नई दिल्लीः मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अमित शाह को गृहमंत्री बनाया गया है और उनसे बड़ी उम्मीदें हैं. कल मोदी कैबिनेट के शपथ के साथ ही ये तय हो गया था कि अमित शाह को बड़ा मंत्रालय मिलेगा और आज तय हो गया कि वो मोदी सरकार टू में नंबर की हैसियत से काम करेंगे. बीजेपी संगठन में पीएम मोदी के सुख-दुख के साथी अमित शाह अब भारत की सरकार में गृहमंत्री के तौर पर साथ काम करेंगे.


अमित शाह निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत सेनापति हैं लेकिन उनके सामने भी देश के वर्तमान हालात को देखते हुए कई चुनौतियां हैं. यहां उन्हीं की चर्चा की जा रही है.


पहली चुनौती कश्मीर घाटी से है
मोदी सरकार 2 में राजनाथ सिंह का मंत्रालय बदलकर रक्षा मंत्रालय कर दिया गया और सबसे अहम गृह मंत्रालय के ऑफिस में अमित शाह की नेमप्लेट टांग दी गई. अपनी हर चुनावी रैली में भारत माता की जय का नारा लगाने वाले अमित शाह के कंधे पर देश के आतंरिक दुश्मनों से लड़ने की चुनौती है और सबसे बड़ी चुनौती कश्मीर घाटी में है.


घाटी को आतंक मुक्त कराने की जिम्मेदारी अमित शाह पर है. कश्मीर घाटी में ऑपरेशन ऑल आउट के तहत दिन-रात आतंकियों को मौत की नींद सुलाया जा रहा है, आज भी आतंकियों का एनकाउंटर किया गया है. काफी हद तक आतंक के मॉड्यूल को तोड़ने में सफलता मिली है लेकिन घाटी में आतंकियों के समूल नाश के बगैर शांति बहाल हो पाना मुश्किल है और अमित शाह को इसी का जिम्मा मिल गया है.


अमित शाह ने कई मौकों पर कहा है कि आतंक के खिलाफ हमारी जीरो टॉलरेंस की नीति है और इसी रणनीति की वजह से अबतक कश्मीर घाटी में जाकिर मूसा, बुरहान वानी, समीर टाइगर, नवीद जट्ट जैसे तमाम बड़े आतंकी और कमांडर मारे जा चुके हैं. ऑपरेशन ऑल आउट के तहत 2018 में 257 आतंकी मारे गए. 2019 के शुरू के 5 महीनों में मारे गए आतंकियों की संख्या 97 पहुंच चुकी है. इसी काम को आगे बढ़ाते हुए अमित शाह पर घाटी को संवारने की जिम्मेदारी है.


घाटी को नीट एंड क्लीन बनाने के लिए लश्कर, हिजबुल सरीखे आतंकी संगठनों की ताबूत में आखिरी कील ठोंकना है, जिसके लिए पीएम मोदी ने अमित शाह को जरूरी समझा और बतौर अध्यक्ष अमित भी इसका जिक्र करते रहे हैं. कश्मीर को देश का अभिन्न अंग बनाने में देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का सबसे बड़ा रोल रहा और अमित शाह भी उसी गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे जिसे कभी सरदार पटेल ने संभाला था


अमित शाह के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि उन्हें कश्मीर घाटी की आवाम को साथ लाना है, आतंक के रास्ते पर जा रहे युवाओं को रोकना जरूरी है और जो ना माने उसे रोकने की जिम्मेदारी तो सुरक्षाबलों के कंधों पहले से ही है. प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर घाटी को लेकर अटल जी की नीति को सबसे बेहतर बताते रहे हैं, जहां हथियार की जरूरत होगी वहीं उठाया जाएगा, अगर आतंकी मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं तो उनका भी स्वागत करने से परहेज नहीं है. पीएम मोदी ने अमित शाह को गृहमंत्री बनाकर ये संदेश दे दिया है कि आतंकी या तो आतंक का रास्ता छोड़ दें या फिर दुनिया छोड़ने को तैयार रहें.


पत्थरबाजों पर नकेल कसना
पत्थरबाजों पर नकेल कसना भी बतौर गृहमंत्री अमित शाह के लिए बड़ी चुनौती है, अलगाववाद पर नकेल भी इस लिस्ट में शामिल है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अपने घोषणापत्र के वादे पूरा करना है. मतलब अनुच्छेद 370 को हटाना जो कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देता है, जिसकी घोषणा अमित शाह ने सार्वजनिक मंच से भी की है. अमित शाह के इस वादे के पीछे की बहुत बड़ी वजह है, जो बीजेपी के दिल के बेहद करीब है.


धारा 370 को खत्म करने का वादा पूरा करना
आजादी के वक्त कश्मीर घाटी में जाने के लिए स्पेशल परमिट या एक तरह से कहें वीजा लेना पड़ता था, जिसकी इजाजत अनुच्छेद 370 देता था, उसके खिलाफ जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बड़ी लड़ाई लड़ी. उन्होंने कहा था एक देश दो विधान, दो निशान, नहीं चलेगा...नहीं चलेगा


कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बलिदान दिया, 23 जून को वहीं की जेल में संदिग्ध हालत में मौत हो गई और ये बात बतौर अध्यक्ष अमित शाह को टीस की तरह चुभती रही है. उन्होंने कभी कहा था कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की वजह से कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए अमित शाह को अनुच्छेद 370 को हटाने का वादा पूरा करना है. अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है. जिसकी वजह से देश के किसी दूसरे हिस्से का आदमी वहां जमीन नहीं खरीद सकता है


अमित शाह अपनी रैलियों में अनुच्छेद 370 की बात करते आए हैं लेकिन ये इतना आसान नहीं है. अनुच्छेद 370 को हटाने के बिल को संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत के साथ पास कराना होगा. देश के आधे राज्यों की विधानसभाओं से बिल को पास करना होगा. और उसके बाद जम्मू कश्मीर की विधानसभा से भी दो तिहाई बहुमत से पास करना होगा जो अभी के हिसाब से नामुमिन सा लगता है.


नक्सलवाद का खात्मा करना
बतौर गृहमंत्री अमित शाह की पूरी कोशिश देश में शांति कायम करने की होगी और इस कड़ी में नक्सलवाद का खात्मा बेहद जरूरी है, क्योंकि देश कई राज्यों में आज भी नक्सलवादी फल-फूल रहे हैं, विशेषकर छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में ये समस्या बेहद बड़ी हो रही है. नक्सलवाद के मुद्दे पर अमित शाह कांग्रेस को घेरते रहे हैं. अब अमित शाह देश के गृहमंत्री है, जाहिर है कि गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही नक्सलवाद से निपटने की फाइलें में अमित शाह की टेबल से होकर गुजरेंगी और उनकी लाल कलम जितनी तेज चलेगी नक्सलियों का खात्मा भी उतनी तेजी से होगा.


नक्सली घटनाएं
2013 में 1136, 2014 में 1091, 2015 में 1089, 2016 में 1048, 2017 में 908 नक्सली वारदातें हुई हैं. इन आंकड़ों को देखकर आप समझ सकते हैं कि मोदी सरकार बनने के बाद नक्सली हिंसा में लगातार गिरावट आई है


नागरिक संशोधन बिल को पास कराना
अमित शाह के सामने खड़ी तीसरी बड़ी चुनौती और वादे की बात करेंगे. वही वादा जिसके दम पर अमित शाह ने बंगाल में ममता के दुर्ग के दरवाजे को गिरा दिया और 18 बंगाल के योद्धाओं के साथ दिल्ली आ गए. अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की जनता की दुखती रग पर हाथ रखा और हर रैली में नागरिक संशोधन बिल की बात कही. अमित शाह का सिटिजन एमेंटमेंड बिल पास कराने का वादा बंगाली मानुष के दिल को छू गया, बांग्लादेशी घुसपैठियों से परेशान मूल निवासियों ने वोटों से बीजेपी की झोली भर दी.


हालांकि ये काम भी बेहद मुश्किल इसलिए नजर आता है क्योंकि नागरिक संशोधन बिल के तहत घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखाना है. बाहर से आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनों को नागरिकता देना है. बिल को संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास करना है. अगर इन चुनौतियों पर अमित शाह विजय हासिल कर लेते हैं तो चुनावी चाणक्य सरकार के भी मास्टरमाइंड हो जाएंगे. अब अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं, देश के दूसरे सबसे बड़े ताकतवर नेता हैं और यही सत्य है.


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