Gujarat Election 2022: पीएम मोदी के गृहराज्य गुजरात में चुनावों की तारीखों का ऐलान होना वाला है. चुनाव आयोग के ऐलान से पहले राज्य में बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच तीखी जुबानी जंग देखने को मिल रही है. AAP के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया को लेकर बीजेपी ने मोर्चा खोल दिया है, क्योंकि इटालिया पाटीदार समाज से आते हैं, ऐसे में बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं को उनके खिलाफ मैदान में उतार दिया गया है. इटालिया ने पीएम मोदी पर विवादित बयान दिया था, जिसे खूब उछाला जा रहा है. इस पूरी कवायद के पीछे गुजरात चुनाव में पटेल फैक्टर को माना जा रहा है. खासतौर पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी की इस पर पैनी निगाहें हैं.
गुजरात में पटेल फैक्टर का कितना असर?
गुजरात में हर विधानसभा और लोकसभा चुनावों में पटेल फैक्टर को काफी तवज्जो दी जाती है. तमाम बड़े और छोटे दल इस समाज को अपनी तरफ खींचने की हर कोशिश करते हैं. इस बार भी बीजेपी और आम आदमी पार्टी इसी कोशिश में जुटी हैं. ये तैयारी अभी की नहीं, बल्कि कई महीने पहले ही शुरू कर दी गई थी.
अब पहले गुजरात में पटेल समुदाय की भागीदारी के कुछ आंकड़े आपको दिखाते हैं. गुजरात में पटेलों की आबादी करीब डेढ़ करोड़ यानी कुल आबादी का करीब 15 फीसदी है. इस आबादी के आंकड़े को अगर सीटों में बदलकर देखें तो गुजरात की कुल 182 सीटों में से 70 सीटों पर पाटीदार समाज का प्रभाव है.
बीजेपी ने साधे समीकरण
गुजरात में बीजेपी ने पाटीदार समीकरण को साधने के लिए पहले ही जुगत लगा ली थी. सबसे पहले ये तब हुआ जब गुजरात में मुख्यमंत्री को बदला गया. सितंबर 2021 में अचानक खबर आई कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने अपना इस्तीफा दे दिया है. बीजेपी के लिए ये कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि इससे पहले कई राज्यों में बीजेपी अपने इस कारगर फॉर्मूले का इस्तेमाल कर चुकी है. इस इस्तीफे को बीजेपी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना गया, कहा गया कि गुजरात में अपने प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए ऐसा किया गया है.
दरअसल बीजेपी गुजरात में 1995 के बाद अजेय रही है. यानी कांग्रेस लाख कोशिशों के बावजूद मोदी और शाह के विजय रथ को यहां नहीं रोक पाई, लेकिन पिछले यानी 2017 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीटों का अंतर काफी कम था. जिसकी सबसे बड़ी वजह पाटीदार आंदोलन और इसकी अगुवाई करने वाले हार्दिक पटेल को माना गया. हार्दिक पटेल के होने का फायदा पार्टी को हुआ और 182 में से 77 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की. यानी 16 सीटें ज्यादा मिली और वोट शेयर भी बढ़ा.
बीजेपी में पटेलों का 'हार्दिक' स्वागत
अब बीजेपी पहले ही रुपाणी को हटाकर भूपेंद्र भाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाकर अपना दांव खेल चुकी है, वहीं पार्टी के लिए दूसरा बड़ा फायदा ये हुआ कि हार्दिक पटेल कांग्रेस से नाराज होकर बीजेपी में शामिल हो गए. जिससे पटेल समुदाय का एक बड़ा वर्ग सीधे बीजेपी के कब्जे में आ सकता है. उधर कुछ महीने पहले बीजेपी की सरकार ने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था और इसमें पाटीदार समाज से आने वाले मंत्रियों को जगह दी गई थी. मंत्रिमंडल में अभी कुल 7 मंत्री पटेल समाज से हैं.
AAP का क्या है पाटीदार समीकरण
अब बात आम आदमी पार्टी की करते हैं. जो गुजरात में अपनी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ रही है, पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद गुजरात में कई रैलियां कर चुके हैं. फोकस मोदी-शाह के गढ़ में सेंध लगाने का है. अगर पाटीदार समाज के फॉर्मूले की बात करें तो इसका इस्तेमाल AAP 2021 में ही कर चुकी है. गुजरात नगर निकाय चुनावों में आम आदमी पार्टी ने बड़ी संख्या में पटेल उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. नतीजा काफी चौंकाने वाला रहा. पार्टी सूरत नगर निगम में 27 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर आ गई. ये केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए गुजरात में बड़ा बूस्ट था. जिसका खूब जोर-शोर से प्रचार भी किया गया, खुद केजरीवाल नतीजों के बाद गुजरात गए और रोड शो किया.
पाटीदार समाज में देखा जाता है कि यहां युवा नेता काफी ज्यादा पॉपुलर होते हैं. हार्दिक पटेल हों या फिर दलित नेता जिग्नेश मेवाणी... हर किसी ने युवाओं पर अपनी छाप छोड़ने का काम किया. इसी तरह गोपाल इटालिया भी पाटीदार समाज से आते हैं. उनका भी इस समाज में काफी असर माना जाता है, यही वजह है कि इस युवा नेता को आम आदमी पार्टी ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया. जिन्हें हार्दिक पटेल की काट के तौर पर देखा जा रहा है.
प्रचार में पिछड़ी कांग्रेस
जिस कांग्रेस पार्टी ने गुजरात में पिछले चुनाव में काफी बेहतर प्रदर्शन किया था, वो फिलहाल गुजरात से गायब नजर आ रही है. पार्टी के बड़े नेता फिलहाल गुजरात की तरफ नहीं देख रहे हैं. इसी बीच बताया जा रहा है कि कांग्रेस खोडलधाम ट्रस्ट के चेयरमैन नरेश पटेल को साथ लेने की कोशिश कर रही है. हालांकि वो सक्रिय राजनीति में आने से साफ इनकार कर चुके हैं. फिलहाल तमाम सर्वे बता रहे हैं कि कांग्रेस गुजरात में अपने दूसरे नंबर की पोजिशन से फिसल सकती है.
गुजरात में हार और जीत का देशव्यापी असर
बीजेपी यूं तो अपने हर चुनाव को पूरी ताकत के साथ लड़ती है और तमाम बड़े नेता प्रचार के लिए मैदान में उतरते हैं, लेकिन गुजरात का किला सबसे अहम माना जाता है. क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह खुद गुजरात से आते हैं. ऐसे में ये किला बचाना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हमेशा से रही है. पिछले 27 सालों से बीजेपी गुजरात पर एकछत्र राज कर रही है, ऐसे में किसी भी पार्टी के लिए बीजेपी को हराना किसी बड़े और अहम किले को भेदने जैसा है.
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