नवरात्रि मंगलवार (9 अप्रैल) से शुरू हो गए हैं और 17 अप्रैल को राम नवमी है, लेकिन सियासत में विचित्र संयोग बना है. राम नवमी से पहले ही चुनाव में राम की एंट्री हो गई. वैसे तो राम की पहचान धार्मिक है, लेकिन चुनाव में उनका धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है. चुनाव आचार संहिता के मुताबिक, चुनाव में धर्म का इस्तेमाल प्रतिबंधित है. फिर भी चुनावी सभाओ में नेता राम-राम क्यों जप रहे हैं ? नवरात्रि में नेताओं को राम की याद क्यों आई? क्या राम का नाम हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए किया जा रहा है ? और क्या 2024 के चुनाव में भी राम बड़ा मुद्दा हैं? आइए समझते हैं कि चुनाव में राम मुद्दा कैसे बने?
6 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर में NIA की टीम पर हमला हुआ. NIA की टीम 2022 में हुए विस्फोट की जांच करने भूपतिनगर पहुंची थी. घर तृणमूल कांग्रेस के नेता का था, लेकिन राज्य पुलिस ने NIA के खिलाफ FIR लिखी और आरोप लगाया कि NIA ने महिलाओं के खिलाफ कानून तोड़ा. बंगाल में तीन महीने के अंदर केंद्रीय एंजेसियों पर दूसरा हमला हुआ है. हमले के अगले दिन 7 अप्रैल को प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में रैली की. केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया और कहा कि ये सब कुछ राम नवमी में दंगा करवाने की साजिश है. उनके निशाने पर बीजेपी थी.
नवादा की रैली में पीएम मोदी ने दिलाई राम नवमी की याद
7 अप्रैल को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के नावादा में थे. चुनाव रैली से राम नवमी की याद दिलाई और उन लोगों को याद रखने को भी कहा जो अयोध्या दर्शन करने नहीं गए. उधर, समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता स्वामी प्रसाद मौर्या और राष्ट्रीय जनता दल के नेता चंद्रशेखर हैं जिन्होंने राम चरितमानस पर ऐसे बयान दिए थे उन पर विवाद हुआ. बिहार में राम नवमी पर पीएम मोदी के बयान को RJD और समाजवादी पर भी हमला माना गया.
अब आप समझ गए होंगे कि नवरात्रि के मौके पर चुनाव में राम नवमी की एंट्री का संयोग कैसे बना? किसने क्यों राम का नाम लिया? और अब आपको बताएंगे कि इससे किसको फायदा और किसे नुकसान होगा. पहले जब भी राम का नाम लिया जाता था बाबरी मस्जिद का जिक्र होता था. अब राममंदिर बन गया है, लेकिन राम के राजनीतिक कंट्रास्ट में कुछ न कुछ जरूर होता है. इससे वोटों का ध्रुवीकरण होता है. अब राम के साथ चुनाव में मुस्लिम लीग की एंट्री हुई है. बीजेपी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस के घोषणापत्र में मुस्लिम लीग की छाप है. पीएम मोदी ने कई रैलियों में इस मुस्लिम लीग वाले एंगल को एक्सप्लोर किया है. अब इसे नैरेटिव में बदलने का अभ्यास शुरू हो चुका है. कांग्रेस ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग में कर दी है.
कांग्रेस नेता जय राम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, 'मेरे साथी सलमान खुर्शीद, मुकुल वासनिक, पवन खेड़ा और गुरदीप सप्पल ने चुनाव आयोग से मुलाकात की. हमने 6 शिकायतें दी हैं, जिनमें से 2 पीएम मोदी के खिलाफ हैं. अब ये चुनाव आयोग के लिए सभी दलों को समान मौका देने की स्थिति सुनिश्चित करने का समय है. हम उम्मीद करते हैं कि चुनाव आयोग अपने संवैधानिक जनादेश को बरकरार रखेगा. हम इस सरकार को बेनकाब करने के लिए सियासी और कानूनी रास्ते अपनाना जारी रखेंगे.'
बीजेपी को कैसे मिला फायदा?
वैसे राम का तो नहीं, लेकिन उनके नाम का राजनीति से पुराना वास्ता है. ये संयोग है या उससे ज्यादा कि राजनीति में सबसे ज्यादा राम नाम की रट बीजेपी लगाती है और जब जब राम मंदिर आंदोलन आगे बढ़ा है बीजेपी की सीट भी बढ़ी हैं. आंकड़े इसके गवाह हैं-
6 अप्रैल 1980 को बीजेपी की स्थापना हुई. 1984 में बीजेपी ने पहला लोकसभा चुनाव लड़ा. 1984 में बीजेपी सिर्फ 2 सीटे जीती और वोट शेयर रहा 8 फीसदी. 1986 में लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी सक्रिय हुई. इसका असर 1989 के लोकसभा चुनाव में साफ दिखा.1989 में बीजेपी ने लोकसभा की 85 सीटें जीती. वोट शेयर बढ़कर 11 फीसद हो गया. 1989 के घोषणा पत्र में बीजेपी ने पहली बार मंदिर को मुद्दा बनाया. 25 सितंबर 1990 को लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली. इसका इंपैक्ट 1991 के लोकसभा चुनाव पर साफ दिखा. 1991 में बीजेपी ने 120 सीट जीतीं. वोटर शेयर बढ़कर 20 फीसद हो गया.
कैसे बढ़ा वोट बैंक?
1992 में विवादित ढांचा गिर गया. 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 161 सीट मिलीं. हालांकि, वोट शेयर 20 फीसद ही रहा. 1998 में 13 महीने के लिए बीजेपी की सरकार बनी. तब बीजेपी ने 182 सीट जीती थी और वोट शेयर 26 फीसद रहा. 1999 में बीजेपी ने 182 सीटें जीती और 24 फीसद वोट शेयर. 2004 में बीजेपी को 138 सीट मिली और वोट शेयर रहा 22 फीसदी. 2009 में 116 सीट पर कब्जा किया और वोट शेयर रहा 19 फीसदी. 2014 में 282 सीट पर कमल खिला और वोट शेयर रहा 31 फीसदी. 2019 में बीजेपी के खाते में 303 सीट आईं और वोट शेयर रहा 38 फीसदी रहा.
1989 से 2024 तक बीजेपी के हर घोषणा पत्र में राम और राम मंदिर मुद्दा रहा. 2024 में बीजेपी ने 400 पार का टारगेट रखा है. क्या 24 में राम के नाम पर वोट पड़ेंगे? 11 दिन बाद पहले चरण की वोटिंग है. आचार सहिंता लगी है, लेकिन चुनाव प्रचार में राजनीतिक दल राम और धार्मिक नामों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
यह भी पढ़ें:-
बीजेपी के टिकट पर बेटे अनिल एंटनी का चुनाव लड़ना पिता एके एंटनी को नहीं आ रहा रास, कर दी हार की भविष्यवाणी