Gujarat Assembly Elections 2022 : गुजरात में चुनाव की वजह से सियासी माहौल काफी गर्म चल रहा. यहां सारे सियासी दल एक-दूसरे से बेहतर होने का दावा कर रहे हैं. वहीं इस गुजरात विधानसभा चुनावों में पहली बार राज्य की सभी 182 सीटों पर चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी सिर्फ बीजेपी नहीं बल्कि मौजूदा मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के लिए भी खतरा है. 


कांग्रेस के लिए अपने 2017 के प्रदर्शन को दोहराना अभी भी मुश्किल रास्ता है.  कांग्रेस को 2017 के चुनाव में तीन जमीनी आंदोलनों के कारण जो बड़ा मौका मिला, वह इस चुनाव में नहीं है. ये आंदोलन पाटीदार अनामत आंदोलन, कोटा में ओबीसी आंदोलन और ऊना में मारपीट की घटना के खिलाफ दलित आंदोलन था.


तीनों विरोध सत्ता धारी पार्टी बीजेपी  के खिलाफ जाति आधारित शिकायत की भावना पर आधारित थे और कांग्रेस के समर्थन में बहुत काम आए. नोटबंदी और जीएसटी के खिलाफ जनता के आक्रोश से भी कांग्रेस को फायदा हुआ था. 


बेशक इस बार पाचीदार आंदोलन न हो लेकिन कांग्रेस के लिए मोटे तौर पर तीन सकारात्मक बातें हैं जो पार्टी को  अभी भी गुजरात की कई सीटों पर मजबूती से खड़ा करती है. 


2007 और 2012 के चुनावों में भी ऐसा लग रहा था की कांग्रेस तस्वीर में कहीं नहीं है ;लेकिन पार्टी ने एक अच्छा वोट शेयर हासिल किया था.दल-बदल और नेतृत्व की कमी के बावजूद, कांग्रेस के पास अभी भी आधार और संगठन के मामले में राज्य में अपने मूल तत्व बरकरार है. 


आइए इन तीन तत्वों को लेकर बात की जाए :



वोट शेयर
मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के चरम पर थी तब भी, कांग्रेस ने 38 प्रतिशत और उससे अधिक के स्थिर वोट शेयर को बरकरार रखा था. ख़ास बात यह है कि पार्टी आज तक गुजरात में किसी भी विधानसभा चुनाव में 30 प्रतिशत के वोट शेयर से नीचे नहीं गिरी है. हालांकि, 1998 के बाद के चुनाव काफी हद तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहे हैं. अब देखना यह होगा कि आप या AIMIM जैसे नए खिलाड़ियों के चुनाव मैदान में उतरने के बाद से कांग्रेस को कितना नुकसान होता है. 


विधानसभा सीट, जहां नहीं हारी पार्टी 
करीब एक दर्जन सीटें ऐसी भी हैं जो पार्टी का गढ़ मानी जाती है. खेड़ब्रह्मा, दरियापुर, जमालपुर-खड़िया, जसदान, बोरसाद, महुधा, व्यारा, दांता, कपराडा, वंसदा, भिलोदा और वडगाम ऐसी सीटें है जो कांग्रेस पिछले दो दशकों से नहीं हारी है. हालाँकि, इनमें से कई सीटों पर कांग्रेस को बीजेपी  के साथ-साथ आप, AIMIM और भारतीय ट्राइबल पार्टी की उपस्थिति के कारण इस बार चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. 


कुछ क्षेत्रों में मज़बूत उपस्थिति
आदिवासी और अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर कांग्रेस काफी मजबूत है. पार्टी ने आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी लगातार अपना आधार बनाए रखा है. ख़ास तौर से उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र के कुछ हिस्सों में. सूचीबद्ध सीटों में जमालपुर खड़िया और दरियापुर जैसी मुस्लिम बहुल सीटों को छोड़कर, अन्य सभी मुख्य रूप से ग्रामीण सीटें हैं. 


सीएसडीएस के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात के दलितों के बीच कांग्रेस का समर्थन वास्तव में 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव के बीच बढ़ा है. भले ही यह अन्य सामाजिक समूहों के बीच गिर गया हो.