Karnataka Election 2023: भारत की सबसे बड़ी सियासी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (BJP) कर्नाटक के आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है. यहां पर विधानसभा की 224 सीटें हैं. पिछले चुनाव में यहां बीजेपी ने 104 सीटों पर जीत हासिल की थी और फिलहाल उसके पास 117 विधायक हैं. विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल 24 मई को समाप्‍त हो रहा है. बीजेपी चाहती है कि यहां अगला चुनाव जीतकर वो फिर सरकार बनाए, क्‍योंकि कर्नाटक ही दक्षिण भारत का वो राज्‍य है, जहां सत्‍ता में रहने पर बीजेपी अन्‍य राज्‍यों की चुनावी लड़ाई ढंग से लड़ सकती है. दक्षिण के राज्‍यों में क्षेत्रीय दलों का खासा प्रभाव है और फिलहाल कर्नाटक ही ऐसा राज्‍य है जहां बीजेपी जैसे बड़े राष्‍ट्रीय दल के पास बहुमत है.


बीजेपी का प्रमुख चेहरा होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकर्ताओं से आवाह्न कर रहे हैं कि वे दक्षिणी राज्‍यों में पार्टी को मजबूती देने में पुरजोर तरीके से जुट जाएं. बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने पीएम मोदी की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कर्नाटक में रैलियों-जनसभाओं और बूथ स्‍तर के कार्यक्रमों की व्‍यापक योजना बनाई है. उनका ध्‍यान कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के साथ ही 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव पर है. बीजेपी ने 2024 के चुनावी रण के लिए कर्नाटक समेत दक्षिण के 5 राज्यों में अपनी ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है. सियासत के जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में 6-6 माह के तीन चरणों में बांटकर बीजेपी के दक्षिण में मजबूती पाने के अभियान को गति दी जाएगी. अपनी इसी रणनीति के तहत बीजेपी ने केरल से पीटी ऊषा, आंध्र से विजयेंद्र प्रसाद, कर्नाटक से वीरेंद्र हेगड़े और तमिलनाडु से इलैया राजा को राज्यसभा भेजा था.


अभी दक्षिण की 129 में से 29 सीटें ही BJP के पास 
बीजेपी के पास फिलहाल दक्षिण भारतीय राज्‍यों में लोकसभा की 29 सीटें हैं. ये सीटें भी केवल कर्नाटक और तेलंगाना से हैं. 2019 में बीजेपी ने कर्नाटक में 28 में से 25 लोकसभा सीटें जीती थीं, यानी कि अभी बीजेपी का खासा प्रभाव केवल कर्नाटक में ही है. वहीं, दक्षिण की कुल सीटों की बात की जाए तो केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र और तमिलनाडु में लोकसभा की 129 सीटे हैं. ये पांचों वही राज्‍य हैं, जहां अधिक लोकसभा सीटें जीतने पर ही बीजेपी का दक्षिण में भगवा लहराने का सपना पूरा हो जाएगा. इसलिए, बीजेपी यहां संघ पृष्ठभूमि वाले चेहरों, परंपरागत वंशवादी पार्टियों के असंतुष्ट नेताओं को साथ लेने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय गैर-राजनीतिक प्रतिभाओं की लोकप्रियता का सहारा लेने की रणनीति पर चल रही है. रणनीति के तहत पार्टी ने बीएस येदियुरप्पा को आगे किया है.


केसीआर और स्टालिन से पार पाने में जुटी पार्टी
6 महीने पहले बीजेपी की हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मिशन साउथ का रोडमैप तय किया गया था. मिशन साउथ में बीजेपी के मुख्य निशाने पर तेलंगाना में टीआरएस नेता केसीआर और तमिलनाडु में द्रमुक नेता एमके स्टालिन हैं. ये वो नेता हैं, जिनका अपने-अपने राज्‍यों में बड़ा असर है और इन्‍होंने अब तक के चुनावों में बीजेपी को हावी नहीं होने दिया. बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि उत्तर भारत में ग्रोथ सेचुरेशन के बाद अब उन्‍हें दक्षिण में भी अपनी जमीन बनानी होगी. इसी उद्देश्‍य को ध्‍यान में रखते हुए बीजेपी ने पहले विधानसभा चुनावों फिर लोकसभा चुनावों में अपनी ताकत झोंकी.


तेलंगाना में दम झोंका तो, TRS की बराबरी कर ली
बीजेपी के लिए दक्षिण भारत का सबसे महत्वपूर्ण रणक्षेत्र तेलंगाना है, जहां पार्टी पिछले कई साल से कड़ा संघर्ष कर रही है. 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी महज एक सीट जीत पाई थी और उसका वोट शेयर 7% रहा था. हालांकि, उसके बाद जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने 4 लोकसभा सीटें जीतीं और उसका वोट 19.7% हो गया. वहीं, 2016 में हैदराबाद महानगर पालिका चुनाव में बीजेपी की 4 सीटें थीं, जो 2020 में 48 हो गईं. इस तरह 35% वोट के साथ बीजेपी और टीआरएस बराबरी पर आ गईं. हालांकि, अब देखा यह जाएगा कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी कितना कुछ हासिल कर पाती है.


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