उत्तर प्रदेश की चर्चित घोसी उपचुनाव में मंगलवार को करीब 50.03 प्रतिशत वोट ही पड़े. 2022 में यहां 58 प्रतिशत और 2017 में 57 प्रतिशत वोट पड़े थे. इस सीट पर वैसे तो 10 उम्मीदवार मैदान में है, लेकिन मुख्य मुकाबला बीजेपी के दारा सिंह चौहान और सपा के सुधाकर सिंह के बीच माना जा रहा है.
घोसी में कम मतदान ने इन दोनों नेताओं की टेंशन भी बढ़ा दी है. सियासी गलियारों में वोटिंग कम होने के मायने निकाले जा रहे हैं. घोसी में सपा और बीजेपी ने प्रचार के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी.
पहली बार इटावा-मैनपुरी से बाहर किसी उपचुनाव में सपा के रामगोपाल यादव घर-घर वोट मांगते देखे गए थे. वहीं बीजेपी ने अपने दोनों उपमुख्यमंत्रियों समेत करीब 2 दर्जन मंत्रियों को फील्ड में उतार रखा था.
राजनीतिक जानकार घोसी उपचुनाव को यूपी में इंडिया गठबंधन का लिटमस टेस्ट भी बता रहे हैं. बीजेपी के लिए भी यह चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जा रहा था. ऐसे में कम वोट प्रतिशत ने सबकी धुकधुकी बढ़ा दी है.
घोसी उपचुनाव में कम मतदान क्यों, 4 प्वॉइंट्स....
1. वोटिंग के बीच बारिश ने घोसी के मतदान की रफ्तार रोक दी. स्थानीय जानकारों की मानें तो सुबह तक मतदान की गति तेज थी, लेकिन दोपहर बाद बारिश की वजह से मतदाता घर से ही नहीं निकले.
2. कम वोट पड़ने की एक वजह फिंगर प्रिंट का नियम भी था. कहा जा रहा है कि हर बूथ पर मतदाताओं के फिंगर लिए जा रहे थे. फिंगर मैच नहीं होने की वजह से भी मतदान में सुस्ती दिखी.
3. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि सरकार के कहने पर स्थानीय प्रशासन ने लोगों को वोट नहीं देने दिया. इसलिए मतदान प्रतिशत में कमी आई. सपा ने चुनाव आयोग में भी इसकी शिकायत की है.
4. जानकारों का कहना है कि यूपी के उपचुनाव में वोटिंग का ट्रेंड कम ही रहा है. इससे पहले खतौली उपचुनाव में 56 प्रतिशत, जबकि रामपुर उपचुनाव में 39 प्रतिशत वोट पड़े थे. मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में भी 54 प्रतिशत वोट ही पड़े थे.
घोसी में वोट घटे, किसको फायदा?
घोसी के सभी 10 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है. वोटों की गिनती 10 सितंबर को होगी, लेकिन लोगों के बीच यह सवाल बना हुआ है कि कम वोट पड़ने से किसको फायदा होगा?
मायावती के कोर वोटरों ने कर दिया खेल
घोसी उपचुनाव में मायावती की पार्टी बीएसपी ने दूरी बना रखी थी, लेकिन अंतिम वक्त में पार्टी के ऐलान ने सबको चौंका दिया. बीएसपी ने अपने वोटरों से वोट न करने की अपील की.
2022 के चुनाव में बीएसपी उम्मीदवार को करीब 55 हजार वोट मिले थे. अब तक बीएसपी के कोर वोटर्स बीजेपी में शिफ्ट होते रहे हैं. 2022 में बीएसपी के 6 प्रतिशत वोट एनडीए में शिफ्ट हो गया थे.
घोसी में भी बीएसपी वोटरों पर दारा सिंह की नजर थी, लेकिन ऐन वक्त पर पार्टी की रणनीति ने कई समीकरण उलट-पलट दिए.
बीजेपी कॉडर में नाराजगी, कोर वोटर्स नहीं निकले
दारा सिंह चौहान के उम्मीदवार बनाने के बाद से ही बीजेपी कॉडर में नाराजगी की खबर आने लगी थी. पार्टी के कई सवर्ण नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर बिगुल फूंक दिया था.
बीजेपी से बागी होकर उज्जवल मिश्र पर्चा भी भरने पहुंचे थे, लेकिन वोटर लिस्ट में नाम न होने की वजह से उनका पर्चा खारिज हो गया था. मिश्रा अंतिम समय तक दारा के खिलाफ प्रचार करते रहे.
जानकारों का कहना है घोसी में बीजेपी के कोर सवर्ण वोटर मतदान को लेकर उदासीन बने रहे.
घोसी उपचुनाव के परिणाम का असर क्या होगा?
घोसी में सपा और बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों के समर्थन में पूरी ताकत झोंक दी थी. दोनों पक्षों के बड़े से छोटे नेता मैदान में डटे हुए थे. ऐसे में रिजल्ट का सीधा असर यूपी की सियासत पर पड़ेगा.
जो भी पार्टी जितेगी, वो इस जीत को सीधे तौर पर 2024 से जोड़ने की कोशिश करेगी. क्योंकि 2024 चुनाव की घोषणा में अब बमुश्किल 6 महीने का वक्त बचा हुआ है. ऐसे में आइए जानते हैं, किस पार्टी पर क्या असर पड़ेगा?
1. बीजेपी- भारतीय जनता पार्टी ने दलबदलू दारा सिंह चौहान को टिकट दिया था, जिसका पार्टी संगठन में भी काफी विरोध हो गया था. पार्टी ने डैमेज कंट्रोल के लिए संगठन को मैदान में उतार रखा था.
अगर दारा चुनाव जितने में सफल हो जाते हैं, तो बीजेपी संगठन को इसका क्रेडिट जाएगा. संगठन के मजबूती का असर सीधे 2024 के चुनाव पर पडे़गा.
घोसी सीट अभी सपा के पास है और दारा सिंह पाला बदलकर बीजेपी में आए हैं. दारा के साथ-साथ कई और विधायकों के सपा छोड़ने की अटकलें लग रही है. बीजेपी अगर घोसी जीत जाती है, तो इसका उदाहरण देकर सपा के कुछ विधायकों को अपने पाले में ला सकती है.
बीजेपी के घोसी हारने पर सपा में हाल-फिलहाल शायद ही कोई बड़ी टूट हो. बीजेपी सपा के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक फॉर्मूला तोड़ने के लिए बड़े नेताओं को साधने की कोशिश में जुटी है.
2. समाजवादी पार्टी- सपा ने घोसी से स्थानीय सुधाकर सिंह को उम्मीदवार बनाया था. यहां चुनाव की कमान खुद शिवपाल सिंह यादव ने संभाल रखी थी. अगर सपा यहां चुनाव जीतती है, तो सपा कार्यकर्ताओं में नया जोश आएगा. लोकसभा में शिवपाल की भूमिका बढ़ सकती है.
सपा घोसी अगर जीतती है, तो यह संदेश जाएगा कि पूर्वांचल में सपा सीधे तौर पर बीजेपी को चुनौती देने में सक्षम है. 2022 में ओम प्रकाश राजभर के साथ रहकर अखिलेश यादव ने गाजीपुर, अंबेडकरनगर और आजमगढ़ में क्लीन स्वीप किया था.
पूर्वांचल में लोकसभा की कुल 21 सीटें हैं, जिसमें से अधिकांश सीटों पर अभी बीजेपी का कब्जा है.
सपा अगर यहां चुनाव हारती है, तो कांग्रेस 2024 के सीट बंटवारे में दबाव बढ़ा सकती है. कांग्रेस यह तर्क दे सकती है कि यूपी में सपा भी अकेले दम पर चुनाव नहीं जीत पा रही है.
साथ ही अखिलेश के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फॉर्मूले पर सवाल उठेगा. अखिलेश यूपी में 24 के रण में इसी फॉर्मूले से आगे बढ़ने की रणनीति बना रहे हैं. यूपी में पीडीए वोटरों की संख्या करीब 80 प्रतिशत है.
3. बहुजन समाज पार्टी- पूर्वांचल के घोसी और गाजीपुर बीएसपी का गढ़ माना जाता रहा है. बीएसपी ने यहां इस बार उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. ऐसे में अगर यहां कम मार्जिन से किसी पार्टी के प्रत्याशियों की जीत होती है, तो मायावती की उपयोगिता बनी रह सकती है.
लेकिन अधिक मार्जिन से जीत होने पर मायावती की सियासत पर सवाल उठेंगे. हाल ही में सपा के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा था कि मायावती अब राजनीति में ज्यादा प्रभावी नहीं रही हैं.
2017 के बाद से मायावती की पार्टी में भगदड़ मची है. 2022 में पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी. घोसी उपचुनाव में भी अगर मायावती की भूमिका अप्रसांगिक साबित होती है, तो 2024 में उनकी पूछ शायद कम हो जाए.
4. सुहेलदेव समाज पार्टी- बीजेपी के साथ ही सुहेलदेव समाज पार्टी की प्रतिष्ठा भी इस सीट पर दांव में लगी है. ओम प्रकाश राजभर हाल ही में बीजेपी गठबंधन में शामिल हुए हैं. ओम प्रकाश पूर्वांचल में राजभर समाज की राजनीति करते हैं.
घोसी में करीब 50 हजार राजभर मतदाता हैं. बीजेपी अगर यह चुनाव बड़ी मार्जिन से हारती है, तो राजभर के लिए भी यह एक झटका साबित हो सकता है. कहा जा रहा है कि उपचुनाव के बाद बीजेपी कैबिनेट विस्तार यूपी में करने की तैयारी में है.
घोसी हारकर अगर बीजेपी कैबिनेट विस्तार करती है, तो राजभर को भले कैबिनेट में जगह मिल जाए, लेकिन उनके मन के मुताबिक शायद ही विभाग मिले.