Many Important Faces of Patidar Movement came to politics: गुजरात विधानसभा के 2017 के चुनावों में पाटीदार आंदोलन प्रमुख मुद्दा था लेकिन 5 साल बाद मानों यह आंदोलन ठंडे बस्ते में चला गया हो. पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के प्रमुख चेहरे आंदोलन छोड़ राजनीति में शामिल हो गए हैं. चुनाव पर आंदोलन के प्रभाव को समझते हुए सभी राजनितिक दलों ने पाटीदार आंदोलन के नेताओं को अपने खेमे में लाने की कोशिशें की जो सफल भी रहीं.
हार्दिक पटेल बने बीजेपी का हिस्सा
पाटीदार आंदोलन के सबसे बड़ा चेहरा हार्दिक पटेल बीजेपी में शामिल हो गए. वहीं इनके अलावा भी कई प्रमुख चेहरे जैसे अल्पेश कथीरिया, धार्मिक मालवीय, रेशमा पटेल, चिराग पटेल और वरूण पटेल ने विभिन्न राजनितिक दलों का दामन थाम लिया है. राज्य में आनंदीबेन सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा करने वाले आंदोलन के पोस्टर बॉय हार्दिक पटेल ने 2020 में पहले कांग्रेस पार्टी का हाथ थामा था जिसमें वह राज्य इकाई के प्रमुख बने. पार्टी में एक शीर्ष पद पर रहने के बावजूद उन्होंने गुजरात विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. इस बार बीजेपी की ओर से वीरमगाम विधानसभा क्षेत्र से वो चुनाव लड़ रहे हैं.
सबसे पहले इन नेताओं ने छोड़ा था आंदोलन
हार्दिक के अलावा आंदोलन के बड़े नाम अल्पेश कथीरिया और धार्मिक मालवीय ने आम आदमी पार्टी के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की. धार्मिक मालवीय ने मीडिया से बातचीत में कहा कि वह पीएएस को बंद करने के लिए एक विकल्प की तलाश कर रहे हैं. रेशमा पटेल जो हार्दिक पटेल की करीबी मानी जाती हैं और चिराग पटेल, वरूण पटेल इन तीनों ने ही सबसे पहले आंदोलन छोड़कर किसी राजनीतिक दल का दामन थामा था. इन्होंने 2017 के गुजरात विधानसभा के चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थाम लिया था. हालांकि रेशमा ने बाद में बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुई. लेकिन कांग्रेस से टिकट न मिलने पर आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ गईं.
प्रमुख चेहरों के राजनीति में आने से 'नाराज हैं लोग'
पाटीदार आंदोलन में 14 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी और कई लोगों को सलाखों के पीछे जाना पड़ा था. कहा जाता है कि सभी लोग आंदोलन के उद्देश्य को पूरा न होने के कारण उन सभी आंदोलनकारियों से नाराज हैं. जो आंदोलन को छोड़कर राजनीति में शामिल हो गए. खबर ये भी है कि बीजेपी का एक खेमा हार्दिक पटेल के आवगमन से खुश नहीं है क्योंकि आंदोनल ने आनंदीबेन की सरकार को भारी नुकसान पहुंचाया था.