आते हैं.
आगे कांग्रेस ने कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीता और सिद्धारमैया ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. सिद्धारमैया की सरकार ने मुसलमानों के लिए उसी चार प्रतिशत कोटा के तहत काम करना जारी रखा क्योंकि मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में पेडिंग है. कर्नाटक इकलौता राज्य नहीं है जहां मुस्लिम उपजातियां ओबीसी सूची में शामिल हैं. पीएम नरेंद्र मोदी का गृह राज्य गुजरात (जहां से वह 12 साल से अधिक समय तक सीएम रहे) वहां भी मुस्लिम ओबीसी लिस्ट में हैं. एक्सपर्ट्स भी यह बताते हैं कि यह समावेशन धर्म पर आधारित नहीं है बल्कि "सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन" पर आधारित है.
Disclaimer: This story was originally published by Logically Facts and translated by ABP Live Hindi as part of the Shakti Collective.