(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Ghosi Bypoll: एक या दो नहीं पूरे पांच वजह जिससे घोसी उपचुनाव में बीजेपी को मिली करारी शिकस्त, जानिए
घोसी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने बीजेपी उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को एक बड़े मुकाबले में शिकस्त दे दी है. बीजेपी को मिली इस हार की कई वजहें हैं , जिसमें ये पांच कारण प्रमुख है.
Ghosi Bye-Poll Results 2023: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की घोसी उपचुनाव को इंडिया और एनडीए गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण मुकाबले के तौर पर देखा जा रहा था. हालांकि, इस सीट पर आए चुनाव के नतीजों से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने बीजेपी के दारा सिंह चौहार को भाड़ी मतो के अंतर हरा दिया है. दोनों के बीच जीत का फासला करीब 42 हजार वोटों से भी अधिक का रहा. इस चुनाव में सपा प्रत्याशी को विपक्षी गठबंधन के सभी साथियों का समर्थन प्राप्त था. इस हार से जहां एनडीए का मनोबल डाउन होगा वहीं, इस जीत से सपा प्रमुख अखिलेश यादव का दबदबा इंडिया अलायंस में आगे दिख सकता है.
घोसी उपचुनाव में सपा ने सुधाकर सिंह को अपने पूर्व विधायक और बीजेपी कैंडिडेट्स दारा सिंह चौहान के खिलाफ मैदान में उतारा था. दारा सिंह चौहान 2022 में सपा के टिकट पर यहां पर जीत कर आए थे, जिसके बाद वह बीजेपी में चले गए और उपचुनाव में पार्टी की ओर से उम्मीदवार बनाए गए. इस सीट पर चुनाव प्रचार के दौरान कई मंत्रियों और जानेमाने दिग्गज नेताओं का ताता लगा हुआ था. साथ इस चुनाव में पूरा यादव परिवार और दूसरी तरफ खुद सीएम योगी भी मैदान में लगे थें. इस सीट पर बीजेपी की हार को लेकर कई कारण बताए जा रहे हैं, जिसमें से ये पांच वजह सबसे सटीक जान पड़ता है.
पहला कारण बीजेपी उम्मीदवार का दलबदलु होना
बीजेपी के उम्मीदवार दारा सिंह पर पहले से दलबदल का एक दाग लगा हुआ था, जिसे इस हार में एक बड़ी वजह बताई जा रही है. दारा सिंह 2022 के घोसी चुनाव में सपा से चुनाव में जीत दर्ज की थी, जबकि एक साल बाद ही वो विधायिकी से इस्तिफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए. यह पहली बार नहीं की चौहान एक पार्टी से दूसरी में गए थें, इससे पहले वो राज्य की सभी दलों में रह चुके हैं. वो कांग्रेस से सपा में, सपा से बसपा में, बसपा से बीजेपी में, बीजेपी से फिर सपा में और आखिरी बार सपा से एक बार फिर बीजेपी में शामिल हुए. कहा जा रहा है कि दारा सिंह की इस दल-बदल राजनाति की वजह से हाल हुई है.
इस बार चाचा शिवपाल का चला जादू
सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के साथ चुनावी मैदान में उतरने से बीजेपी को एक झटका लगा है. शिवपाल सिंह यादव इस बार एक सुर में अखिलेश के साथ कंधा से कंधा मिलाए नजर आ रहे थे. जबकि इससे पहले दोनों चाचा-भतिजा में समय-समय पर दूरी नजर आ रही थी. यहां तक कि एक समय शिवपाल सिंह ने सपा से अलग एक पार्टी भी बना ली थी, हालांकि बाद में उन्होंने अपनी नई पार्टी का सपा में विलय कर दिया. इस चुनाव में दोनों का एक साथ आना भी बीजेपी की हार का एक बड़ा फैक्टर है.
गठबंधन इंडिया के साथी का एक साथ आना
2024 लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए को चुनौती देने के लिए बनी 28 विपक्षी पार्टियों की इंडिया अलायंस भी बीजेपी की हार का एक कारण है. इस सीट पर जहां बीजेपी अपने घटक दलों के साथ चुनाव प्रचार में थी वहीं, सपा के साथ सभी विपक्षी पार्टियां का समर्थन देखने को मिला था. साथ कांग्रेस समेत अन्य पार्टी भी बिना अपना उम्मीदवार उतारे सपा को समर्थन दे रही थी. घोसी उपचुनाव में इंडिया अलायंस के एक साथ आने से बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ा और सपा को इससे फायदा पहुंचा है.
मुख्तार अंसारी और अखिलेश का पीडीए फॉर्मूला
सपा प्रमुख अखिलेश यादव पिछली विधानसभा चुनाव में मिली तगड़ी हार झेलने के बाद से एक नई रणनीति पर काम कर रहे हैं. उन्होंने यूपी की जातीय समीकरण को साधने के लिए पीडीए फॉर्मूला के तहत एक जाल बुना है. पीडीए का फुल फॉर्म पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक रखा रहा है. इस समीकरण में सपा प्रमुख स्वामी मौर्य के साथ राज्य की इन वोट बैंक को अपनी ओर करने के की प्लान के तहत आगे बढ़ रहे हैं. साथ ही ये क्षेत्र मुख्तार अंसारी के अधिन भी पड़ता है, जहां से वो करीब पांच बार विधायक रह चुके हैं. इस साल भले ही उन्हें दस साल की जेल हुई हो लेकिन इस क्षेत्र पर उनका पकड़ अभी भी है.
मायावती भी हैं एक बड़ी वजह
बीजेपी के दारा सिंह चौहान की हार की एक प्रमुख कारण मायावती की पार्टी बसपा को बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि बसपा का घोसी सीट से अपने उम्मीदवार को नहीं उतारने का फैसला बीजेपी को नुकसान पहुंचाया है. इससे पहले मिर्जापुर में बसपा ने उम्मीदवार उतार कर गेम चेंज कर दिया था, उस चुनाव में बीजेपी ने आसानी से सपा के सीट पर कब्जा कर लिया था. जबकि इस बार ऐसा नहीं हो सका. साथ ही बसपा के चुनावी मैदान में न उतरने से उसकी पूरी मुस्लिम वोट सपा की ओर चली गई, जिससे सपा को यहां से आसान जीत मिली.