लखनऊ: शालिनी यादव पर्चा भरने अपने घर से निकली. वाराणसी शहर में बैंड बाजे के साथ घूम घूम कर रोड शो किया. समाजवादी पार्टी और बीएसपी के नेता भी शालिनी के रोड शो में साथ रहे. जगह-जगह उनका स्वागत सत्कार हुआ. फूलों की बारिश हुई. ढोल नगाड़े बजते रहे. माथे पर लाल टोपी, गले में फूलों की माला पहन शालिनी हाथ जोड़ कर आगे बढ़ती रहीं. कचहरी जाकर नामांकन करने के लिए शालिनी खुली जीप से उतरीं. तो पता चला टिकट किसी और को मिल गया है.


जिस टिकट के लिए वे कांग्रेस छोड़ कर हफ़्ते भर पहले अखिलेश यादव के साथ हो गई थीं. वही कांग्रेस पार्टी जिस से शालिनी के घरवालों का सालों का रिश्ता था. समाजवादी पार्टी ने तेज़ बहादुर यादव को उम्मीदवार बनाया है. कुछ ही दिनों पहले उन्होंने निर्दलीय ही पर्चा भरा था. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज राय धूपचंडी ने तेज का नामांकन करवाया.


आख़िर कैसे शालिनी यादव का टिकट आख़िरी वक़्त में कट गया? पीएम नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ना उनके लिए सपना ही रह गया. समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी कौन हो? इस पर लखनऊ में कई दौर की बैठकें हुईं. छोटे बड़े सभी नेताओं की राय ली गई. मोदी के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में किसे उतारा जाए? मज़बूत नेता की तलाश में राय मशविरा होता रहा. कभी सुरेन्द्र पटेल का नाम चला. तो कभी संजय चौहान का.


संजय चौहान का जनवादी पार्टी के नाम से अपना राजनैतिक दल है. लेकिन किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई. पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को कोई नाम पसंद ही नहीं आ रहा था. इसी बीच प्रियंका गांधी के वाराणसी से चुनाव लड़ने की चर्चा तेज़ होने लगी. गठबंधन में ये सीट बीएसपी ने समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ी थी. आख़िरकार पार्टी ने शालिनी यादव पर दांव लगाना बेहतर समझा. वे कांग्रेस से वाराणसी में मेयर का चुनाव लड़ चुकी हैं. एक लाख के क़रीब उनको वोट मिला था. शालिनी के पिता भी कांग्रेस के नेता थे. लेकिन अखिलेश यादव के बुलावे पर उन्होंने कांग्रेस को गुडबाय कह दिया. लखनऊ में प्रेस कनफ़्रेंस कर अखिलेश ने उन्हें पार्टी में शामिल कराने का एलान किया. इसके तुरंत बाद शालिनी को वाराणसी से टिकट भी मिल गया.


नामांकन से पहले 25 अप्रैल को पीएम नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी में रोड शो किया. उसी दिन दोपहर को कांग्रेस ने अजय राय को उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी. प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की खबर पर ब्रेक लग गया. कांग्रेस के इस फैसले के बाद से ही अखिलेश यादव के कैंप में प्रत्याशी बदलने की चर्चा तेज हो गई. 29 अप्रैल के नामांकन करने ती आख़िरी तारीख थी. लखनऊ से वाराणसी ये संदेश भेजा गया कि शालिनी आख़िरी दिन पर्चा भरेंगी. जिले में बीएसपी नेताओं को भी ये बता दिया गया. नामांकन की तैयारी होने लगी. इसी दौरान अखिलेश यादव को फ़ीडबैक मिलने लगा था कि शालिनी कमजोर ठीक से नहीं लड़ पायेंगी.


अखिलेश को ये बताया गया कि यादव वोट भी बंट सकते हैं. ये चर्चा होने लगी कि इस बिरादरी से कुछ लोग मोदी को भी वोट कर सकते हैं. इसीलिए रातोंरात उम्मीदवार बदलने का फैसला कर लिया गया. तेज बहादुर यादव के नाम पर मुहर लग गई. बीएसएफ़ से बर्खास्त तेज को शालिनी से बेहतर समझा गया. भ्रष्टाचार की शिकायत पर उन्हें सीमा सुरक्षा बल से हटा दिया गया था. ख़राब खाने को लेकर तेजबहादुर ने सोशल मीडिया में एक वीडियो पोस्ट किया था. जो बाद में बहुत वायरल हो गया था. अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था.


अखिलेश यादव को लगा तेज़ के बहाने मोदी के राष्ट्रवाद पर हमला किया जा सकता है. भ्रष्टाचार पर बहस हो सकती है. अखिलेश को हर हाल में यादव जाति का उम्मीदवार ही चाहिए था. तेज़ हर लिहाज़ से अखिलेश की कसौटी पर खरे उतरे. बात ये है कि 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यादव वोट बैंक में सेंध लगा दी थी. अखिलेश की चिंता अपना बेस वोट बचाते हुए मोदी को चुनौती देने की थी. इसीलिए तेजबहादुर के चक्कर में शालिनी का टिकट कट गया.


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