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Himachal Election: राज्य में BJP, कांग्रेस और AAP, तीनों पार्टियों के सामने हैं कई बड़ी चुनौतियां

चुनाव में उतर रहे इन तीनों दलों की कुछ चुनौतियां भी हैं, जिसे लेकर जनता के मन में कुछ सवाल हैं. आइए हम आपको बताते हैं कि चुनावी मैदान में उतरी इन तीनों पार्टियों के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं.

Himachal Assembly Election 2022: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए 12 नवंबर को वोटिंग होनी है. राज्य में नतीजे आठ को घोषित किए जाएंगे. चुनाव की तारीख घोषित होते ही सभी राजनीतिक दलों ने जनता के सामने अपने वादे रखने शुरू कर दिए हैं. एक ओर जहां कांग्रेस ने सरकारी कर्मचारियों से वादा किया है कि अगर वह सरकार में लौटती है तो पुरानी पेंशन योजना लागू कर देगी तो वहीं मौजूदा सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं.  

वहीं आम आदमी पार्टी फ्री बिजली और पानी के अलावा पंजाब और दिल्ली मॉडल को लेकर जनता के बीच वादे कर रही है. हालांकि चुनाव में उतर रहे इन तीनों दलों की कुछ चुनौतियां भी हैं, जिसे लेकर जनता के मन में कुछ सवाल हैं. आइए हम आपको बताते हैं कि चुनावी मैदान में उतरी इन तीनों पार्टियों की क्या चुनौतियां हैं.

बीजेपी के सामने ये हैं चुनौतियां 

1-पुरानी पेंशन योजना: राज्य में इस वक्त कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो बीजेपी की कमजोरी बनकर उभर रहे हैं. सबसे पहला और बड़ा मुद्दा पुरानी पेंशन योजना का बना हुआ है जो बीजेपी के लिए कमजोर कड़ी साबित हो रहा है. राज्य सरकार के कई कर्मचारी इसको लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.  सीएम जयराम ठाकुर जद्दोजहद में फंसे हुए हैं. न तो वो खुलकर इस पेंशन योजना को लागू करने का वादा कर पा रहे हैं और न ही  इसके खिलाफ कुछ बोल रहे हैं. वहीं विपक्षी पार्टियां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इस चीज का पूरा फायदा उठा रही है और खुलकर यह कह रही है कि अगर हम सत्ता में आते हैं तो पुरानी पेंशन योजना लागू कर दी जाएगी. चूंकि ये केंद्रीय नेतृत्व का फैसला है इस वजह से सीएम जयराम ठाकुर इन सवालों को लेकर पहले भी घिर चुके हैं.


2- CM से ज्यादा PM फेस को तवज्जोह: वहीं अगर राज्य में बड़े फेस की बात की जाए तो इस वक्त सीएम जयराम ठाकुर की जगह पीएम नरेन्द्र मोदी के चेहरे को ज्यादा तवज्जोह दी जा रही है. यहां बीजेपी अपने मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी. लेकिन बड़ा चेहरा पीएम मोदी ही रहने वाले हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए यह दूसरी बड़ी कमजोरी साबित हो रही है.


3- पेपर लीक मामला: राज्य में बेरोजगारी एक बड़ा मसला है. जिसमें पेपर लीक होने के बाद बेरोजगारी का मुद्दा और अधिक बढ़ गया. दरअसल, सबसे पहले सुंदरनगर के एक परीक्षा केंद्र से जूनियर ऑफिस असिस्टेंट का पेपर लीक हुआ था वहीं इसके कुछ समय बाद दोबारा पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हो गया जिसने सरकार की और अधिक मुसीबत बढ़ा दी. इसके बाद से ही विपक्षी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ इस मुद्दे को इस्तेमाल कर रही हैं. वहीं जो परीक्षाएं हुई हैं, उनके नतीजे आने के बाद भी भर्तियां नहीं हुई हैं जिससे युवाओं में आक्रोश का माहौल बना हुआ है.
 
4-किसानों की समस्याएं: इसके अलावा किसानों की समस्याएं भी इस वक्त सरकार को घेरे हुए है. विपक्ष ने सरकार को घेरने के लिए जोरशोर से ये मुद्दा उठाया है कि बीजेपी सरकार ने किसानों के साथ धोखा किया है. इसी वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं. विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रही है कि सरकार बड़े-बड़े उद्योगपतियों का कर्ज माफ कर देती है, लेकिन किसानों का नहीं. इसके अलावा  हिमाचल की अर्थव्यवस्था में सेब किसानों का बड़ा योगदान है, लेकिन कॉरपोरेट कंपनियां सेब उत्पादन का रेट कम कर मार्केट क्रैश को बढ़ा रही हैं. इन सभी मुद्दों पर सरकार को विपक्ष बैकफुट पर धकेलने की कोशिश कर रही है.

5- बेरोजगारी और मंहगाई: राज्य में बेरोजगारी और मंहगाई अहम मुद्दे हैं जिसको लेकर लगातार विपक्ष सवाल खड़े कर रही है. बीजेपी सरकार की बड़ी कमजोरी यह भी साबित हो रही है कि विपक्ष लगातार सरकार को बड़े मुद्दों को लेकर घेरे हुए है लेकिन बीजेपी की तरफ से इन मुद्दों को लेकर कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है.

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा रोजगार के मुद्दे पर वादा कर चुकी हैं. उन्होंने कहा है कि पार्टी हिमाचल प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता में आने पर एक लाख नौकरियां देगी. यह फैसला कैबिनेट की पहली ही बैठक में लिया जाएगा. इतना ही नहीं, पांच साल में पांच लाख नौकरियां देने की पूरी कोशिश कांग्रेस करेगी.

ऐसे में रोजगार का मुद्दा उठा कर बीजेपी को विपक्ष निशाने पर लेना चाहता है और युवा वोटर्स को लुभाना चाहता है.

किन कमजोरियों का सामना कर रही है कांग्रेस?

1-टॉप लीडरशिप की कमी : पार्टी में इस वक्त लीडरशिप को लेकर बड़े सवाल उठ रहे हैं.  राज्य में इस वक्त पार्टी को लीड करने के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है. प्रदेश में रैलियों की अगर बात की जाए तो वो बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस की रैलियां कम है. 


2-गुटबाजी: पार्टी में इस वक्त अंधरुनी विभाजन देखने को मिल रही है. सीएम पद के कई दावेदार हैं वहीं दूसरी ओर दल-बदल के बाद भी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हर्ष महाजन ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने के लिए भी तीन-तीन महीने का इंतजार करना पड़ता है. हर्ष महाजन ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस की ओर से चुनाव जीतने पर 18 से 60 साल की महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपए देने का दावा किया गया है, लेकिन यह घोषणा मात्र एक भम्र है. जिससे राज्य में पार्टी की छवि को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं.


3-वीरभद्र सिंह का निधन : पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रदेश में पार्टी इस जगह को भर नहीं पाई है. वीरभद्र छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके थे और राज्य में उनका बड़ा बोलबाला था. इसलिए कांग्रेस नेतृत्व की कमी को लेकर भी चुनावी मैदान में मात खा सकती है.

आम आदमी पार्टी की चुनौतियां-

1-पहली बार लड़ रही चुनाव: आम आदमी पार्टी पहली बार राज्य में चुनाव लड़ने जा रही है और राज्य में उसकी कोई जमीनी मौजूदगी नहीं है. जिससे दूसरी पार्टियों के मुकाबले आम आदमी पार्टी इस वक्त कमजोर साबित हो रही है. इसके अलावा कांग्रेस और बीजेपी का राज्य में अपना ऐतिहासिक चुनावी समीकरण है.

2-लीडरशिप की कमी: वहीं पार्टी के पास इस समय कोई मजबूत नेता नहीं है जो राज्य में पार्टी की धांक जमा सके. इसके लिए पार्टी अच्छे नेतृत्व को खोजने में असमर्थ रही है.

3- दल-बदल के झटके:  पार्टी को आक्रामक शुरुआत के बाद दल-बदल के कारण कई बड़े झटके लगे हैं. राज्य में पार्टी के पास 2-3 सीटों के अलावा कहीं भी मजबूत दावेदारी नहीं है. इसके अलावा राज्य में पार्टी में दिल्ली के सीएम केजरीवाल के चेहरे को ज्यादा तवज्जोह दी जा रही है हालांकि पार्टी का राज्य में सबसे बड़ा चेहरा सुरजीत ठाकुर का चेहरा है. 

अब हिमाचल की 68 विधानसभा सीटों पर नतीजे क्या रहेंगे ये तस्वीर को आठ दिंसबर को ही साफ हो पाएगा लेकिन कहा जा रहा है कि कांग्रेस और बीजेपी की दोतरफा चुनावी जंग में आम आदमी पार्टी के आने से मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद जताई जा रही है.

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