भारत में चुनावी विश्लेषण का सबसे बड़ा मुद्दा जाति होता है. लेकिन 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में कुछ और ही समीकरण काम करता है. अगर इस बात को जानकर कोई भी हैरान हो सकता है कि इस पहाड़ी राज्य में क्षेत्रवाद एक बड़ा फैक्टर है.


हिमाचल प्रदेश को समझने के लिए हमें आजादी से पहले की भौगोलिक परिस्थितियों को भी समझना होगा. ब्रिटिश राज में हिमाचल प्रदेश का ऊपरी हिस्सा चार रियासतों के बीच बंटा था. राज्य में 4 जिले थे जिनमें महासू, मंडी, चंबा और सिरमौर शामिल थे.


इस इलाके के लोगों में अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रवाद की प्रबल भावना थी. लेकिन ये लोग अपनी-अपनी रियासत के राजपरिवारों से कभी नाराज नहीं दिखे जैसा कि देश के कई अन्य राज्यों में देखने को मिलता था.


साल 1948 में जब हिमाचल प्रदेश का गठन हुआ तो राज्य प्रजा मंडल आंदोलन का भी गवाह बना जिसका उद्देश्य रियासतों की जगह एक जिम्मेदार सरकार बनाने की बात थी. बाद में इस आंदोलन को कांग्रेस में विलय कर दिया गया. 


इसका नतीजा ये रहा है कि कांग्रेस हिमाचल प्रदेश के इस इलाके में बहुत ज्यादा मजबूत हो गई. 1966 में जब पंजाब राज्य का पुनर्गठन हुआ तो कुछ इलाके हिमाचल प्रदेश में जोड़ दिए गए जिसे आज निचला इलाका कहा जाता है.


सांस्कृतिक और भौगोलिक नजरिए से देखें तो निचला इलाका पुराने हिमाचल से बहुत अलग था और राजनीतिक तौर पर बहुत ज्यादा सक्रिय भी. लेकिन ऊपरी हिमाचल का वर्चस्व फिर भी कायम था. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश के 6 मुख्यमंत्रियों में 4 सिर्फ ऊपरी हिमाचल प्रदेश के रहने वाले रहे हैं.


हिमाचल प्रदेश के पहले सीएम वाईएस परमार सिरमौर के रहने वाले थे. उनके बाद रामलाल ठाकुर शिमला और 6 बार मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सेबों की खेती के लिए मशहूर इलाकों में शामिल सरहान से आते थे. ऊपरी इलाके से जुड़ी 17 विधानसभा सीटें हैं जिनमें किन्नौर, कुल्लू, मंडी और शिमला शामिल हैं.




सेब की खेती और राजनीति
हिमाचल प्रदेश के जिन इलाकों सेब की खेती होती है, राज्य की कुल जीडीपी का 13 प्रतिशत हिस्सा वहीं से आता है. इस इलाके से राज्य के कई बड़े नेता आते हैं जिनमें कांग्रेस नेता विद्या स्टोक्स, पूर्व मंत्री पद्म देव, दौलत राम चौहान शामिल हैं.


हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री वाईएस परमार की पत्नी सत्या भी इसी इलाके से थीं जो कभी प्रदेश में सबसे ताकतवर महिला नेता के तौर पर जानी जाती थीं. इसके अलावा इसी इलाके से जय बिहारी लाल कांची भी आते थे जो कांग्रेस के लिए हमें मुश्किल खड़ी करते रहते थे. 




मंडी में होता है संघर्ष
हिमाचल प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मंडी जिले से आते हैं. लेकिन ठाकुर के सीएम बनने से पहले ही इस जिले के कई नेता सीएम पद की रेस में रह चुके हैं. लेकिन इन सब में जयराम ठाकुर ही सीएम की कुर्सी तक पहुंच पाए. 


मंडी में मुख्यमंत्री पद के लिए मुकाबला प्रदेश के पहले सीएम वाईएस परमार के समय ही शुरू हो गया था. सेराज विधानसभा सीट से विधायक करम सिंह ने वाईएस परमार को चुनौती दी थी. लेकिन इस रस्साकसी मे पंडित सुखराम सबसे बड़े खिलाड़ी साबित हुए हैं.


साल 1993 में पंडित सुखराम हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे थे. हालांकि कांग्रेस आलाकमान ने उनके नाम की घोषणा नहीं की थी. लेकिन उस समय मान लिया गया था कि वो इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हीं के पास जाएगी.


लेकिन ऐन वक्त पर उनके साथ खेल हो गया. दो मंडी जिले के दो विधायक उस समय वीरभद्र सिंह के समर्थन में आ गए. बाजी वीरभद्र सिंह जीत गए.


इसी तरह साल 2012 में वीरभद्र सिंह को फिर मंडी के ही नेता कौल सिंह से चुनौती मिली. लेकिन राजनीतिक के माहिर खिलाड़ी वीरभद्र सिंह के समर्थन में फिर इसी जिले को दो विधायक आ गए. वीरभद्र सिंह दोबारा सीएम चुन लिए गए.


निचले हिस्से वाले हिमाचल प्रदेश से अब तक दो बार ही सीएम बने जिसमें शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल शामिल हैं. दोनों ही नेता बीजेपी से हैं. 


चुनावी आंकड़ों पर ध्यान दें तो साल निचले हिस्से वाले हिमाचल प्रदेश में साल 2012 में कांग्रेस ने 34 में से 18 सीटें और बीजेपी 14 सीटें जीती थीं. साल 2017 में बीजेपी ने 19 और कांग्रेस 13 सीटें जीती थीं. 2 सीटें अन्य के खाते में गई थीं. 


हिमाचल प्रदेश में क्या है जातियों का समीकरण


हिमाचल प्रदेश में 50 फीसदी से ज्यादा आबादी सवर्ण मतदाताओं की है. 50.72 फीसदी इस आबादी में सबसे ज्यादा 32.72 फीसदी राजपूत और 18 फीसदी ब्राह्मण हैं. इसके अलावा अनुसूचित जाति की आबादी 25.22% और अनुसूचित जनजाति की आबादी 5.71% है. प्रदेश में ओबीसी 13.52 फीसदी और अल्पसंख्यक 4.83 फीसदी हैं.


हिमाचल प्रदेश की राजनीति में क्षत्रियों का बोलबाला रहा है. इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस ने 28-28 क्षत्रियों को टिकट दिया है. अनुसूचित जाति के लिए यहां 17 सीटें निर्धारित हैं. अनूसूचित जाति के बाद सबसे बड़ी आबादी ब्राह्मणों की है. कांग्रेस ने बीजेपी से ज्यादा ब्राह्मणों को टिकट दिया है.