Karnataka Election 2023: ओल्ड मैसूर क्षेत्र की 60 सीटों पर कांग्रेस का पलड़ा रहा है भारी, BJP को कर्नाटक फतह के लिए बनानी होगी खास रणनीति, जानिए यहां का समीकरण
Karnataka Election: ओल्ड मैसूर क्षेत्र में 60 निर्वाचन क्षेत्र हैं. कर्नाटक में यह किसी भी पार्टी के लिए चुनाव जीतने का एक अहम ब्लॉक है. इस इलाके में वोक्कालिगा समुदाय के लगभग 17 प्रतिशत मतदाता हैं.
Karnataka Old Mysore Region: कर्नाटक का ओल्ड मैसूर क्षेत्र सूबे में चुनावी रणनीति के लिहाजे से काफी मजबूत माना जाता है. जनत दल (सेक्युलर) के पारंपरिक गढ़ के रूप में इस क्षेत्र का खासा महत्व है. आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर इस इलाके में तेजी से राजनीतिक बदलाव देखने को मिल रहा है, जिसने इस बार इसे सबसे कड़े मुकाबले वाले क्षेत्र में बदल दिया है. वहीं बीजेपी और कांग्रेस भी जेडीएस के इस अभेद किले को ध्वस्त करने को पूरी तरह तैयार नजर आ रहे हैं.
मुख्यमंत्री पद के तीन उम्मीदवारों वाले इस क्षेत्र को सत्ता के शिखर पर काबिज होने का एक अहम द्वार माना जाता है. ओल्ड मैसूर क्षेत्र के कोलार, चिक्काबल्लापुर, बेंगलुरु ग्रामीण, तुमकुरु, रामनगर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर और हासन जिलों की कुल 52 सीटें बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के लिए महत्वपूर्ण हैं. वहीं राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस किसी भी पार्टी ने वोक्कालिगा बहुल क्षेत्र ओल्ड मैसूर में जीत हासिल कर ली, वह कर्नाटक पर फतह कर सत्ता पर कब्जा जमा सकता है.
कांग्रेस का पलड़ा है भाड़ी
ओल्ड मैसूर क्षेत्र में लगभग 60 निर्वाचन क्षेत्र हैं, इसको लेकर कर्नाटक में किसी भी पार्टी के लिए चुनाव जीतने का एक अहम ब्लॉक है. यह शुरू से कांग्रेस का मूल गढ़ था जहां हाल के दशक में जेडीएस ने अपनी पकड़ मजबूत कर इस इलाके में अपनी अहम पहचान बनाई है. इस इलाके में वोक्कालिगा समुदाय के लगभग 17 प्रतिशत मतदाता है, वहीं यह क्षेत्र एस-सी एस-टी बहुल भी है.
कांग्रेस की बात करें तो एक समय ऐसा था जब पूरे इलाके पर इसी का बोलबाला हुआ करता था. यहां से कांग्रेस को अच्छी खासी सीटें मिल जाती थीं. लेकिन पिछले कुछ चुनावों में पार्टी को मन मुताबिक सीटें नहीं मिल पाई हैं. 2018 के चुनाव की बात करें तो ओल्ड मैसूर क्षेत्र में कांग्रेस को 20 सीटें मिली थीं, जो 2013 के हिसाब से 6 सीटें कम थीं. हालांकि कांग्रेस को अब भी यहां से कई उम्मीदें हैं क्योंकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार भी यहां के बहुल समुदाय वोक्कालिगा से ही आते हैं. इससे पार्टी को यहां से बढ़त हासिल करने की उम्मीद है.
बीजेपी को मिला तुरुप का इक्का
तीनों पार्टियों में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना है. बीजेपी में वोक्कालिगा समाज से कोई बड़ा चेहरा ना रहने के कारण इस क्षेत्र में वह अच्छा नही कर पाई है. हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां से कुछ सीटों में बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन जेडीएस और कांग्रेस के मुकाबले वह काफी पीछे रह गई थी. अब इस बार बीजेपी पुरानी गलतियां नहीं दोहराना चाहती है, इसलिए पार्टी में कई स्थानीय नेताओं को शामिल किया गया है. इसी में एक नाम कर्नाटक से चार बार विधायक रहे ए टी रामास्वामी का भी है, जिन्होंने (1 अप्रैल) शनिवार को नई दिल्ली में भाजपा ज्वाइन की. साफ छवि वाले 71 वर्षीय नेता ने (2004 तक) कांग्रेस के लिए हासन क्षेत्र से प्रतिनिधित्व किया है. बताया जा रहा है कि वोक्कालिगा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले रामास्वामी की इस क्षेत्र पर खासी पकड़ है, जो बीजेपी के लिए तुरुप का इक्का हो सकते हैं.
जेडीएस एक बार फिर किंगमेकर बनना चाहेगा
कांग्रेस और बीजेपी जिस किले को भेदना चाहती हैं. यहां की किंग मानी जाने वाली जेडीएस की यहां के समुदाय पर कुछ ज्यादा ही पकड़ जान पड़ती है. क्योकि साल 1983 के बाद से इस बहुल समाज के साथ पूर्व प्रधानमंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी देव गौड़ा का एक अलग ही दबदबा है, क्योकि देव गौड़ा को पता है कि राज्य में लिंगायत समाज के बाद किसी के पास सबसे ज्यादा वोट है तो वह वोक्कालिगा ही हैं. खुद देव गौड़ा इसी जाति के हैं इससे उनकी छवि इलाके में काफी पक्की नजर आती है. साल 2004 में जेडीएस ने यहां से कुल 46 सीटें जीतकर इस क्षेत्र में अपनी एक अलग छाप छोड़ी थी. साथ ही इस चुनाव में भी जेडीएस एक अहम भूमीका निभाती नजर आएगी और एक बार फिर किंगमेकर के रूप में राज्य की सत्ता पर अधिकार कायम करने की कोशिस करेगी.