Gujarat Election 2022: बीजेपी ने 20 वर्षों में पहली बार ईसाई प्रत्याशी को दिया टिकट, जानिए कौन है ये कैंडिडेट
बीजेपी ने 20 वर्षों में पहली बार गुजरात की व्यारा विधानसभा सीट से ईसाई प्रत्याशी मोहन कोंकणी को चुनावी मैदान में उतारा है. वह कांग्रेस के पुनाजी गामित जो 2007 से व्यारा सीट पर काबिज हैं उन्हे टक्कर देंगे.
Mohan Konkani: गुजरात विधानसभा चुनाव में लगभग 20 वर्षों में पहली बार बीजेपी ने चुनावी मैदान में ईसाई धर्म के व्यक्ति को चुनावी मैदाने में उतारा है. बीजेपी ने गुजरात की व्यारा सीट से ईसाई उम्मीदवार मोहन कोंकणी को टिकट दिया है. मोहन कोंकणी कांग्रेस के पुनाजी गामित के खिलाफ चुनावी जंग लड़ेंगे. यह लड़ाई काफी रोचक रहने वाली है क्योंकि पुनाजी गामित व्यारा सीट से चार बार एमएलए रह चुके हैं.
मोहन कोंकणी एक समाजिक कार्यकर्ता और किसान हैं. वह डोलवन तालुका के हरिपुरा गांव के रहने वाले हैं. कोंकणी वर्ष 1995 से बीजेपी के साथ जुड़े हुए हैं. बीजेपी की ओर से तापी जिले की विधानसभा सीट व्यारा से खड़े हुए हैं. यह क्षेत्र एक आदिवासी बहुल इलाका है जहां ईसाई समुदाय का वोट काफी महत्व रखता है. मोहन कोंकणी धर्मांतरण करने के बाद ईसाई बने थे.
तापी जिले के पंचायत प्रमुख है मोहन कोंकणी
व्यारा विधानसभा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवार में कांटे की टक्कर होने वाली है क्योंकि व्यारा विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ है. व्यारा विधानसभा क्षेत्र के 2.23 लाख मतदाता में 45 प्रतिशत मतदाता ईसाई धर्म के हैं. कोंकणी वर्तमान में तापी जिले के पंचायत प्रमुख के पद पर आसीन है. उन्होनें 2015 में तापी जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस के सहकारी नेता मावजी चौधरी से चुनाव लड़ा था और उन्हें पंचायत चुनाव में मात दी थी.
72,000 मतदाताओं से मिलेगा सर्मथन-कोंकणी
मोहन कोंकणी ने टिकट मिलने के बाद बीजेपी का आभार व्यक्त किया. उन्होनें बीजेपी से कहा कि मुझ पर विश्वास कर उम्मीदवार बनाने के लिए बीजेपी का धन्यवाद. मैं 1 दिंसबर को गुजरात विधानसभा के होने वाले चुनावों में इतिहास रचूंगा इस बात पर मुझे पूरा विश्वास है.
आदिवासियों का ओडिशा के बाद गुजरात सबसे बड़ा वोट बैंक
कांग्रेस ने वर्षो से एक ही ईसाई उम्मीदवार को उतारा है. हालांकि व्यारा विधानसभा क्षेत्र में 27 आदिवासी सीटों में से कम से कम 8 सीटें मुख्य रूप से ईसाई बहुल सीट है. 2007 के चुनावों के बाद से ईसाई आदिवासियों की बीजेपी के प्रति कट्टरता काफी कम हो गई है. राज्य सरकार की सहकारी और डेयरी योजनाए आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए काफी लाभदायक सिद्ध रही हैं क्योंकि यह दोनों ही जनजातियों के सदस्यों को आर्थिक लाभ पहुंचा रहे हैं. गुजरात में आदिवासी समुदाय का ओडिशा के बाद सबसे बड़ा वोट बैंक है.