नई दिल्ली : कल हरियाणा की किस्मत किसकी स्याही से लिखी जाएगी, इसका फैसला होगा. लोगों की ऊंगलियों पर फैसले की स्याही तो 21 अक्टूबर को लग गई थी. अगले कुछ घंटे सिर्फ इस इंतजार में बीतने जा रहा है कि सूबे के शिखर पर कौन पहुंचेगा. सत्ता का अंकगणित बहूमत के आंकड़ों की बाजी किसके हिस्से जाएगी, यह चंद घंटों के बाद पता चल जाएगा. इस चुनाव में हरियाणा के एक बहुत बड़े सियासी घराने का वारिस कौन होगा, इस पर भी जनता की मुहर लगेगी.


एबीपी न्यूज सीवोटर के एग्जिट पोल के मुताबिक हरियाणा की कुल 90 सीटों में बीजेपी को 70, कांग्रेस को 8 और अन्य के हिस्से 12 सीटें मिलती दिख रही हैं. हरियाणा में बीजेपी और कांग्रेस सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि बसपा 87 और इनेलो 81 सीटों पर चुनाव मैदान में है. भाकपा चार और माकपा सात सीटों पर लड़ रही है, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या 434 है. पहली बार चुनाव में हिस्सा लेने जा रही जननायक जनता पार्टी ने भी 80 से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं.


असली सियासी वारिस कौन?
चौटाला परिवार की सियासी विरासत मुश्किल घड़ी से गुजर रही है. 2019 का विधानसभा चुनाव इंडियन नेशनल लोकदल के लिए गठन के बाद से सबसे मुश्किल चुनाव था. दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाई है. दुष्यंत चौटाला का संबंध पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के परिवार से है. दुष्यंत चौटाला ने अपने चाचा अभय चौटाला से लंबे झगड़े के बाद पिछले साल दिसंबर में जननायक जनता पार्टी का गठन किया. कल हरियाणा की जनता ने दुष्यंत चौटाला को देवीलाल की सियासी विरासत का असली वारिस माना है या नहीं, इसका पता चल जाएगा.


मुस्किल दौर
दुष्यंत चौटाला ने उस वक्त राजनीति में कदम रखा जब इंडियन नेशनल लोकदल अपने बुरे हालात से गुजर रही थी. हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल को 2005 और 2009 के विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का एक भी कैंडिडेंट जीत दर्ज नहीं कर पाया. 2013 की शुरुआत में इंडियन नेशनल दल के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े अजय चौटाला जेबीटी घोटाले में जेल जाना पड़ा.


महज 25 की उम्र में बने सांसद
अजय चौटाला हिसार से चुनाव लड़ा करते थे. इसलिए 2014 के लोकसभा चुनाव में अजय चौटाला के बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला को हिसार से लोकसभा चुनाव में टिकट दिया गया. 25 साल की उम्र में दुष्यंत चौटाला ने जीत दर्ज की, बल्कि 16वीं लोकसभा के सबसे युवा सांसद भी चुने गए. सांसद बनने के बाद दुष्यंत की पार्टी पर पकड़ मजबूत होने लगी. 2014 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने उचाना से विधानसभा चुनाव भी लड़ा. हालांकि इस चुनाव में दुष्यंत चौटाला को पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता के हाथों हार का सामना करना पड़ा.


इसलिए बढ़ी मुश्किलें


अजय चौटाला के जेल जाने के बाद पार्टी की पूरी कमान उनके छोटे भाई अभय चौटाला के हाथ में आ गई थी. 2018 में चाचा से लंबी लड़ाई के बाद दुष्यंत चौटाला ने अपने रास्ते अलग कर लिए और जननायक जनता पार्टी का गठन किया. दुष्यंत चौटाला ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था. दुष्यंत चौटाला की पार्टी को पहले चुनाव में 7 फीसदी वोट तो मिले, पर दुष्यंत अपनी सीट नहीं बचा पाए और उन्हें हिसार से हार का सामना करना पड़ा. विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी और जेजेपी के बीच गठबंधन हुआ. हालांकि यह गठबंधन एक महीने भी नहीं चल पाया और बीएसपी ने अपने रास्ते अलग कर लिए. जेजेपी अब दुष्यंत चौटाला के चेहरे पर अकेले ही चुनावी मैदान में है.


विलय की कोशिश नहीं हुई कामयाब


लोकसभा चुनाव की करारी हार के बाद अभय चौटाला ने अजय चौटाला के साथ संबंध ठीक करने की कोशिश की. अभय चौटाला ने कहा कि अगर अजय चौटाला उन्हें पार्टी की कमान छोड़ने को कहेंगे तो वह इसके लिए तैयार हैं, लेकिन दुष्यंत ने इनेलो में वापसी से साफ इंकार कर दिया. विधानसभा चुनाव से पहले इनेलो के दिग्गज नेता अशोक अरोड़ा के भी पार्टी का साथ छोड़ने अभय चौटाला को बड़ा झटका लगा है.


आजादी की लड़ाई का हिस्सा थे देवीलाल
1912 में देवीलाल का जन्म हरियाणा के सिरसा जिले के तेजाखेड़ा गांव में हुआ था. देवीलाल ने 15 साल की उम्र में ही देश के लिए कुछ करने का इरादा ठान लिया था. देवीलाल ने 1930 में महात्मा गांधी के आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया और इसी के चलते 1930 में उन्हें जेल भी जाना पड़ा. इसके बाद 1938 में देवीलाल ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का हिस्सा बने. 1942 में देवीलाल को 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान करीब दो साल तक जेल में रहना पड़ा.


1952 में राजनीति का आगाज
उस समय हरियाणा पंजाब का हिस्सा हुआ करता था. देवीलाल 1952 में पहली बार पंजाब विधानसभा के सदस्य चुने गए. इसके बाद उन्हें 1956 में पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया. लेकिन इसके बाद देवीलाल ने हरियाणा को अलग राज्य बनाने की लड़ाई छेड़ दी और 1966 में उनकी मुहिम कामयाब हुई. 1971 में देवीलाल ने कांग्रेस के साथ अपने लंबे सफर का अंत कर दिया. 1974 में देवीलाल रोडी हलके से विधायक चुने गए. देवीलाल को एमरजेंसी के दौरान जेल में रखा गया. इसके बाद देवीलाल 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार राज्य के सीएम बनने में कामयाब रहे.


हालांकि भजनलाल के पार्टी तोड़ने की वजह से देवीलाल दो साल तक ही सीएम रह पाए. 1987 के विधानसभा चुनाव से पहले देवीलाल ने लोक दल बना लिया. इस वक्त तक देवीलाल एक बड़े किसान नेता के रूप में उभर चुके थे. देवीलाल 1987 में हरियाणा में सरकार बनाने में कामयाब रहे. इसके बाद देवीलाल ने 1989 में जनला दल की सरकार में शामिल होने का फैसला किया और उन्हें वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में उपप्रधानमंत्री की कुर्सी मिली. ये वो समय था जब देवीलाल की पहचान एक बड़े राष्ट्रीय कद्दावर नेता के तौर पर उभरी.