Mallikarjun Kharge: कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटों के लिए 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को परिणाम आएगा. पिछले काफी चुनावों में लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस को 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव जीतना बेहद जरुरी है. वहीं, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए चुनावी परिणाम का काफी महत्व होगा. खड़गे के गृह राज्य कर्नाटक में हो रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उनसे काफी उम्मीदें हैं. दरअसल, खड़गे के अध्यक्ष बने रहने से यहां कांग्रेस को राजनीतिक मुनाफा होगा और पिछड़ी जाति के वोटों पर दोबारा से पकड़ मजबूत होगी. अनुसूचित जाति से आने वाले खड़गे दूसरे नेता हैं जो कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं, इससे पहले जगजीवन राम थे. कुल मिलाकर कर्नाटक चुनाव गांधी परिवार से ज्यादा खड़गे के लिए अहम है, जो किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा. 5 पॉइंट्स में समझे खड़गे और गांधी परिवार के बारे में.
1. चुनाव जीतना खड़गे की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा
कांग्रेस में अपना रुतबा बनाये रखने के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को कर्नाटक चुनाव कैसे भी करके जीतना होगा. हालांकि, जमीनी स्तर पर खड़गे जुटे हुए हैं और पार्टी की रणनीति भी तैयार कर रहे हैं. खड़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस में चल रही गुटबाजी है, उन्हें अपने लंबे सियासी अनुभव और पद का इस्तेमाल करके इसे खत्म करना होगा और सभी को साथ लेकर चलना होगा. इसी चुनौती को पूरा के लिए खड़गे ने पूरा जोर लगा दिया है.
बताते चलें कि केंद्र की सत्ता से 9 सालों से बाहर कांग्रेस काफी कमजोर है, उसका जनाधार भी लगभग खत्म होता जा रहा है और कई राज्यों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा है. केवल तीन राज्य में ही कांग्रेस सत्ता में है. वहीं, ये चुनाव खड़गे के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा साबित होगी, जब उन्हें अपने गृह राज्य कर्नाटक में कांग्रस के खोते जा रहे जनाधार को वापस लाना होगा और पार्टी की सत्ता में वापसी करानी होगी.
2. अनुसूचित वोटरों को लाना होगा वापस
बीते सालों में कर्नाटक में दलितों के एक वर्ग का रुझान बीजेपी की ओर बढ़ा है, जिससे कांग्रेस को काफी नुकसान झेलना पड़ सकता है. कर्नाटक में अनुसूचित जाति की टोटल आबादी लगभग 19.5 प्रतिशत है, जो जातीय समूह में सबसे बड़ा है. इसके अलावा, 36 विधानसभा सीटें भी इनके लिए रिजर्व हैं. इससे पहले 2018 के चुनाव में अनुसूचित जाति बहुल सीटों पर बीजेपी को काफी ज्यादा फायदा मिला था, जिसमें पार्टी को अनुसूचित जातियों का 40 प्रतिशत वोट मिला था. वहीं, कांग्रेस को 37 प्रतिशत और जेडीएस को 18 प्रतिशत वोट मिले थे. लिहाजा, इस चुनाव में खड़गे को अनुसूचित जाति वोट बैंक साधने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी.
3. कांग्रेस में गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती
कर्नाटक में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती गुटबाजी है, जिसके बारे में मल्लिकार्जुन खड़गे को भलीभांति पता है. एक तरफ प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और दूसरी तरफ पूर्व सीएम सिद्धारमैया हैं. खड़गे के लिए इन दोनों गुटों की अंदरूनी कलह को रोकना बहुत ज्यादा जरूरी है, क्योंकि दोनों ही नेता का अपना खुद का रुतबा और दबदबा है. शिवकुमार वोक्कालिगा समाज से आते हैं और सिद्धारमैया ओबीसी के कोरबा जाति से हैं. दोनों ही जातियां संख्याओं में काफी ज्यादा है, जिसे हर हाल में कांग्रेस अपने साथ जोड़े रखना चाहती है. इसको लेकर शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच सियासी तालमेल बैठाने की कोशिश में खड़गे लगे हुए हैं. इसी गुटबाजी को लेकर कांग्रेस ने कर्नाटक में सीएम का चेहरा दोनों में से किसी को भी नहीं बनाया है और सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है. वहीं, अगर खड़गे की इन दोनों नेताओं को साथ लाने की कोशिश कामयाब होती है, तो कांग्रेस के लिए चुनाव जीतना बहुत आसान हो जाएगा और जीत का पूरा श्रेय खड़गे को ही मिलेगा.
4. तीन बार सीएम बनने से चूके खड़गे
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया की गुटबाजी के साथ खड़गे का निजी अनुभव भी जुड़ा है. दरअसल, खड़गे तीन बार सीएम बनने से चूके थे. साल 1999 में एस एम कृष्णा से मिली हार, साल 2004 में एन धर्म सिंह से मिली हार और साल 2013 में सिद्धारमैया से मिली हार के बाद साल 2004 में खड़गे के पास अलायन्स वाली सरकार चलाने का मौका था और वे सीएम बनने जा रहे थे. लेकिन, ऐन मौके पर एचडी देवगौड़ा ने कांग्रेस के ही एन धर्म सिंह का समर्थन कर दिया था, जिससे खड़गे सीएम बनते-बनते रह गए थे. इसके बाद साल 2018 में सरकार बनी और डेढ़ साल के अंदर गिरी तो इसी वजह से कि जेडीएस पर खड़गे का भरोसा टिक नहीं पाया और उन्होंने सोनिया गांधी व राहुल गांधी को साफतौर पर कहा कि जेडीएस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इसी वजह से कांग्रेस, जेडीएस को बीजेपी की बी-टीम बता रही है और शिवकुमार को आगे करके देवगौड़ा के कोर वोटबैंक वोक्कालिगा समुदाय को साधने में जुटी है.
5. गांधी परिवार के साथ खड़ा रहा कर्नाटक
साल 1977 में देश भर से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था. मगर, उस वक्त इंदिरा गांधी के साथ खड़ा रहने वाला एकमात्र राज्य कर्नाटक ही था. तब इंदिरा गांधी कर्टनाक की चिकमंगलूर सीट से उपचुनाव लड़ीं और संसद पहुंची थीं. उस जमाने में पूर्व बीजेपी सांसद डीबी चंद्र गौड़ा कांग्रेस में थे और इंदिरा गांधी के लिए उन्होंने अपनी सीट छोड़ दी थी. ऐसे में सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा था. कर्नाटक के बेल्लारी से पहला चुनाव लड़कर सोनिया ने बीजेपी की सुषमा स्वराज को हराया था. बताते चलें कि विधानसभा चुनाव की घोषणा से एक हफ्ता पहले ही कांग्रेस ने अपने कई प्रत्याशियों की घोषणा कर दी थी. कांग्रेस ने 124 प्रत्याशी उतार दिए हैं और बाकी बची 100 सीटों के लिए गुरुवार को स्क्रीनिंग कमेटी में प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा की जाएगी. खुदा ना खास्ता अगर कांग्रेस कर्नाटक चुनाव जीत जाती है तो ये जीत खड़गे के लिए सियासी तौर पर बहुत बड़ी सफलता साबित होगी.