बेगूसराय में हुई थी देश की पहली बूथ कैप्चरिंग, चुनावी साल था 1957
'बूथ कैप्चरिंग', 1970 और 1980 के दशक के दौरान यह शब्द अखबारों की सुर्खियों में हुआ करते थे, क्योंकि इस दौरान चुनाव में भाग लेने वाली पार्टियों और उम्मीदवारों की संख्या में कई गुना इजाफा हुआ और इसके साथ ही धन और बल के माध्यम से चुनाव जीतने के लिए बूध कैप्चर का नया हथकंडा अपनाया गया.
आजादी के एक दशक बाद दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र एक बार फिर अपने सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व यानी आम चुनाव के लिए तैयार था. इस आम चुनाव ने न केवल भारत बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में रहने वालों के अंदर भी रुचि पैदा कर दी थी. इसका कारण यह था कि पिछले आम चुनाव की सफलता के बाद चुनाव आयोग ने न सिर्फ अपनी मौजूदगी को महसूस कराया, बल्कि दूसरे आम चुनाव में दोबारा पूरी मजबूती के साथ अपनी साख को बचाने और अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ मैदान में आया. भारत का दूसरा लोकसभा चुनाव साल 1957 में 24 फरवरी से 9 जून के बीच संपन्न हुआ.
भारत में होने वाले आम चुनाव एक ऐसे महाकुम्भ की तरह है जिसे संपन्न कराने की जिम्मेदारी अपने आप में बहुत कठिन है. मगर चुनाव-दर-चुनाव चुनाव आयोग की जिम्मेदारी काबिल-ए-तारीफ है. हम इस सीरीज में अब तक हुए महत्वपूर्ण आम चुनावों में चुनाव आयोग की निष्ठा और उसकी जिम्मेदारियों का एक खाका तैयार कर रहे हैं. आज ज़िक्र होगा 1957 में हुए दूसरे आम चुनाव का.
चुनाव आयोग की तरफ से देश में पहली बार संपन्न हुए आम चुनावों के लिए अपनाई गई अधिकतर प्रक्रियाओं को 1957 के आम चुनावों के लिए भी वापस से लागू किया गया. सुकुमार सेन 1952 के पहली लोकसभा चुनाव की सफलता के बाद तारीफ के हकदार थे, इस चुनाव में छोटी से छोटी चीज़ों के लिए सुकुमार सेन की दूरदर्शिता की तारीफ करनी चाहिए. इनमें कम लागत वाली किफायती बैलेट बॉक्स का निर्माण, मतदाताओं के पहचना के लिए इस्तेमाल की गई इनोवेटिव स्याही शामिल है. मशहूर स्तंभकार रामचंद्र गुहा 'दी टेलीग्राफ' अखबर छपी एक लेख में जिक्र करते हैं कि 1951/52 चुनावों की सफलता ने चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के नाम को इतना बड़ा कर दिया, जिसकी वजह से उन्हें न सिर्फ अन्य देशों में बल्कि दूसरे महाद्वीप से भी उन्हें आमंत्रण मिलने लगे. सूडान ने अपने पहले चुनाव के सफल संचालन के लिए सुकुमार सेन को आमंत्रित किया गया था.
दूसरे लोकसभा चुनाव में मतदातों को जागरूक करने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालाय के अंतर्गत में एक फिल्म 'इट इज योर वोट' बनाई गई. जिसे 13 भारतीय भाषाओं में डब कर भारत के 74,000 स्क्रीन पर फिल्माया गया. मुख्य चुनाव आयुक्त के मुताबिक, 94 प्रतिशत वयस्क महिलाओं का नाम मतदाता सूची में इस आम चुनाव के दौरान दर्ज किया गया. इस तरह लगभग 19 करोड़ 30 लाख मतदाताओं के नाम इस आम चुनाव में मतदाता सूची में दर्ज किए गए. इस बार मतपत्रों के निर्माण में 197 टन कागज का खपत हुआ. कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए 2,73,762 पुलिसकर्मी और 1,68,281 ग्रामीण चौकीदार को तैनात किया गया था.
चुनाव आयोग की तरफ से जारी की गई आम चुनाव की स्टेटिकल रिपोर्ट के मुताबिक, 1957 के चुनाव की वोटिंग में मामूली उछाल देखा गया - 1951/52 में 44.87 प्रतिशत के मुकाबले 1957 के लोकसभा चुनाव में 45.44 फीसदी मतदान हुआ. इस आम चुनाव में किए गए मतदान में एक दिलचस्प बात यह थी कि 42 सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों को हासिल हुई, जिन्हें 19.3 प्रतिशत मत मिले. 45 महिला उम्मीदवारों ने इस आम चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई जिनमें लगभग आधी महिला उम्मीदवारों यानी 22 उम्मीदवारों ने सफलता का स्वाद चखा.
पहली बूथ कैप्चरिंग बेगूसराय में हुई इस आम चुनाव में भारतीय लोकतंत्र का 'बूथ कैप्चरिंग' जैसी समस्या से पहली बार सामना हुआ. टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना को बेगूसराय जिले की मटिहानी विधानसभा सीट के रचियाही इलाके में अंजाम दिया गया. 'बूथ कैप्चरिंग', 1970 और 1980 के दशक के दौरान यह शब्द अखबारों की सुर्खियों में हुआ करते थे, क्योंकि इस दौरान चुनाव में भाग लेने वाली पार्टियों और उम्मीदवारों की संख्या में कई गुना इजाफा हुआ और इसके साथ ही धन और बल के माध्यम से चुनाव जीतने के लिए बूध कैप्चर का नया हथकंडा अपनाया गया.
इन सब के बावजूद दूसरा आम चुनाव संपंन्न हुआ. इस चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) का एक और प्रभावी प्रदर्शन रहा, क्योंकि कांग्रेस पिछले चुनावों से सात ज्यादा सीटें हासिल करने में सफल रही, हालांकि ऐसा इसलिए था क्योंकि लोकसभा सीटों की संख्या में पांच सीटों की वृद्धि की गई थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वोट शेयर में भी 44.99% से 47.80% की उछाल देखा गई. कांग्रेस अपनी दूसरी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी कम्युनिस्ट पार्टी से पांच गुना अधिक मतों से जीतने में सफल रही. कम्युनिस्ट पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 11 अधिक सीटें हासिल करने में सफल रही थी.
यह पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के मार्गदर्शन में भारत में किया गया दूसरा और अंतिम चुनाव था. 1958 के 19 दिसंबर को सेन का निधन हो गया था, लेकिन वह अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए जो भारतीयों की तरफ से मतदान करने में हर बार अपनाई जाने लगी.
स्रोत: भारत गांधी के बाद (रामचंद्र गुहा), चुनाव आयोग की वेबसाइट, बियॉन्ड द लाइन्स (कुलदीप नैयर), अन्य समाचार पत्र