Gujarat Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में राज्य का सरताज कौन होगा, इसके लिए बीजेपी, कांग्रेस और गुजरात में पहली बार चुनाव लड़ने जा रही नई नवेली आम आदमी पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. राज्य में पहले चरण में 89 सीटों के लिए 1 दिसंबर को मतदान होंगे और दूसरे चरण के मतदान 5 दिसंबर को होंगे. लेकिन बीजेपी और कांग्रेस गुजरात की 182 में से 27 सीटों पर खासतौर पर ज्यादा फोकस कर रही हैं. 


राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 13 अनुसूचित जाति (SC) और 27 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं. जबकि 13 अन्य सीटें ऐसी हैं जहां आदिवासी वोटर निर्णायक हैं. इसको देखते हुए गुजरात के आदिवासियों को रिझाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही कोशिशें कर रही हैं. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में एसटी सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी को पछाड़ते हुए बढ़त हासिल की थी. कांग्रेस ने 27 में से 15 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी की झोली में महज 9 सीटें आई थीं. जबकि कांग्रेस की सहयोगी रही भारतीय ट्राइबल पार्टी को 2 सीटें हासिल हुई थईं. वहीं, एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहा था. 


आदिवासी कर चुके हैं प्रदर्शन
पिछले पांच सालों में कांग्रेस के तीन एसटी विधायक- अश्विन कोतवाल, जीतू चौधरी और मंगल गावित ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाईन कर ली है. इस दौरान कांग्रेस के एक अन्य विधायक अनिल जोशियारा और पंचमहल से निर्दलीय विधायक का निधन हो गया, इससे पार्टी को झटका लगा है. हालांकि बीजेपी को भी इन सीटों पर चिंता सता रही है क्योंकि तापी और नर्मदा नदियों के किनारे रहने वाले दक्षिण गुजरात के आदिवासियों ने केंद्र की मोदी सरकार की तापी-नर्मदा नदी-जोड़ने की परियोजना का विरोध किया था.. 


बेहतर प्रदर्शन करना लक्ष्य
वहीं, विधायक अनंत पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस इस क्षेत्र में पांच बड़े विरोध-प्रदर्शन कर चुके हैं. विरोध-प्रदर्शन को तेज होता देख भूपेंद्र पटेल सरकार ने प्रदर्शनकारियों को आश्वासन दिया कि वह परियोजना को रोकने के लिए केंद्र से बात करेगी. इसके साथ ही कांग्रेस ने उत्तर, मध्य और दक्षिण गुजरात तक में फैली आदिवासी सीटों पर अपने पिछले प्रदर्शन को बनाए रखने के लिए भी रणनीति पर काम कर रही है. 


यही वजह है कि एसटी सीटों के महत्व को समझते हुए पीएम मोदी और सांसद राहुल गांधी दोनों ही आदिवासियों का अपने भाषणों में जिक्र कर चुके हैं. उसके अलावा बीजेपी और कांग्रेस आदिवासियों के लिए किए गए उनके कामों का याद दिला रही हैं. इससे साफ है कि दोनों ही पार्टियां आदिवासी वोटों को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही हैं.


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