Gujarat Election 2022: गुजरात चुनाव का पूरा ध्यान सौराष्ट्र पर आकर्षित हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दोनों ने सोमवार, 21 नवंबर को इस क्षेत्र में जमकर चुनाव प्रचार किया है. पिछले विधानसभा चुनाव 2017 में बीजेपी का सौराष्ट्र की विधानसभा सीटों पर सबसे खराब प्रदर्शन रहा था. यहां की ज्‍यादातर सीटे कांग्रेस का गढ़ भी मानी जाती है. गुजरात में पहले चरण की वोटिंग 1 दिसंबर से शुरू होने वाली है. वहीं 8 दिसंबर को चुनाव के नतीजे आने हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को सोमनाथ मंदिर का भी दौरा किया.


इस विधानसभा क्षेत्र में गुजरात की 182 सीटों में से 48 सीटें हैं, जो मध्य गुजरात के बाद सबसे ज्यादा सीटों में दूसरे स्थान पर है. मध्य गुजरात में 61 सीटें हैं. मोदी ने अपना पहला चुनाव 2002 में राजकोट -2 सीट से लड़ा और जीता भी था. 


आइये जानते है कौन से फैक्टर इस क्षेत्र को अलग बनाते हैं:


जाति बनाम सांप्रदायिकता 


सौराष्ट्र को अलग बनाने का एक मुख्य कारण राजनीतिक परिदृश्य में जाति विभाजन की केंद्रीयता है. इसने एक क्रॉस-कास्ट हिंदू एकीकरण को  रोका है जो बीजेपी  गुजरात के बाकी हिस्सों में पाने में कामियाब रही. सौराष्ट्र बाकी हिस्सों के मुक़ाबले काफी कम हिंसा से प्रभावित था. सौराष्ट्र के राजनीतिक मंज़र पर पाटीदार, क्षत्रिय और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) जैसे कोली, मेर और वाघेर के तहत समूहित विभिन्न जातियां प्रभावी है. जातिगत वर्चस्व के उच्च स्तर के कारण, दलितों के खिलाफ हिंसा भी ज़्यादा है.  ऊना में कोड़े मारने की घटना सौराष्ट्र के गिर-सोमनाथ जिले में हुई थी.
 
चुनावो में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही इस  क्षेत्र में सभी अलग-अलग जाति समूहों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती हैं. कुछ सीटों पर, दोनों पार्टियां एक ही जाति समूह के उम्मीदवारों को मैदान में उतारती हैं जो इस क्षेत्र में काफी लोकप्रिय  हैं, उदाहरण के लिए पोरबंदर में लड़ाई मुख्य रूप से मेर समुदाय के उम्मीदवारों के बीच होती है. सौराष्ट्र में भाजपा के स्थिरता का एक बड़ा कारण सौराष्ट्र के सबसे प्रभावशाली पाटीदार नेता केशुभाई पटेल को दरकिनार करना है. 


अधिक ग्रामीण जनसंख्या


गुजरात भारत के सबसे शहरीकृत राज्यों में से एक है. 2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात का लगभग 43 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में रहता है. लेकिन सौराष्ट्र में, राजकोट, पोरबंदर, जामनगर और भावनगर जैसे कुछ शहरी क्षेत्रों को छोड़कर बाक़ी बचे क्षेत्र ग्रामीण है. यही एक कारण है कि यह क्षेत्र उस तरह के शहरी राजनीतिक वर्चस्व के लिए अनुकूल नहीं है, जिसे भाजपा ने 2000 और 2010 के दशक में मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में पूरा किया, जिससे कई शहरी सीटों पर उसे भारी सफलता मिली है. 

कृषि संकट भी ज्यादा है. ख़ास तौर पर कपास उगाने वाले किसानों के बीच, जो इस क्षेत्र की प्रमुख फसल है. पाटीदार आंदोलन काफी हद तक कृषि संकट और युवाओं के लिए नौकरियों की कमी से प्रेरित था. 


मजबूत स्थानीय नेता


सौराष्ट्र में राजनीति भी बहुत ज़्यादा स्थानीय है. काफी नेताओं का दबदबा है. मोदी के नेतृत्व में, बीजेपी ने सौराष्ट्र में अपने दबदबे  को बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर कांग्रेस के मजबूत स्थानीय नेताओं के साथ-साथ निर्दलीय लोगों पर भी भरोसा किया है.


उदाहरण के लिए, 1990 के बाद से द्वारका निर्वाचन क्षेत्र में पबुभा विरंभ माणेक अपराजित रहे हैं. उन्होंने 2002 में निर्दलीय के रूप में अपने पहले तीन चुनाव जीते थे.  2007 के चुनावों से ठीक पहले बीजेपी में चले गए. तब से वे बीजेपी में हैं. 

एक और मजबूत स्थानीय नेता जो बीजेपी से कांग्रेस में चले गए, धोराजी से पाटीदार बाहुबली विठ्ठल रडाडिया थे. हाल ही में बीजेपी ने जसदण से कांग्रेस विधायक कुंवरजी बावलिया को अपनी पार्टी में शामिल किया. सौराष्ट्र के कम से कम नौ कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और 2017 के बाद से बीजेपी  में शामिल हो गए.