नई दिल्ली: वक्त का पहिया दशकों पीछे ले चलिए.. यह घटना 1968 के हरियाणा विधानसभा चुनाव की है. जब बड़े नेताओं के आपसी द्वंद का फायदा एक नौजवान नेता को मिला. 1968 में हरियाणा में मध्यावधि चुनाव हुए. उस दौरान कांग्रेस ने पूर्व सीएम भगवत दयाल शर्मा और दिग्गज नेता देवीलाल को टिकट नहीं दिया. देवीलाल ने कांग्रेस का पूरे राज्य में खूब प्रचार किया. रिजल्ट ये हुआ कि कांग्रेस 48 सीटों पर जीत दर्ज की. लेकिन देवीलाल के लिए दुख की बात यह थी कि उनके बेटे ओमप्रकाश चौटाला ऐलनाबाद से चुनाव हार गये. इसके बाद भगवत दयाल शर्मा और देवीलाल के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर नुराकुश्ती चलने लगी. इस तरह बढ़ते तनाव को देखते हुए इंदिरा गांधी ने एक रास्ता निकाला. उन्होंने कहा कि हरियाणा में जीता हुआ कोई विधायक ही मुख्यमंत्री बनेगा. हरियाणा में करीब एक हफ्ते तक तनाव चलता रहा. फिर अंतिम दो नाम दौड़ में बना रहा. देवीलाल गुट की तरफ से बंशीलाल का और भगवत दयाल शर्मा की तरफ से ओमप्रभा जैन का.. ज्यादातर जाट नेता बंशीलाल के पक्ष में थे. भगवत दयाल संख्या का मान रखते हुए बंशीलाल के पक्ष में हामी भर दिये.


इमरजेंसी और नसबंदी के दौर ने बंसीलाल के बारे में आम जनमानस में कठोर और तानाशाह नेता की धारणा बन गई. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब हरियाणवी औरतों ने उन्हें भागीरथ राजा की संज्ञा देते हुए गीत गाए थे, क्योंकि बंसीलाल ने हरियाणा के कोने-कोने में पानी पहुंचा दिया था.


बंसीलाल के बारे में कहा जाता था कि वे कभी एक जगह पर आराम से बैठते नहीं थे. एक महीने में 20 से अधिक दिन हरियाणा की अलग अलग जिलों का दौरा करते थे. उस वक्त हर गांव में पानी, बिजली और सड़क पहुंचाने का उन्हें जुनून था. इसीलिए उन्हें हरियाणा का विकास पुरुष भी कहा जाता है.


अपने अक्खड़पन, रूखे व्यवहार और सख़्त लहजे के लिए मशहूर बंसीलाल ने वकालत से अपने सियासी सफर की शुरुआत की. बंसीलाल का जन्म 1927 में हरियाणा के भिवानी जिले में हुआ था. 16 साल की उम्र में ही बंसीलाल पर्जा मंडल के सचिव बने. इसके बाद बंसीलाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी से वकालत की डिग्री हासिल की. 1957 में बंसीलाल को भिवानी बार काउंसिल का अध्यक्ष चुना गया. बार काउंसिल का अध्यक्ष बनने के बाद बंसीलाल ने हरियाणा की राजनीति में कदम रखने का फैसला किया.


हरियाणा के पूर्व मुख्य सचिव राम वर्मा ने एक मीडिया संस्थान के साथ इंटरव्यू में बताया था कि बंसीलाल ने 'आया राम गया राम' के ज़माने में हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद संभाला था. इसलिए उन्हें हमेशा ये चिंता रहती थी कि उनके विधायक कहीं पाला बदलने की योजना तो नहीं बना रहे. बंसी लाल कभी भी रात में ये जाने बगैर नहीं सोते थे कि उनका एक-एक विधायक और मंत्री उस दिन कहां है और किससे मिल रहा है. बंसी लाल को अक्सर इस बात में दिलचस्पी रहती थी कि उनके विरोधी पीठ पीछे उनके बारे में क्या सोच रहे हैं.


1959 में बंसीलाल को पहली बार जिला कांग्रेस कमेटी हिसार का अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी का जिला अध्यक्ष बनने के बाद बंसीलाल की कामयाबी का सिलसिला शुरू हो गया. इसके बाद बंसीलाल कांग्रेस वर्किंग कमेटी और कांग्रेस संसदीय बोर्ड के मेंबर बने. हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद बंसीलाल की किस्मत को चार चांद लग गए. 1967 में बंसीलाल पहली बार विधायक चुने गए. विधायक चुने जाने के कुछ दिन बाद ही बंसीलाल हरियाणा के सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए. 1972 में बंसीलाल चुनाव जीतकर दोबारा से सत्ता में वापसी हुई और वह 1975 तक दूसरी बार सीएम रहे.


इंदिरा गांधी और संजय गांधी के वफादार थे बंसीलाल
बंसीलाल को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी का करीबी माना जाता था. सीएम की कुर्सी जाने के बाद बंसीलाल इमरजेंसी के दौरान रक्षा मंत्री के पद पर रहे. इसी दौरान बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र की दोस्ती संजय गांधी से हो गई. इंदिरा गांधी और संजय गांधी के प्रति बंसी लाल वफादार थे. हरियाणा में मारुति फैक्ट्री को जमीन दिलाने में बंशीलाल ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसका बंशीलाल को राजनीतिक फायदा भी मिला. लेकिन बंसीलाल की सियासत को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब भजनलाल जनता पार्टी तोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. भजनलाल के आने के बाद बंसीलाल के किले में सेंध लगना शुरू हो गई. हालांकि 1985 में बंसीलाल दोबारा से राज्य के सीएम बनने में कामयाब हुए, पर 1987 में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. 1991 में जब कांग्रेस दोबारा सत्ता में वापस आई तो बंसीलाल की जगह भजनलाल को राज्य का सीएम बनाया गया. 1996 के चुनाव में बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाने का फैसला किया और बीजेपी के सहयोग के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुए.


कांग्रेस के हाथ का फिर मिला साथ
2000 में बंसीलाल की सियासत को तगड़ा झटका लगा. बंसीलाल की पार्टी राज्य में सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई और बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र भी चुनाव हार गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में भी बंसीलाल की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई. इसके बाद सुरेंद्र ने पिता से अलग लाइन लेते हुए हरियाणा विकास पार्टी का कांग्रेस में विलय का फैसला कर लिया. इसी दौरान बंसीलाल के दूसरे बेटे रणबीर सिंह महेंद्रा बीसीआई के अध्यक्ष बनने में कामयाब हुए.


2005 में बंसीलाल ने कांग्रेस की तरफ से चुनाव नहीं लड़ने निर्णय लिया. 2005 में बंसीलाल के दोनों बेटे सुरेंद्र और रणबीर चुनाव जीतने में कामयाब हुए. भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में सुरेंद्र को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया. मंत्री बनने के कुछ वक्त बाद ही एक विमान हादसे में बंसीलाल के बेटे सुरेंद्र का निधन हो गया. सुरेंद्र के निधन के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी ने हरियाणा की सियासत में कदम रखा और तोशाम से विधायक बनने में कामयाब हुए. 2006 में बंसीलाल का भी निधन हो गया.


तीसरी पीढ़ी की सियासत
2009 के चुनाव में बंसीलाल की तीसरी पीढ़ी की राजनीति में एंट्री हुई. किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को भिवानी-महेंद्रगढ लोकसभा सीट से कांग्रेस का टिकट मिला और वह चुनाव जीतने में कामयाब रही. 2014 में श्रुति चौधरी को हार का सामना करना पड़ा. हार के बावजूद भिवानी इलाके में बंसीलाल परिवार का रुतबा आज भी कायम है. किरण चौधरी तोशाम सीट से तीन बार विधायक बन चुकी हैं और 2014 में वह विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल की नेता भी बनी.


विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में किरण चौधरी की पकड़ कमजोर हुई है, क्योंकि विधानसभा में उनके स्थान पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी ने नेता विपक्ष बना दिया है. दिल्ली से राजनीति में कदम रखने वाली किरण चौधरी हरियाणा में बंसीलाल की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. अब एक बार फिर परिवार हरियाणा में अपने सियासत रसूख को संभालने मैदान में है.