Karnataka Assembly Election: चुनाव आयोग ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों को लेकर बुधवार (29 मार्च) को आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की तारीखों का एलान कर दिया है. कर्नाटक में 10 मई को वोटिंग होगी और 13 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे. कर्नाटक में असली लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच है, लेकिन जेडीएस भी पूरे दमखम के साथ मैदान में है. बहरहाल कौन किस पर भारी पड़ेगा ये तो नतीजे के दिन पता चल पाएगा. उससे पहले आपको राज्य का जातीय समीकरण बताते हैं.
कर्नाटक में 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 6.11 करोड़ है. इनमें सबसे ज्यादा हिन्दू 5.13 करोड़ यानी 84 फीसदी हैं. इसके बाद मुस्लिम हैं जिनकी जनसंख्या 79 लाख यानी 12.91 फीसदी है. राज्य में ईसाई 11 लाख यानी लगभग 1.87 फीसदी हैं और जैन जनसंख्या 4 लाख यानी 0.72 फीसदी है.
लिंगायत सबसे बड़ा समुदाय
कर्नाटक का लिंगायत सबसे बड़ा समुदाय है. इनकी जनसंख्या करीब 17 फीसदी है. इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा समुदाय वोक्कालिगा है, जिसकी आबाजी 12 फीसदी हैं. राज्य में कुरुबा 8 फीसदी, एससी 17 फीसदी, एसटी 7 फीसदी हैं. लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं. इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के चलते हुआ था.
राज्य में किसका गठबंधन
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में सत्तारूढ़ बीजेपी अपने दम पर मैदान में है. वहीं, राज्य में जेडीएस और बीआरएस गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी थी, लेकिन ये दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं. राज्य में आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम भी अकेले ही चुनावी रण में उतर रही हैं.
किस तरफ रहेगा मुसलमानों का वोट
राज्य की दलित आबादी के वोट आम तौर पर सभी दलों में विभाजित होते हैं. हालांकि कांग्रेस इन वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में कामयाब होती है. दूसरी ओर मुसलमानों का वोट आमतौर पर कांग्रेस और जेडीएस के बीच बंट जाता है. लिंगायत समुदाय कई वर्षों से बीजेपी को वोट देता रहा है. वोक्कालिगा वोट शेयर आमतौर पर कांग्रेस और जेडीएस को मिलता है. बीजेपी इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है.
2018 की तरह, जनता दल (एस) एक त्रिशंकु विधानसभा बनाना चाह रही है, ताकि वह किंगमेकर की भूमिका निभा सके. जैसाकि उसने कई बार किया है. मौजूदा हालात को देखते हुए 2018 और 2023 के चुनाव में कई समानताएं हैं. सभी दल जातियों को साधने में लगे हैं. बीजेपी हिंदू और लिंगायत वोटों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बल पर वापसी की उम्मीद कर रही है.
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