UP By-election Result 2024: उत्तर प्रदेश उपचुनाव 2024 में करहल विधानसभा सीट पर मुकाबला खासा दिलचस्प रहा. यह सीट सपा का मजबूत गढ़ मानी जाती है, लेकिन इस बार चुनावी समर में सपा उम्मीदवार तेज प्रताप यादव को उनके फूफा अनुजेश यादव ने कड़ी चुनौती दी. हालांकि, तेज प्रताप यादव ने 14,704 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की. आइए जानते हैं वो 5 बड़ी बातें जिसके कारण इस चुनाव में फूफा को भतीजे ने मात दे दी.
दरअसल, करहल सीट लंबे समय से समाजवादी पार्टी के प्रभाव में रही है. यह सपा प्रमुख अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा वाली सीट भी मानी जाती है, क्योंकि 2022 में अखिलेश ने इसी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था. सपा के मजबूत नेटवर्क और जमीनी पकड़ के कारण इस सीट पर उनकी स्थिति मजबूत मानी जाती है.
फूफा-भतीजे के चुनाव लड़ने से बढ़ी दिलचस्पी
यह मुकाबला पारंपरिक राजनीतिक मतभेद से हटकर परिवार के भीतर का संघर्ष बन गया, जिससे वोटरों में खासा उत्साह देखा गया. फूफा-भतीजे के रिश्ते ने चुनाव के बीच में एक अलग माहौल बना दिया, जिससे करहल सीट के वोटरों ने और ज्यादा दिलचस्पी दिखाया और जमकर वोट किया.
भतीजे की रणनीति और चुनावी अभियान
भतीजे सपा उम्मीदवार तेज प्रताप यादव ने जमीनी स्तर पर गहरी पकड़ बनाने के लिए एक प्रभावशाली तरीके से प्रचार अभियान चलाया. युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उन्होंने विकास और रोजगार के मुद्दे उठाए. सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म का भी उपयोग किया गया, जिससे उनकी बात ज्यादा लोगों तक पहुंच पाई.
फूफा की परंपरागत राजनीति का असर
फूफा ने अपने पुराने राजनीतिक अनुभव और क्षेत्र में अपने लंबे समय से मौजूद संपर्कों का लाभ उठाने की कोशिश की. उन्होंने अपने परिवारिक और जातिगत आधार पर मतदाताओं को साधने की रणनीति अपनाई. हालांकि, यह प्रयास युवा और परिवर्तन की मांग कर रहे मतदाताओं के बीच ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ और उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
विकास बनाम परंपरा
मतदाताओं ने इस बार पारंपरिक समीकरणों के बजाय विकास को उपर रखा. भतीजे तेज प्रताप यादव ने अपने घोषणापत्र और प्रचार में क्षेत्रीय मुद्दों जैसे बुनियादी ढांचा, शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर दिया.फूफा की राजनीति को वोटरों ने पुरानी सोच वाले सोचकर ज्यादा तवज्जो नहीं दिया , जिससे उन्हें नुकसान हुआ.
चुनावी परिणाम और संदेश
चुनाव में भतीजे ने फूफा को बड़े अंतर से हराया, जिससे यह साफ हुआ कि वोटर बदलाव के पक्ष में हैं. इस जीत ने युवा नेताओं को सशक्त किया और पारंपरिक राजनीति को पूरी तरह से नकार दिया. परिवार के भीतर इस तरह के मंतभेद ने राजनीति और व्यक्तिगत संबंधों पर भी सवाल खड़े किए.
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