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Karnataka Election: हिजाब में चुनाव प्रचार, पति की विरासत बचाने की चुनौती, कर्नाटक में कांग्रेस की इकलौती महिला उम्मीदवार से मिलिए

Karnataka Elections: कनीज फातिमा इकलौती मुस्लिम महिला हैं जिन्हें कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है. वह गुलबर्ग उत्तरी से चुनावी मैदान में हैं.

Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए सोमवार (8 मई) को प्रचार का आखिरी दिन है. राज्य में सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस व जेडीएस ने पूरी ताकत झोंक रखी है. कर्नाटक में इस बार बीजेपी और कांग्रेस दोनों हिंदू वोटों को अधिक से अधिक खींचने की कोशिश कर रहे हैं. पीएम मोदी का रैलियों में बजरंग बली की जय का नारा हो या फिर कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष डीके शिवकुमार का सत्ता में आने में और मंदिर बनवाने का वादा, इसी कवायद का हिस्सा है. आइए ऐसे में देखते हैं कांग्रेस की इकलौती महिला मुस्लिम उम्मीदवार किस तरह से अपना चुनाव अभियान चला रही हैं.

कनीज फातिमा इस चुनाव में कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारी गई अकेली मुस्लिम महिला उम्मीदवार हैं. वे उत्तरी गुलबर्ग सीट से चुनाव लड़ रही हैं. यहां से विधायक भी हैं. राज्य में जेडीएस की एकमात्र महिला उम्मीदवार सबीना समद हैं, जो उडुपी की कापू सीट से मैदान हैं. वहीं, बीजेपी ने राज्य की 224 में से एक भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है.

पति की मौत के बाद राजनीति में एंट्री

63 वर्षीय फातिमा को 2018 के चुनावों से पहले छह बार के विधायक और मंत्री रहे उनके पति कमरुल इस्लाम के निधन के चलते राजनीति में एंट्री करनी पड़ी थी. सार्वजनिक रूप से हिजाब पहनने वाली फातिमा ने 2022 में बोम्मई सरकार के कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध के विरोध में प्रदर्शन किया था. हिजाब के साथ ही उन्होंने 2020 में सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शन में भी हिस्सा लिया था.

हिजाब विवाद के समय फातिमा ने कहा था, "हिजाब पहनना हमारा अधिकार है. स्वतंत्र भारत में हमें अपनी स्वतंत्रता है. हम लोगों से उनके कपड़ों पर सवाल नहीं करते. लड़कियों को इस मुद्दे पर कॉलेजों में जाने से नहीं रोका जाना चाहिए."

बीजेपी कैंडीडेट से चुनौती

फातिमा को अपने क्षेत्र में बीजेपी के चंद्रकांत पाटिल से कड़ी चुनौती मिल रही है. पाटिल एक युवा नेता हैं जो लिंगायत समुदाय से आते हैं. 2018 का चुनाव वह सिर्फ 5940 वोट से हार गए थे. फातिमा जिस सीट से मैदान में हैं, वहां मुस्लिम आबादी 60 फीसदी है, लेकिन उनके लिए मुश्किल ये है कि यहां से 9 दूसरे मुस्लिम प्रतिद्वंद्वी भी हैं. इनमें जेडीएस के नासिर हुसैन उस्ताद भी हैं.

मुस्लिम वोटों को साधने की कोशिश

फातिमा घर-घर और स्थानीय सब्जी बाजार जैसी जगहों पर प्रचार कर रही हैं. वे मतदाताओं से कह रही हैं कि मुस्लिम वोटों को विभाजित नहीं होना चाहिए. अपने विरोधियों को निशाने पर लेते हुए वे कहती हैं कि “हमारे विवादों का फायदा दूसरों को नहीं मिलना चाहिए. मेरी कोशिश सभी को एक साथ लाने की है. कमरुल साहब ने सबको साथ लिया था.

ये है चुनौती

इंडियन एक्सप्रेस ने फातिमा के एक सहयोगी के हवाले से लिखा है कि उनके खिलाफ यह अभियान चल रहा है कि वह अल्पसंख्यक समुदाय की महिला के रूप में निर्वाचन क्षेत्र को संभालने में सक्षम नहीं हैं.

उनके खिलाफ एक और आरोप लगता है कि वह 2020-21 में कोविड महामारी के दौरान एक्टिव नहीं थीं. उनके सहयोगी इन आरोपों का खंडन करते हुए कहते हैं. मैडम की तरफ से हम किट बांट रहे थे. वह 60 साल की हैं और कोविड के दौरान उन्हें खुद को सुरक्षित रखना था.

गुलबर्ग में बीजेपी हुई है मजबूत

इसी साल 23 मार्च को कांग्रेस ने गुलबर्ग नगर परिषद पर अपनी पारंपरिक पकड़ खो दी थी, जब बीजेपी ने गुलबर्ग का मेयर का पद हथिया लिया.  ऐसा तब हुआ जब 2021 के निकाय चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी. स्थानीय कांग्रेस इकाई ने हार के लिए मतदान के दिन जेडीएस पार्षद की अनुपस्थिति को जिम्मेदार ठहराया था.

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