Pradhanmantri Series, H. D. Deve Gowda: भारतीय राजनीति के इतिहास में 1996 में ऐसा पहली बार हुआ जब दो साल में ही देश को तीन प्रधानमंत्री मिले. सबसे पहले बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. जब वो लोकसभा में बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन सरकार बनाने का दावा नहीं किया और इसके बाद यूनाइटेड फ्रंट ने जब सरकार बनाने की सोची तो फिर पीएम पद के लिए एचडी देवगौड़ा का नाम आया. उस समय कर्नाटक की राजनीति में देवगौड़ा का नाम काफी बड़ा था और उनकी छवि साफ-सुथरी थी. प्रधानमंत्री पद के दावेदार तो कई थे लेकिन देवगौड़ा के नाम पर सहमति बनई. ये भी काफी दिलचस्प है कि 1996 के चुनाव में सिर्फ 46 सीटें लाने वाली पार्टी जनता दल के नेता देवगौड़ा को पीएम पद मिला. उस वक्त नारा दिया गया, ‘रेस कोर्स से दौड़ा-घोड़ा, देवगौड़ा-देवगौड़ा.’ आज प्रधानमंत्री सीरीज में आपको बताते हैं कि देवगौड़ा के पीएम बनने की कहानी.


1996 में किसी को नहीं मिला बहुमत

1996 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. बीजेपी 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस 141 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी और जनता दल को 46 सीटें मिली थीं. सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया.


वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली बताते हैं, ''वाजपेयी की शपथ जबरदस्ती कराई गई थी. उनके पास ना पहले दिन बहुमत था ना आखिरी दिन. हालांकि, परंपरा यही है कि सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के आधार पर राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए न्यौता देते हैं और लोकतंत्र में चीजें परंपरा से चलती हैं.’’ इसके साथ ही कुर्बान अली ये भी बताते हैं कि उस वक्त ये आरोप भी लगाए गए ये सब ब्राह्मणवाद की वजह से हुआ. तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव, भावी पीएम वाजपेयी और राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा तीनों ब्राह्मण थे और तीनों ने ये रणनीति रची.


16 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम पद की शपथ ली. लेकिन वो लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाए और 13 दिन में ही सरकार गिर गई. इसके बाद कांग्रेस के हाथ में बाजी थी जिसके पास 141 सीटें थीं, लेकिन कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया. इसके बाद जनता दल, समाजवादी पार्टी और डीएमके जैसी करीब 13 पार्टियों के गठबंधन यूनाइटेड फ्रंट ने सरकार बनाने की सोची जिसे कांग्रेस ने समर्थन दिया. इसके बाद ये चर्चा शुरु हुई कि आखिर प्रधानमंत्री कौन बनेगा.


दिलचस्प ये था कि उस वक्त प्रधानमंत्री पद की रेस में कोई भी नहीं था लेकिन कई बड़े नाम चर्चा में रहे.


कुर्बान अली बताते हैं, ''ये बात भी उठी थी वीपी सिंह को पीएम बनाया जाए, लेकिन वो अपना घर छोड़कर भाग  गए. ज्योति बसु का नाम भी पीएम पद के लिए आगे आया लेकिन उनकी पार्टी नहीं मानी. चंद्रबाबू नायडू के नाम का भी प्रस्ताव हुआ लेकिन उन्होंने सीएम होने का हवाला देकर मना कर दिया. उसके बाद जीके मूपनार के नाम की चर्चा हुई जिन्होंने तब टीएमसी (Tamil Maanila Congress ) बनाई थी और उसमें चिदंबरम भी उनके साथ थे. दो तीन दिनों तक नामों पर चर्चा होती रही. उस समय नारायण दत्त तिवारी, माधावराव सिंधिया और अर्जुन सिंह भी कांग्रेस से अलग हो चुके थे और ये लोग भी विपक्ष में शामिल थे.’’



देवगौड़ा का नाम पीएम पद के लिए किसने आगे बढ़ाया? इस बारे में कुर्बान अली बताते हैं, ''पीएम पद को लेकर तमिलनाडु भवन में बैठक हुई. वहां पर किसी ने देवगौड़ा का नाम लिया और वो नाम चल पड़ा. देवगौड़ा का विरोध करने वालों में उन्हीं के साथी रामकृष्ण हेगड़े थे, लेकिन मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव सहित बाकी सभी लोगों ने उनके नाम पर सहमति जताई. वामपंथी दल,  चंद्रबाबू नायडु और मूपनार ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई. इस तरह एचडी देवगौड़ा को यूनाइटेड फ्रंट ने अपना नेता मान लिया और कांग्रेस ने भी समर्थन कर दिया. इस तरह देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने.''


एचडी देवगौड़ा एक जून 1996 को भारत के 11वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. वो इस पद पर 21 अप्रैल 1997 तक रहे.


लालू बने किंगमेकर

देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने में लालू यादव की अहम भूमिका थी. कुर्बान अली बताते हैं, ''लालू ने उस समय खुद को किंगमेकर कहना शुरु किया था. लालू ने तब कहा कि मैं किंग तो नहीं बना लेकिन किंगमेकर बन गया हूं. वो तब बिहार के मुख्यमंत्री थे और दिल्ली में डेरा डाले हुए थे. उन्होंने अपने कई साथियों को मंत्रिमंडल में शामिल भी कराया. ये एक नया प्रयोग था. लालू के काफी सासंद बिहार से चुन कर आए थे. सरकार को बनवाने में उनकी अहम भूमिका थी.’’ 



इसका जिक्र लालू ने अपनी बायोग्राफी 'गोपालगंज टु रायसीना: माई पॉलिटिकल जर्नी' में भी किया है. उन्होंने लिखा है, ''जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मैं किंगमेकर की भूमिका में हुआ करता था. मैंने प्रधानमंत्री के रूप में कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी देवगौड़ा का नाम प्रस्तावित किया. कांग्रेस और वामपंथी दलों ने मेरी पसंद का समर्थन किया.''



उनके प्रधानमंत्री बनने के करीब 11 महीनों बाद ही कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. कुर्बान अली बताते हैं, ''कांग्रेस का इतिहास रहा है कि अगर वो किसी दल को समर्थन देती है तो ज्यादा दिन तक सरकार नहीं चलने  देती. ऐसा चरण सिंह के साथ  हुआ, चंद्रशेखर के साथ हुआ और देवगौड़ा के साथ. जब देवगौड़ा पीएम बने, उसी बीच नरसिम्हा राव को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और सीताराम केसरी अध्यक्ष बने. उन्होंने सवा साल बाद देवगौड़ा से निजी मतभेद के चलते समर्थन वापस ले लिया और देवगौड़ा को इस्तीफा देना पड़ा.''


देवगौड़ा के बारे में- 

एचडी देवगौड़ा कर्नाटक के दिग्गज नेताओं में से एक हैं. जिस समय उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया उस वक्त वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. वो ना मुख्यमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा कर पाए और ना ही प्रधानमंत्री के तौर पर... कुछ समय पहले उन्होंने कहा था कि उन्हें इस बात का अफसोस है. 


एच.डी. देवेगौड़ा का जन्म 18 मई 1933 को कर्नाटक के हासन जिले के होलेनारासिपुरा तालुक के हरदनहल्ली गांव में हुआ था. सिविल इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद देवेगौड़ा ने 20 साल की उम्र में ही राजनीति में कदम रख लिया.

एचडी देवगौड़ा की पत्नी का नाम चेन्नम्मा है उनके 4 बेटे और 2 बेटियां हैं. उनका एक बेटा कर्नाटक विधानसभा का सदस्य है जबकि दूसरा बेटा लोकसभा का सदस्य है.

1953 में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और 1962 तक इसके सदस्य बने रहे.

देवगौड़ा एक मध्यम वर्गीय कृषि परिवार से ताल्लुक रखते हैं और यही वजह है कि उन्होंने किसानों, वंचित और शोषित वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलाने के लिए आवाज़ उठाई.

28 साल की उम्र में गौड़ा निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़े और 1962 में वे कर्नाटक विधानसभा के सदस्य बन गए. मार्च 1972 से मार्च 1976 तक और नवंबर 1976 से दिसंबर 1977 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में रहे.

देवेगौड़ा ने 22 नवंबर 1982 को छठी विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी. सातवीं और आठवीं विधानसभा के सदस्य रहने के दौरान उन्होंने लोक निर्माण और सिंचाई मंत्री के रूप में कार्य किया. सिंचाई मंत्री के रूप में उन्होंने कई सिंचाई परियोजनाएं शुरू की. 1987 में उन्होंने सिंचाई के लिए अपर्याप्त धन आवंटन का विरोध करते हुए मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया.


देवगौड़ा आपातकाल के दौरान जेल में भी रहे.


1971 में लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की हार ने देवगौड़ा को बड़ा अवसर दिया. वह उस समय एक सशक्त विपक्ष नेता के रूप में उभरे जब पूरे देश में इंदिरा गाँधी की लहर थी.


1991 में वे हसन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद के रूप में चुने गए.  11 दिसंबर 1994 को वे कर्नाटक के 14वें मुख्यमंत्री चुने गए. 30 मई 1996 को देव गौड़ा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देकर भारत के 11वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.



देवगौड़ा अभी राजनीति में सक्रीय हैं और एचडी देवगौड़ा जनता दल सेक्युलर के अध्यक्ष हैं. वो कर्नाटक के हासन सीट से सांसद भी हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी जेडीएस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है और वो कर्नाटक के ही तुमकुर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं.


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