Karnataka CM Swearing-In: कर्नाटक में कांग्रेस के सामने क्या है चुनौती? इन 5 प्वाइंट में समझिए
Siddaramaiah Oath Taking Ceremony: कर्नाटक में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां हैं. पार्टी के भीतर विभिन्न गुटों को प्रतिनिधित्व देना और सबको एक साथ लेकर चलना भी किसी चुनौती से कम नहीं है.
Karnataka CM Oath Ceremony: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुमत से जीत हासिल की है. राज्य में नए सीएम के रूप में सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम के पद पर डीके शिवकुमार ने शनिवार (20 मई) को बेंगलुरु स्थित श्री कांतीरवा स्टेडियम में शपथ ली है. इनके साथ कांग्रेस के आठ विधायकों केएच मुनियप्पा, जी परमेश्वर, प्रियांक खरगे, एमबी पाटिल, सतीश जारकीहोली, जमीर अहमद खान, केजे जॉर्ज और रामलिंगा रेड्डी ने भी मंत्री पद की शपथ ग्रहण की है. इसके बावजूद कांग्रेस सामने कई चुनौतियां हैं. आइये इन पांच प्वाइंट में समझते हैं कि मंत्री पद मिलने के बाद पार्टी को किन चुनौतियों से गुजरना पड़ सकता है.
1. जिन्हें मंत्री पद दिया गया, उनके सामने चुनौती होगी कि किस प्रकार से वो पार्टी के प्रमुख वादों को लागू और एक प्रभावी शासन सुनिश्चित करते हैं. हालांकि, कई बार ये ठंडे बस्ते में भी चला जाता है, जिसके बाद से अन्य फैक्टर हावी हो जाते हैं.
2. मंत्रालय में प्रतिनिधित्व में क्षेत्रीय संतुलन सुनिश्चित करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है. कित्तूर कर्नाटक और बेंगलुरु शहर के अलावा, पुराने मैसूर क्षेत्र से हाल में ही कई मंत्री बने हैं, जो कल्याण कर्नाटक और मध्य कर्नाटक भी तटीय कर्नाटक की तरह पर्याप्त प्रतिनिधित्व की आशा में रहे होंगे. इनमें कुछ ऐसे जिले हैं, जिनमें कांग्रेस ने असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है. इसको लेकर उम्मीद की जा सकती है कि उन जिलों का प्रतिनिधित्व अधिक होगा, वैसे भी लोकसभा चुनाव में एक साल से कम का समय बचा हुआ है.
3. सही जाति संतुलन को सुनिश्चित करना भी मंत्रियों की पसंद को प्रभावित कर सकता है. कांग्रेस ने सभी वर्गों को एक साथ लाकर चुनाव जीता. लिंगायत और वोक्कालिगा प्रमुख जातियां है और वो पर्याप्त प्रतिनिधित्व चाहती हैं. वहीं, कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जातियों के भी वोट बटोरे हैं. इसके अलावा, डिप्टी सीएम बनाने की मांग पहले यहां से ही उठ रही थी. कांग्रेस के लिए इन समुदायों को उचित संख्या में वरिष्ठ पदों के साथ मंत्रालय में पर्याप्त प्रतिनिधित्व देना भी किसी चुनौती से कम साबित नहीं होगा.
4. कांग्रेस नेतृत्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती नए चेहरों के साथ वरिष्ठता को संतुलित करना है. लगभग एक चौथाई विधायक पहले मंत्री रह चुके हैं, उनमें से किसे प्राथमिकता देनी है, पार्टी के लिए ये तय करना बहुत मुश्किल होगा. साथ ही, संतुलन बनाये रखना भी इतना आसान नहीं होगा. इस बार के चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में किसी भी राजनीतिक दल ने महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस विभागों का आवंटन करते समय महिलाओं को परंपरागत सांकेतिक प्रतिनिधित्व देगी?
5. पिछली बार कांग्रेस को गुटबाजी का सामना करना पड़ा था. पार्टी के भीतर विभिन्न गुटों को प्रतिनिधित्व देना और सबको एक साथ लेकर चलना भी किसी चुनौती से कम नहीं है.
विभागों का बंटवारा होगी चुनौती
कांग्रेस में जब मंत्री पद बांट दिए जाएंगे तो पार्टी के सामने विभागों का बंटवारा करना भी एक चुनौती होगी. ऊपर के पांच पॉइंट भी विभागों का बंटवारा करते समय महत्वपूर्ण रोल निभाएंगे. सरकार के वादों को लागू करने के लिए पोर्टफोलियो की अहमियत ज्यादा होगी, क्योंकि सरकार के प्रदर्शन का आकलन संबंधित मंत्रालयों से जुड़ा होगा.
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