नई दिल्ली: हरियाणा में बहुमत का आकाल कांग्रेस के लिए खत्म तो नहीं हुआ लेकिन पांच साल बाद कांग्रेस की जोरदार वापसी जरूर हुई है. कार्यकर्ताओं की नजर में इस जीत के हीरो सिर्फ भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं. आज सुबह से ही हरियाणा में हुड्डा छाए हुए हैं लेकिन इस सब के बीच राहुल गांधी का दूर-दूर तक पता नहीं है. राहुल गांधी का नाम ना तो कार्यकर्ताओं की जुबान पर है और ना ही स्थानीय नेता उनका नाम ले रहे हैं.


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हरियाणा में कांग्रेस के कमबैक के बीच राहुल गांधी ने देर शाम तक चुप रहना ही बेहतर समझा. हालांकि प्रियंका गांधी अपनी बात कहने मीडिया के सामने जरूर आयीं. कांग्रेस के वोट का ग्राफ बढने से प्रियंका गांधी बेहद खुश नजर आयीं. उन्होंने कहा कि मैंने हालिया रुझान तो नहीं देखे लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों को ही लेकर खुश हूं. हम इस बात से भी खुश हैं कि उत्तर प्रदेश में हमारा वोट परसेंटेज बढ़ा है.


हरियाणा की जीत भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मेहनत और सोनिया गांधी की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी ये मान रहे हैं, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी हुड्डा के नेतृत्व की तारीफ की.


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चुनावों के ऐलान के साथ ही हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी खुल कर सामने आ गई थी. सोनिया गांधी ने जैसे ही हुड्डा को हरियाणा में चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया. इस फैसले से नाराज कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और राहुल के करीबी अशोक तंवर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त अशोक तंवर ने कहा था कि कुछ की राजनीतिक हत्याएं कर दी गई हैं, उनमें मैं भी हूं, संजय निरुपम भी हो सकते हैं, डॉ अजय कुमार भी हो सकते हैं. उसमें वो बहुत से लोग हैं जो पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं या जो दम घुटते-घुटते मरने की कागर पर हैं.


अशोक तंवर ने जितने भी नाम गिनाए वो सब के सब राहुल खेमे के माने जाते हैं. ये खेमा हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व के खिलाफ था इसलिए इस्तीफा देने के बाद तंवर खुल कर हुड्डा का विरोध करने लगे थे. अशोक तंवर ने कहा था, ''आज बहुत सी ताकतें कहती हैं कि देश को कांग्रेस मुक्त करना है. वो कांग्रेस मुक्त खुद कांग्रेस के अंदर के कुछ लोग हैं जो ऐसा करना चाहते हैं.


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ऐसा ही दर्द एक जनसभा के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा का भी छलका था, उन्होंने कहा था कि ये वो कांग्रेस नहीं रही हो जुआ करता थी. कांग्रेस के अंदर खेमेबाजी की तस्वीर तब और साफ हो गई जब हरियाणा में राहुल गांधी की किसी भी चुनावी रैली में हुड्डा ने मंच साझा नहीं किया. पूरे चुनाव में दोनों नेता एक दूसरे से दूर ही रहे.


आंकड़े भी कहते हैं कि हरियाणा चुनाव में राहुल गांधी ने बेमन से प्रचार किया. विदेश दौरे से लौटने के बाद राहुल गांधी ने हरियाणा में सिर्फ 2 रैलियां कीं. जबकि कर्नाटक में 44, गुजरात में 69, हरियाणा की तरह ही 91 विधानसभा सीटों वाली छत्तीसगढ़ में 18, एमपी में 27 और राजस्थान में राहुल ने 19 रैलियां की थीं.


राहुल के गुट को हरियाणा में तवज्जो नहीं मिली तो राहुल रैलियों से दूर रहे. इस मौके का भरपूर फायदा भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उठाया. अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और अकेले ही हरियाणा को मथने में जुट गए.और नतीजा सामने है.