Pradhanmantri Series, Indira Gandhi: भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इकलौती संतान इंदिरा गांधी के लिए पीएम बनने की राह ज्यादा मुश्किल नहीं रही. नेहरू शुरु से ही इंदिरा के लिए जमीनी स्तर पर रास्ता तैयार करते रहे. भले ही नेहरू ने इंदिरा को जीते-जी सक्रीय राजनीति से दूर रखा लेकिन पार्टी से लेकर मंत्रालय तक का ज्यादातर काम इंदिरा की निगरानी में होता था. अपने उत्तराधिकारी के तौर पर खुलकर नेहरू ने कभी अपनी बेटी का नाम नहीं लिया लेकिन लाल बहादुर शास्त्री सहित उनके करीबी यही मानते थे कि वो अपनी बेटी को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे. दिलचस्प ये रहा कि नेहरू की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी के तौर पर जिस इंदिरा के नाम को मोरारजी देसाई ने 'लिटिल गर्ल' कहकर खारिज कर दिया, उन्हें ही हराकर इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं. आज प्रधानमंत्री सीरिज में आपको बताते हैं कि इंदिरा गांधी के भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने की कहानी.
11 जनवरी 1966 की रात ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया. इसके बाद यही सवाल उठा कि अब देश का अगला प्रधानमंत्री कौन? गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बना दिया गया. और एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने की जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज के कंधों पर आ गई. उस वक्त कांग्रेस को ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत थी जो पार्टी की बात सुने.
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय इस बारे में कहते हैं, ''किसी के चयन में उस समय की परिस्थियां काम करती हैं. उस समय ये सवाल नहीं थी कि जो प्रधानमंत्री बनेगा वो संसद में पार्टी को जीता कर ला पाएगी या नहीं, उस समय लीडरशीप ये मानकर चल रहा था कि कांग्रेस तो पावर में है ही, ऐसा पीएम चुनना है जो उनके मुताबिक चले. इस दृष्टि से पार्टी के सामने दो नाम थे- एक इंदिरा गांधी और दूसरा मोरारजी भाई देसाई.''
इसके अलावा खुद कामराज के प्रधानमंत्री की रेस में होने की भी खबरें थीं. उस वक्त सिंडिकेट नेताओं की पार्टी में धाक थी और कामराज उसके प्रमुख थे. कामराज पर सभी नेता प्रधानमंत्री बनने का दबाव डाल रहे थे. वजह ये थी कि कभी भी सार्वजनिक तौर पर उन्होंने ये नहीं कहा कि वो प्रधानमंत्री की रेस में नहीं हैं.
वहीं, शास्त्री के निधन के तुरंत बाद इंदिरा ने अपने करीबी नेताओं से बातचीत शुरू की. कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा (डीपी मिश्रा) ने अपनी किताब The Post Nehru Era: Political Memoirs में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने की पूरी कहानी को बहुत ही विस्तार से लिखा है. उन्होंने लिखा है, ''11 जनवरी, 1966 को करीब 5.30 बजे सुबह में इंदिरा ने फोन करके शास्त्री के निधन की खबर दी और मुझे तुरंत दिल्ली बुलाया. शास्त्री के प्रधानमंत्री रहने के 19 महीने के दौरान ही इंदिरा ने मुझे ये संकते दे दिए थे कि वो उनकी जगह लेने के लिए तैयार हैं.''
डीपी मिश्रा उन नेताओं में से थे जो किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में हवा बना सकते थे. वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय बताते हैं कि ''डीपी मिश्रा को भारतीय राजनीति का चाणक्य कहा जाता है.'' ऐसे डीपी मिश्रा को इंदिरा ने दिल्ली बुलाया ताकि वो सही समय पर उनके पीएम बनने की बल्लेबाजी कर सकें.
डीपी मिश्रा ने लिखा है कि कार्यवाहक पीएम गुलजारी लाल नंदा भी पद पर बने रहना चाहते थे. अपने समर्थन के लिए वो इंदिरा से मुलाकात भी कर चुके थे. इंदिरा ने तब कुटनीतिक चाल चलते हुए उनसे कहा कि अगर बाकी लोग सपोर्ट करते हैं तो वो भी करेंगी. गुलजारी लाल नंदा ने डीपी मिश्रा से भी समर्थन मांगा. वो इस बारे में लिखते हैं, ''मुझे तो पहले से इंदिरा के इरादों के बारे में पता था और ये सुनकर मुझे नंदा पर दया आ गई. गुलजारी लाल नंदा चाहते थे कि वो 1967 के आम चुनाव तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहें. अपनी ये इच्छा उन्होंने कामराज के सामने भी जाहिर की थी.''
हालांकि गुलजारी लाल नंदा को लेकर राम बहादुर राय की राय अलग है. वो कहते हैं, ''गुलजारी लाल नंदा प्रधानमंत्री बनने की रेस में थे ही नहीं. नंदा तो बस ग्रेस में पीएम बन गए. सीनियर लीडर थे इसलिए कार्यकारी पीएम बना दिया गया. ना वो पीएम की दौड़ में स्वयं थे और ना ही कोई उन्हें मानता था.''
इंदिरा गांधी, मोरारजी देसाई और गुलजारी लाल नंदा ये तीनों अपने लिए करीबियों से समर्थन मांग रहे थे लेकिन सिडिंकेट के नेता के. कामराज को प्रधानमंत्री पद के अलावा किसी और के बारे में सोच ही नहीं रहे थे. हकीकत ये थी कि प्रधानमंत्री पद के लिए इंदिरा गांधी का नाम उनके दिमाग में दूर-दूर तक नहीं था.
डीपी मिश्रा के मुताबिक, ''13 जनवरी की रात में सिंडिकेट नेताओं की गुप्त बैठक हुई. इस बैठक में कामराज ने पीएम बनने से इंकार कर दिया लेकिन इस बारे में किसी और को भनक तक नहीं लगी. बैठक में इंदिरा के नाम की चर्चा भी नहीं हुई.''
कामराज के पीएम पद ठुकराने की वजह के बारे में राम बहादुर राय बताते हैं, ''वो बड़े नेता थे इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन उनमें पीएम बनने की क्षमता नहीं थी ये बात वो स्वयं मानते थे. उनके सामने भाषा की बड़ी समस्या थी. प्रधानमंत्री बनने की इच्छा हर नेता की होती है लेकिन उसमें कई कारण होते हैं जिससे नहीं बन पाते हैं.''
14 जनवरी को प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक थी. इस बैठक में उम्मीदवारों को लेकर कोई निष्कर्ष तो नहीं निकला लेकिन ये फैसला हुआ कि 19 तारीख को शास्त्री के उत्तराधिकारी की घोषणा होगी.
इसी बीच डीपी मिश्रा ने मुख्यमंत्रियों की मीटिंग बुलाई. इसमें ये तय हुआ कि अगर कामराज प्रधानमंत्री बनने के लिए राजी हुए तो उनका समर्थन होगा और अगर वो इंकार करें तो इंदिरा के नाम पर बात होगी. बैठक के बाद डीपी मिश्रा, एमएल सुखाडिया, वीपी नायक और केबी सहाय ने कामराज से मुलाकात की. इस दौरान कामराज ने साफ कर दिया कि वो प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहना पसंद करेंगे. साथ ही उन्होंने इस बयान को मीडिया में जारी करने की बात भी कही. मौके की नजाकत को देखते हुए तुरंत ही डीपी मिश्रा ने कामराज से इंदिरा की उम्मीदवारी को लेकर सलाम मशविरा कर लिया. उनकी सहमति मिलने के बाद फिर सभी 14 मुख्यमंत्रियों की बैठक हुई जिसमें से 12 ने इंदिरा गांधी को समर्थन देने की बात कही.
डीपी मिश्रा अपने बारे में बताते हैं कि उन्होंने इंदिरा गांधी का समर्थन इसलिए किया क्योंकि उस वक्त पीएम की रेस में जितने भी उम्मीदवार थे उसमें वो सबसे बेहतर इंदिरा थीं. उनका मानना था कि इंदिरा भारतीयता और आधुनिकता दोनों को बैलेंस करना जानती थी.
मुख्यमंत्रियों की मीटिंग के बाद जो हुआ उस वाकए का जिक्र नेहरू की जीवन लिखने वाले कनाडाई प्रोफेसर माइकल ब्रेचर ने अपनी किताब 'सक्सेशन इन इंडिया' (Succession In India 1967, p. 211-212) में किया है. उन्होंने लिखा है, ''इस मीटिंग के बाद कामराज के ऑफिशियल बयान से पहले इंदिरा गांधी पर समर्थन की खबर लीक हो गई. बाद में कामराज ने भी खुद आधारिकारिक रूप से बयान दिया कि करीब सभी मुख्यमंत्री इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, हालांकि यहां उन्होंने ये नहीं बताया कि वो किसके समर्थन में हैं. इस घोषणा के बाद सीधी लड़ाई मोरार जी देसाई और इंदिरा गांधी के बीच थी. ये अलग बात थी कि ये सब जानने के बाद भी मोरारजी देसाई पीछे हटने को तैयार नहीं थे.''
मोरारजी देसाई के पक्ष में गुजरात और यूपी के मुख्यमंत्रियों को छोड़कर कोई भी नहीं था. आपको यहां बता दें कि नेहरू के निधन के बाद भी मोरारजी देसाई ने खुद को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे किया था. उस वक्त भी उनके नाम पर सहमति नहीं बनी. इसकी वजह ये थी कि वो किसी की सुनते नहीं थे. शास्त्री के निधन के बाद भी उनके साथ यही समस्या थी. राम बहादुर राय कहते हैं, ''मोरारजी किसी के कहने से निर्णय नहीं करते थे. उन्हें जो सही लगता था वो करते थे. उस समय कांग्रेस नेतृत्व को ये लगा कि मोरारजी तो सुनेंगे ही नहीं.''
शास्त्री की मौत के 8 दिन बाद 19 जनवरी को प्रधानमंत्री पद के चुनाव के लिए वोटिंग हुई. इसमें इंदिरा गांधी को 355 और मोरारजी देसाई को केवल 169 वोट मिले. इस तरह इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव हुआ और वो भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. मोरारजी देसाई भारत के उप-प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बने.
इंदिरा गांधी ने 24 जनवरी को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इंदिरा 1966 से लेकर 24 मार्च 1977 तक प्रधानमंत्री पद पर रहीं.
राम बहादुर राय बताते हैं, ''लाल बहादुरशास्त्री को जिस आधार पर प्रधानमंत्री चुना गया था वही आधार इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने का था. वो आधार ये थे कि कांग्रेस के नेतृत्व के लिए प्रधानमंत्री पद पर कौन सबसे ज्यादा अनुकूल होगा. इंदिरा गांधी की छवि कुछ ना बोलने वाली थी. उनमें आत्मविश्वास की भी कमी थी. कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे कामराज और एसके पाटिल जैसे सभी नेताओं को ये लगा कि इंदिरा गांधी अगर प्रधानमंत्री बनती हैं तो उनके कहे अनुसार चलेंगी.''
इंदिरा को पीएम बनाने की राह उनके पिता ने ही आसान कर दी थी. राम बहादुर राय कहते हैं, ''नेहरू खुद इंदिरा को कांग्रेस की नेतृत्व की कतार में खड़ा करने, बनाए रखने और जिम्मेदारी सौंपने का प्रयास करते रहे. जब नेहरू की तबियत थोड़ी कमजोर हुई तो उन्होंने इंदिरा को कांग्रेस की कार्य समिति में रखा. 1959 में वो कांग्रेस की अधय्क्ष बनीं.''
राम बहादुर राय ये भी मानते हैं कि इंदिरा शुरु से ही प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं. उनका कहना है कि नेहरू के निधन के बाद इंदिरा इसलिए पीएम नहीं बनीं क्योंकि शास्त्री के सामने वो एक्सेप्टेबल नहीं थीं. वो कहते हैं, ''नेहरू की मौत के बाद भी इंदिरा प्रधानमंत्री की लाइन में तो थी हीं, लेकिन शास्त्री का नेतृत्व भारी पड़ा. जिस वजह से नेहरू के तुरंत बाद उन्हें पीएम नहीं बनाया गया. नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस के लीडरशीप ने ज्यादा अनुकूल उन्हें ही माना. हालांकि प्रधानमंत्री बनने के तीन साल बाद कांग्रेस नेतृत्व को ये समझ आ गया कि इंदिरा उनके अनुसार नहीं चल रहीं. इसलिए 1969 में बैंगलुर के एआईसीसी में कांग्रेस का बंटवारा हो गया.''
राम बहादुर राय को इंदिरा के व्यक्तित्व की सबसे मजबूत बात ये लगती है कि वो नेशनलिस्ट थीं. वहीं उनकी सबसे कमजोरी उनके पावर हंगर को बताते हैं. वो कहते हैं, ''इंदिरा में जीवन मूल्यों की कमी थी. प्रधानमंत्री बने रहने के लिए वो देश में तानाशाही ला सकती हैं, ये लोगों को उम्मीद नहीं थी. अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए वो किसी भी सीमा तक जा सकती हैं. देश को अंधेरे में भी डाल सकती हैं और उन्होंने ये किया भी.''
इंदिरा गांधी के बारे में-
इंदिरा का जन्म 19 नवम्बर 1917 को इलाहाबाद में हुआ था. उनके पिता जवाहरलाल नेहरू और माता कमला नेहरू थीं. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इंदिरा ने शांति निकेतन में प्रवेश लिया. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ही इन्हें 'प्रियदर्शिनी' नाम भी दिया था. इसके बाद उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू कहा जाता था.
18 साल की उम्र में इंदिरा के सिर से मां का साया उठ गया.
स्कूल के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया. यहीं उनकी मुलाकात फिरोज़ गाँधी से हुई थी. फिरोज गांधी नेहरू परिवार के काफी करीब थे और पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे. दोनों ने 16 मार्च 1942 को इलाहाबाद में शादी कर ली. इसके बाद ही इंदिरा के नाम के आगे 'गांधी' जुड़ा और इस तरह इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू का नाम इंदिरा गांधी हो गया.
1944 में उन्होंने राजीन गांधी को जन्म दिया. इसके दो साल बाद 1946 में संजय गांधी पैदा हुए.
1941 में पढ़ाई पूरी करके देश लौटने के बाद इंदिरा आजादी के आंदोलन से जुड़ी रहीं. जवाहर लाल नेहरू के पीएम बनने के बाद इंदिरा उनके साथ भी काम करती रहीं. 1964 में उनकी नियुक्ति एक राज्यसभा सदस्य के रूप में हुई. लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में उन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय मिला.
1959 में इंदिरा को इंडियन कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया. वो जवाहर लाल नेहरु की प्रमुख एडवाइजर टीम में शामिल थी. इसके बाद लाल बहादुर की मृत्यु के बाद 24 जनवरी 1966 में इंदिरा प्रधानमंत्री बनीं और 1977 तक इस पद पर रहीं. दोबारा 14 जनवरी 1980 को प्रधानमंत्री बनीं और अपनी हत्या के वक्त तक 31 अक्टुबर 1984 तक इस पद पर रहीं.
इमरजेंसी- 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पार्टी को बंपर जीत मिली. 12 जून 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया जिसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट गईं. 24 जून, 1975 को जस्टिस अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले पर आंशिक स्थगन आदेश दे दिया. जस्टिस अय्यर ने फ़ैसला दिया था कि इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में भाग तो ले सकती हैं लेकिन वोट नहीं कर सकतीं. इसके बाद इंदिरा गांधी ने आधी रात को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी.
आपातकाल के लागू होते ही उस वक्त के दिग्गज नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं जिनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फ़र्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे. इस दौरान प्रेस पर भी पाबंदी लगाई गई.
भारत-पाकिस्तान युद्ध- 1971 में इंदिरा गांधी के आदेश पर ही भारतीय फौज ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया. उसी समय बांग्लादेश बना.
ऑपरेशन ब्लू स्टार- 3 से 6 जून 1984 को अमृतसर (पंजाब, भारत) स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए आपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा चलाया गया.
इसके बाद ही कांग्रेस और सिखों के बीच दरार पैदा हुई. इसके कुछ ही महीने बाद ही 31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गई. इंदिरा को उनके ही दो सुरक्षाकर्मियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
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