भारतीय चुनाव एक गंभीर कारोबार की तरह होते हैं. यदि हम ऐसा कहें की चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियां एक ऐसे प्रॉडक्ट में तब्दील हो जाती हैं जिन्हें जनता में बेचने की होड़ सी लग जाती है. ऐड कंपनियों से लेकर पीआर फर्म्स इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें सांस लेने तक की फुर्सत नहीं होती. सियासी दल उस दौरान बड़े-बड़े वादे करते हैं, और हर पार्टी अपने चुनाव प्रचार के लिए शागदार नारों से लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने में लगी रहती हैं.
यदि हम भारतीय चुनाव के नारों का इतिहास उठा कर देखें तो ऐसे कई नारे सामने उभर कर आ जाएंगे जिनके सहारे जीत की कहानी लिखी गई. ये नारे अपने आप में बहुत हद मजाकिया और हल्के-फुल्के होते हैं लेकिन इनका इंपैक्ट ऐसा है जो सीधे मतदाताओं को हिट करता है. इन नारों ने कई पार्टियों की किस्मत भी बदली.
बीते लोक सभा चुनाव के ऊपर ध्यान दें तो 14वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी बीजेपी का एक मूल नारा रहा 'अबकी बार मोदी सरकार'. यह नारा बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी पर केंद्रित था.
आज अगर हम उस दौर के सोशल मीडिया को खंगाले तो इस नारे की तुकबंदी करती कई लाइनों का सैलाब सा नजर आता है, जैसे - ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार, अबकी बार मोदी सरकार; दिल का भंवर करे पुकार अबकी बार मोदी सरकार, वगैरह. 'अब की बार मोदी सरकार' का नारा देने वाले ऐड गुरू पीयूष पाण्डेय बताते हैं, ''हमें इस बारे में बताया गया था कि यह कैम्पेन उनके (नरेंद्र मोदी) फेस को लेकर चलाया जाएगा. यह लाइन काफी सिंपल है और लोगों के बोल-चाल की लाइन है. और मेरा मनना है कि लाइन कभी अपने आम में बड़ी तब नहीं होती तब आप उसे एक कॉन्टेक्स्ट (संदर्भ) नहीं देते हैं.''
बहरहाल, हम हिंदुस्तान की सियासत में नारों का इतिहास उठा कर देखें तो यह अपने आप में एक आश्चर्यजनक अनुभव होगा, क्योंकि क्रिएटिवी का यह स्तर सिर्फ आज के दिनों से ही नहीं है बल्कि इसका अंकुरण 60 के दशक में ही हो गया था. साल 1967 के आम चुनाव में भारतीय जनसंघ मतदाताओं से नारे- 'जन संघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड दो; बीड़ी में तम्बाकू है, कांग्रेस वाले डाकू हैं' के साथ कांग्रेस और तंबाकू दोनों को खारिज करने की गुहार की थी. इस आम चुनाव में जन संघ ने जहां 35 सीटें हासिल की वहीं कांग्रेस 283 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बन सत्ता में वापस आई.
वीवी गिरी को राष्ट्रपति बनाए जाने के बाद कांग्रेस में अंदर दो फाड़ हो गई. 12 नवंबर 1969 को इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाल दिया गया. अब पार्टी में दो गुट थे, एक वह जो इंदिरा के समर्थक थे जिन्हें कांग्रेस (आर) कहा गया और दूसरा सिंडिकेट जो कांग्रेस (ओ) के नाम से जानी गई. 1970 में इंदिरा गांधी ने चुनाव की घोषणा कर दी, अपनी लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के विभाजन के बाद, अपने समर्थकों पर भरोसा कर चुनाव में उतरने का फैलसा किया. इंदिरा गांधी के इस बड़े फैसले के बाद सिंडिकेट और उनके समर्थित दलों ने आम चुनाव में 'इंदिरा हटाओ' का नारा दिया. सिंडिकेट के इस नारे को ही अपना हथियार बनाते हुए इंदिरा ने पलटवार किया इसी आम चुनाव में 'गरीबी हटाओ, इंदिरा लाओ' जैसा नारा दिया.
इमर्जेंसी के दौर के बाद हुए आम चुनाव में पूरा विपक्ष जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक साथ हो गया. देश की सियासत की सबसे बड़ी सत्ता पर काबिज इंदिरा गांधी को हटाने का उन्माद पूरे चरम पर था. इस दिशा में जनता पार्टी एक जुट हुई और आम चुनाव में इंदिरा गांधी को करारी शिकस्त देने के लिए देश की जनता से 'इंदिरा हटाओ देश बचाओ' का नारा दिया गया. 1977 के जनादेश ने पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार की तरफ रुख किया, और मोरारजी देसाई देश ते पहले गैर कांग्रेसी सरकार के प्रधान मंत्री बने.
1978 के उपचुनाव के दौरान कांग्रेस के श्रीकांत वर्मा की तरफ से जनता पार्टी के नेताओं का मजाक उड़ाने के लिए गढ़ा गया नारा- 'एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंलूर भाई चिकमंगलूर' बेहद चर्चा में रहा. 1977 के चुनावों में जनता पार्टी के हाथों करारी शिकस्त के बाद इंदिरा गांधी आक्रामक तेवर के साथ वापसी लौटीं और एक आश्चर्यजनक मोड़ पर उन्होंने चिकमगंलूर में 1978 का चुनाव लड़ा और इसे जीत लिया.
1980 का चुनाव आते-आते मशहूर संपादक प्रभाष जोशी अपने एक लेख 'ऐन नॉट इवन ए डॉग बार्क्ड' में जिक्र करते हैं कि यह चुनाव किसी भी विचारधारा से परे था. जहां जनता पार्टी अपनी साख खो चुकी थी और इसी के सहारे कांग्रेस अपनी छवि सुधारने में लगी थी. लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता का राग अलापने वाली जनता पार्टी को कांग्रेस ने उसके वादों से मुकरने पर उन्हें घेरा और लोगों में इस बात का विश्वास दिलाया कि हमने पहले भी आपके लिए किया है और आगे भी करेंगे. उस दौरान कांग्रेस ने इस नारे - 'जनता पार्टी हो गई फेल, खा गई चीनी पी गई तेल' से देश की आवाम का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का काम किया.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस 1984 में हुए आम चुनाव का केंद्र पूरी तरह से इंदिरा गांधी बन गईं. पार्टी अपना हर काम इंदिरा गांधी के नाम से ही करती थी. इस चुनाव में कांग्रेस को अभूतपूर्व जीत मिली, मगर इसके पीछे भी उस दौरान दिया गया एक खास नारा – ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा’ काफी अहम था जिनसे लोगों को सीधे इंदिरा गांधी की शहादत से जोड़े रखा.
साल 1989 के आम चुनाव के दौरान देश की सियासत में सांप्रदायिक रंग घुले हुए थे. शाहबानों मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने के लिए लाए गए मुस्लिम महिला बिल से लेकर राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे आम चुनाव में सबसे अहम थे. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की जनता का मूड अब अपने धर्म के वजूद पर टिक गया था. इसे अवसर के रूप में भुनाने के लिए विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी सामने आई. उस दौरान विश्व हिंदू परिषद का नारा- 'बच्च-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का' और बीजेपी द्वारा जनता संज्ञान में लाया गया नारा- 'जय श्री राम' काफी लोकप्रिय साबित हुआ.
अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने के बाद चंद सियासी महकमों में एक जुटता देखी गई. यूपी में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने साल 1993 में मिलकर सरकार बनाई. कांशीराम, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक, ने मुलायम सिंह यादव को अपना समर्थन दिया. मुलायम सिंह यादव और कांशीराम का यह मिलन जनता में काफी लोकप्रिय साबित हुआ और उनके इस मिलन को इस नारे- 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम' के साथ जोड़ा गया.
'बारी बारी सबकी बारी अबकी बारी अटल बिहारी' 1996 में हुए आम चुनाव में बीजेपी की तरफ से दिया गया यह नारा पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी पर केंद्रित था. पार्टी की तरफ से दिया गया यह नारा वाजपेयी को चुनावी स्पेक्ट्रम में पूरी तरह से केंद्रित करना था. उस दौरान बीजेपी खेमे में उदारवादी दृष्टिकोण रखने वाले वाजपेयी के ऊपर पार्टी का भरोसा इस कदर था जो कि वे बीजेपी के ऐसे तारणहार हो सकते हैं जो निवर्तमान प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव को उनके पद से और कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर सकते थे. 1996 के आम चुनाव में नतीजा यह रहा कि कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई और पहली बार अटल बिहारी वाजपेजी के नेतृत्व में बीजेपी ने 13 दिन की सरकार बनाई.
प्रधानमंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल पूरे होने पर 2004 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन द्वारा जारी सबसे प्रसिद्ध नारों में से एक इंडिया शाइनिंग नारा की काफी चर्चित था. मगर यह मतदाताओं को लुभाने में विफल रहा और पार्टी की शानदार चुनावी रणनीति 2004 के जनदेश के सामने विफल रही.
2009 के लोकसभा चुनाव में सोनिया नहीं ये आंधी है, दूसरी इंदिरा गांधी है कांग्रेस की तरफ से गढ़ा गया नारा था. जिसे लोगों ने पसंद किया और जीत का तोहफा दिया.