Election Flashback: साल 1989 के आम चुनाव के दौरान देश की सियासत में सांप्रदायिक रंग घुले हुए थे. शाहबानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने के लिए लाए गए मुस्लिम महिला बिल से लेकर राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे सबसे अहम रहे. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की जनता का मूड अब अपने-अपने धर्म की भावनाओं से जुड़ गया था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद सहानुभूति की लहर ने सत्ता का ताज 1984 के आम चुनाव में उनके बेटे राजीव गांधी के सिर चढ़ा. साल 1989 का वक्त इस ताज को बचाने का था. अपने कार्यकाल में तकनीक, राजनीति में नवाचार, संचार के माध्यमों को बढ़ाने के साथ कंप्यूटर युग की ओर भारत को ले जाने का सपना राजीव गांधी को 'मिस्टर क्लीन' तो बनाता था, मगर इनके बरक्स बोफोर्स घोटाले का मुद्दा और लोगों में सांप्रदायिक उन्माद भी बढ़ता जा रहा था.


भारत में होने वाले आम चुनाव एक ऐसे महाकुम्भ की तरह है जिसे संपन्न कराने की जिम्मेदारी अपने आप में बहुत कठिन है. मगर चुनाव-दर-चुनाव  मजबूत होता भारतीय लोकतंत्र काबिल-ए-तारीफ है. हम इस सीरीज में अब तक हुए  महत्वपूर्ण आम चुनावों में  भारतीय लोकतंत्र की निष्ठा और उसकी जिम्मेदारियों का एक खाका तैयार कर रहे हैंआज ज़िक्र होगा 1989 में हुए  9वींआम चुनाव का.


राजीवा गांधी के विजन में एक खास जगह युवाओं पर भी केंद्रित थी. युवाओं की भागीदारी के साथ भारत को 21वीं सदी के लिए तैयार करना उनके लक्ष्यों में से एक था. मात्र 43 वर्ष की आयु में भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव गांधी विश्व राजनीति में एक गहरी छाप और प्रभाव छोड़ना चाहते थे. पीएम के रूप में उन्होंने भारत को एक नया आकार देने की कोशिश की. इस दिशा में युवाओं की ओर उनका ध्यान था.



राजीव गांधी के ही कार्यकाल में 61वां संविधान संशोधन लाया गया. इस संशोधन ने न सिर्फ देश की राजनीति में एक नया मोड़ लाया बल्कि राष्ट्रयज्ञ में युवाओं की भागीदारी को भी सुनिश्चित किया. लोकसभा सचिवाल की तरफ से छपी किताब, 'कॉन्स्टिट्यूशन अमेंडमेंट इन इंडिया', जिसे डॉ आर सी भारद्वाज द्वारा संपादित किया गया है, में इस बात का जिक्र किया गया है.


61वां संशोधन विधेयक 13 दिसंबर 1988 को लोकसभा में पेश किया गया. यह विधेयक बी शंकरानंद की तरफ से संसद के निचले सदन लोकसभा में लाया गया था. बी शंकरानंद तत्कालीन जल मंत्री हुआ करते थे. इस विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 326 में संशोधन किए जाने का प्रावधान था, जिसमें लोकसभा चुनाव और राज्यों की विधानसभा चुनाव में वयस्क मताधिकार की उम्र में संशोधन करने की मांग की गई थी.


इस विधेयक पर 14 और 15 दिसंबर 1988 को लोकसभा में बहस हुई थी, और 15 दिसंबर को पारित किया गया था. राज्य सभा ने 16, 19 और 20 दिसंबर 1988 को विधेयक पर बहस की और लोकसभा द्वारा किए गए संशोधन को अपनाने के बाद 20 दिसंबर 1988 को इसे पारित कर दिया. इसके साथ ही मताधिकार की आयु 21 से घटकर 18 वर्ष कर दी गई.


राजनीतिक जानकार यह बताते हैं कि तत्कालीन सरकार की तरफ ये चुनाव सुधार इसलिए लाए गए ताकि युवाओं की एक नई खेप को मतदान का अवसर मिले. चूंकि, राजीव गांधी की मंशा जाहिर तौर पर रही होगी कि पिछले चुनाव की अभूतपूर्व जीत को 9वीं लोकसभा में भी दोहराई जाए. उन्हें ऐसा लगता था कि वे युवाओं से ज्यादा अच्छे से कनेक्ट हो पाएंगे.


मगर 1989 के लोकसभा चुनाव के नतीजे त्रिशंकु लोकसभा हुए. चुनाव आयोग की तरफ से जारी 9वीं लोकसभा के स्टेटिकल रिपोर्ट के मुताबिक, 9वीं लोकसभा के सदस्यों का चुनाव करने के लिए 1989 के आम चुनाव के दौरान मतदाता भारी संख्या में निकले. मगर किसी भी पार्टी के लिए चुनाव का परिणाम संतोषजनक नहीं था क्योंकि कोई भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी, इस तरह 1984 में भारी बहुमत से सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी 9वीं लोकसभा में सत्ता से बाहर थी.



इस दौरान गठबंधन की सियासत ने अपने पांव पसारे. वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी सहित विभिन्न विपक्षी दल राष्ट्रीय मोर्चा के नेतृत्व में वी पी सिंह की अल्पसंख्यक सरकार बनाने के लिए एक साथ हुए. हालांकि, कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार का हिस्सा होने के बजाय बाहर से सरकार का समर्थन करना पसंद किया.


बहरहाल, इस लोकसभा चुनाव में यह खास था कि देश की 18 साल की युवा पीढी जिन्हें अब तक कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया था, वे भी राजनीति के मुख्या धारा में आ गई. इस तरह उन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करने का अवसर मिला और वे भी राजनीतिक प्रक्रिया का अंग बन गए.