हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019: हरियाणा चुनाव के लिए महज़ कुछ दिनों का समय बाकी है, ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों और नेताओं ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया है. हरियाणा की ज्यादातर सीटों पर बीजेपी कांग्रेस और जेजेपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है लेकिन कुछ ऐसी भी सीटें हैं जहां आर-पार की लड़ाई है. ऐसी ही एक सीट है हरियाणा के जींद जिले में आने वाली उचाना कलां विधानसभा सीट.


उचाना कलां विधानसभा सीट हरियाणा की उन चुनिंदा सीटों में से एक है जहां बीजेपी का सीधा मुकाबला जेजेपी से है. लगातार दूसरी बार दुष्यंत चौटाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता आमने-सामने हैं. जहां एक तरफ प्रेमलता लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर बीरेंद्र सिंह के राजनीतिक रसूख को बचाना चाहेंगी वहीं दूसरी ओर दुष्यंत चौटाला यहां पहली बार जीत हासिल कर चौटाला परिवार की राजनीतिक विरासत पर अपनी दावेदारी को और मजबूत करना चाहेंगे.


उचाना कलां चौधरी बीरेंद्र सिंह का गढ़ रहा है


दरअसल, उचाना कलां विधानसभा सीट पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह का गढ़ रहा है, वो यहां से कुल 5 बार विधायक चुने गए हैं. कभी कांग्रेस की टिकट पर तो कभी तिवारी कांग्रेस के सिंबल पर, जीत ज्यादातर समय बीरेंद्र सिंह की ही हुई है. माना जाता है कि इस हलके में उनका अपना खुद का बड़ा जनाधार है और यही वजह है कि बीजेपी में शामिल होने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में जब बीरेंद्र सिंह ने यहां से अपनी पत्नी प्रेमलता सिंह को चुनाव लड़ाया तब वो करीब 7 हजार वोटों से जीतकर विधानसभा पहुंची थीं. जबकि पिछले चुनाव में प्रेमलता का मुकाबला उस समय के सबसे युवा सांसद (हिसार लोकसभा) दुष्यंत चौटाला से था. प्रेमलता सिंह की जीत और दुष्यंत की हार का बड़ा कारण दुष्यंत का सांसद रहते हुए विधानसभा चुनाव लड़ना रहा. यही वजह थी कि जिस दुष्यंत चौटाला को 5 महीने पहले ही हुए लोकसभा चुनाव में उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र से 50 हजार से ज्यादा की लीड मिली थी, उन्हें विधानसभा चुनाव में 7 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, दुष्यंत चौटाला एक बार फिर से बीरेंद्र सिंह को चुनौती देने उनके गढ़ में पहुंच चुके हैं और इस बार वो अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं और दावा कर रहे हैं कि यहां की मौजूदा विधायक प्रेमलता सिंह यहां से गायब रही हैं इसलिए जनता उन्हें सबक सिखाएगी.


दुष्यंत चौटाला लगातार 2 चुनाव हार चुके हैं


2014 में दुष्यंत चौटाला के सांसद बनने में उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र का बड़ा योगदान था. यहां से मिली लीड की वजह से ही उन्होंने हरियाणा जनहित कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई को हराया था. हालांकि, उसके बाद से दुष्यंत चौटाला लगातार 2 चुनाव हार चुके हैं. पहला उसी साल हुए में विधानसभा चुनाव में उचाना कलां की जनता ने उन्हें नकार दिया और दूसरा इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें हार नसीब हुई. दुष्यंत के लिए चिंता की बात ये है कि दोनों ही मौकों पर उन्हें उचाना कलां से लीड नहीं मिली. बावजूद इसके दुष्यंत इसी विधानसभा सीट से लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं, इसके पीछे की वजह भी दिलचस्प है.


दरअसल, ओमप्रकाश चौटाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह की चुनावी लड़ाई दशकों पुरानी रही है. 1984 में हिसार लोकसभा चुनाव में चौधरी बीरेंद्र सिंह ने ओमप्रकाश चौटाला को धूल चटाई थी. चौटाला के मन में ये टीस 25 साल तक रही. लेकिन साल 2009 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला, चौधरी बीरेंद्र सिंह के गढ़ उचाना कलां में चुनौती देने उतरे और 621 वोटों के मामूली अंतर से बीरेंद्र सिंह से हिसाब चुकता किया. अगले विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश चौटाला ने अपने पोते दुष्यंत चौटाला को उचाना भेजा लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई. अब दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग पार्टी जरूर बना ली है लेकिन पिछली हार का बदला चुकता करने और परिवार की राजनीतिक विरासत पर अपनी दावेदारी को और मजबूत करने दुष्यंत वापस से उचाना कलां आए हैं.


एक साल पहले ही बनी है जेजेपी


आंकड़ों से बेफिक्र दुष्यंत चौटाला आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दे रहे हैं, एक साल पहले ही उन्होंने अपनी नई पार्टी जेजेपी बनाई थी जिसने इसी साल हुए जींद विधानसभा उपचुनाव में दूसरा स्थान हासिल कर सबको चौंका दिया था. इस उपचुनाव में दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय चौटाला ने कांग्रेस नेता और कैथल से विधायक रणदीप सिंह सुरजेवाला को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था. इस उपचुनाव में जेजेपी का हौसला सातवें आसमान पर जा पहुंचा और इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर जेजेपी हरियाणा में तीसरे नंबर की पार्टी बन बैठी. हालांकि आम आदमी पार्टी से गठबंधन टूटने के बाद बीएसपी के साथ भी उनका सफर कुछ दिनों तक ही चल पाया और आखिरकार जेजेपी ने विधानसभा चुनाव अकेले ही लड़ने का फैसला लिया. इस विधानसभा चुनाव में जेजेपी कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले में नज़र आ रही है वहीं कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां जेजेपी का मुकाबला सीधे तौर पर बीजेपी या कांग्रेस से है.


इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में कुछ महीनों पहले ही बनी जेजेपी हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस के बाद वोट शेयर के मामले में तीसरे नंबर पर थी. आज की तारीख में जेजेपी हरियाणा की सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी बनकर उभरी है और ये कहना गलत नहीं होगा कि महज कुछ महीनों में ही दुष्यंत चौटाला ने अपनी पार्टी को हरियाणा की राजनीति में स्थापित कर दिया है. हरियाणा की 90 में से 87 सीटों पर जेजेपी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं और चुनाव प्रचार का जिम्मा दुष्यंत चौटाला के युवा कंधों पर है. अगर विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलता है तो जेजेपी गेम चेंजर साबित हो सकती है.


प्रेमलता सिंह ने चुनाव प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी है


भले ही दुष्यंत चौटाला अपनी विधानसभा क्षेत्र से ज्यादा अपने बाकी उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हों लेकिन उचाना कलां की मौजूदा विधायक और बीजेपी प्रत्याशी प्रेमलता सिंह ने चुनाव प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी है. वो अपने क्षेत्र में लगातार लोगों से संवाद कर रही हैं और 5 सालों में किए अपने कामों गिना रही हैं. प्रेमलता सिंह ने कहा कि आज से पहले कभी भी उचाना कलां में इतना काम नहीं हुआ था. दुष्यंत चौटाला के आरोपों पर प्रेमलता सिंह ने कहा कि उनके दादा ओपी चौटाला यहां से 5 साल विधायक रहे, सूबे के मुख्यमंत्री रहे तब भी यहां कोई काम नहीं हुआ. जिस दादा ने दुष्यंत को उंगली पकड़कर राजनीति में चलना सिखाया, आज वो उनसे अलग हो चुके हैं, जो अपने परिवार का नहीं हुआ वो जनता का क्या होगा. यहां तक कि खुद ओपी चौटाला ने कह दिया है कि जेजेपी को एक भी सीट नहीं मिलेगी. प्रेमलता सिंह का दावा है कि जिस तरह से दूसरी पार्टियां टूट रही हैं और बीजेपी का दायरा बढ़ रहा है उस हिसाब से इस चुनाव में पिछले बार से तीन गुना ज्यादा वोटों के अंतर जीत हासिल करेंगी.


नेताओं के दावे अपनी जगह लेकिन जनता का क्या मूड है, ये जानने-समझने एबीपी न्यूज़ की टीम उचाना कलां के बाजार में पहुंची. लोगों से उनके मुद्दे पूछे और प्रत्याशियों की जीत की संभावनाओं पर अलग-अलग व्यवसाय और पेशे से जुड़े हुए लोगों से बात की. कुछ लोग प्रेमलता सिंह के काम से खुश नजर आए और पीएम मोदी के नाम पर दुबारा से उन्हें ही जिताने की बात कही और दुष्यंत को बाहरी तक कह दिया. वहीं कुछ लोग दुष्यंत को मौका देने की बात कहते मिले और दावा किया कि इस बार जीत दुष्यंत की ही होगी. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने माना कि इस बार चुनावी लड़ाई बेहद कड़ी है और जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, ये अभी बता पाना बेहद मुश्किल है.


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