Karnataka Election 2023: मतदान कल, लेकिन इन छह सवालों के जवाब आपको जानना बेहद जरूरी
Karnataka Elections: कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 निर्वाचन क्षेत्र हैं. कल यानी बुधवार 10 मई को यहां पर सुबह से ही मतदान शुरू हो जाएगा. मतदान के साथ ही कर्नाटक चुनाव समाप्त हो जाएगा.
Karnataka Elections 2023: दक्षिण भारतीय राज्यों में कर्नाटक ही एक मात्र राज्य है, जहां पर भाजपा जीतती रही है. वह इस बार भी अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहेगी और 38 साल से चली आ रही परंपरा को तोड़ना चाहती है. इसके लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंकी है. ताबड़तोड़ दिग्गज स्टार प्रचारकों ने कर्नाटक में लोगों को यह समझाया है कि कैसे उनके लिए और राज्य के विकास के लिए सिर्फ भाजपा ही जरूरी है.
लेकिन ओपिनियन पोल में भाजपा रही है पीछे
इस बार के कर्नाटक विधानसभा को लेकर हुए चुनाव पूर्व ओपिनयन पोल पर अगर नजर दौड़ाएंगे तो उनमें से लगभग में भाजपा की वापसी नहीं दिखाई गई है. इंडिया टीवी-सीएनएक्स ने अपने सर्वेक्षणों में कांग्रेस को 105 सीटों के साथ बढ़त लेते हुए दिखाया है और वहीं, सत्तारूढ़ बीजेपी को 85 सीटों पर जीत दर्ज करने का अनुमान जताया है.
कर्नाटक चुनाव के लिए एबीपी-सी-वोटर ओपिनियन पोल ने भी पीएम के जोरदार रोड शो और ताबड़तोड़ 17 रैलियों के बावजूद कांग्रेस को ही बढ़त मिलने की संभावना जताई है. एबीपी-सी-वोटर के मुताबिक, कांग्रेस को 110-122 सीटें मिलने की संभावना है. जबकि साधारण बहुमत की सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्याबल 113 है.
वहीं, इंडिया टुडे-सीवोटर ने भी अपने सर्वेक्षण में भाजपा को झटका दिया है. उसने अपने सर्वेक्षण के माध्यम से भविष्यवाणी कि है कि इस बार भाजपा केवल 74-86 सीटों को सुरक्षित कर सकती है. यानी की 2018 की तुलना में भाजपा के लिए 24 सीटों का नुकसान का आकलन जताया है.
इसके अलावा कन्नड़ आउटलेट, ईडिना ने अपने सर्वे में 32-140 सीटों के साथ कांग्रेस को बहुमत मिलने का अनुमान जताया है और भाजपा को सिर्फ 57-65 सीटें हीं प्राप्त होने का अनुमान जताया है.
ओपिनियन पोल कितना भरोसेमंद?
अगर हम 2018 के कर्नाटक चुनावों के लिए 13 जनमत सर्वेक्षणों के आंकड़ों का विश्लेषण देखें तो पता चलता है कि उनमें से केवल दो सर्वेक्षणों का अनुमान ही सही दिशा में दिखाया गया था. दोनों ने अपने सर्वेक्षणों में यह बताया था कि किसकी जीत होगी या कौन सबसे बड़ी पार्टी (एसएलपी) के रूप में उभरेगी. 13 में से 10 ने भविष्यवाणी की थी कि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनेगी जबकि सी-फॉर ने अपने अनुमान में बताया था कि कांग्रेस चुनाव जीत जाएगी. यह लगभग चार दशकों तक किसी भी मुख्यमंत्री के फिर से चुनाव न जीतने के मजबूत दावों के बीच का सर्वे था.
'मोदी फैक्टर' बीजेपी के लिए कितना असरदार?
'मोदी फैक्टर' वह अतिरिक्त वोट है जो पीएम अपने करिश्मे/व्यक्तित्व की पहचान की बदौलन भाजपा के पाले में लाते हैं. इसमें यह जरूरी नहीं रह जाता है कि कोई मतदाता किस राजनीतिक विचारों से प्रेरित है. जब पार्टी सत्ता में होती है और राज्यों में सत्ता से बाहर होती है तो मोदी फैक्टर अलग तरह से काम करता है. 2018 में कर्नाटक के अनुकूल इतिहास के बावजूद कर्नाटक में नई सरकार चुनने और मोदी फैक्टर के चलते बीजेपी बहुमत के आंकड़े को छू नहीं पाई थी.
पिछले चुनाव परिणाम पर नजर डालना आवश्यक
अगर आप 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखेंगे तो पाएंगे की उस वक्त मतदाताओं ने एक खंडित जनादेश दिया था. यानी की किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत के आंकड़ों तक नहीं पहुंचाया. लेकिन बीजेपी वहां पर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. उसे पिछले चुनाव में 104 सीटें मिली थी. जबकि कांग्रेस और जद (एस) ने 87 और 30-30 सीटें जीतीं थी.
उस वक्त राज्य के सीएम येदियुरप्पा को राज्यपाल ने 15 दिनों के अंदर अपना बहुमत साबित करने का समय दिया था. बाद में उस समयावधी को घटाकर तीन दिन कर दिया गया था. लेकिन सीएम येदियुरप्पा ने मई 2018 में विश्वास मत से पहले ही अपना इस्तीफा दे दिया था और जिससे कि एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में कैबिनेट बनाने के लिए कांग्रेस-जेडी (एस) गठबंधन का मार्ग प्रशस्त हुआ था. लेकिन यह सरकार भी महज 14 महीने चल पाई थी.
कल मतदाताओं के दिमाग में क्या कुछ होगा?
इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया. उसने इस बार राज्य में अपनी सरकार बनवाने के लिए लोगों से पांच प्रमुख वादे भी किए हैं, जिन्हें वह गारंटी कहता है: गरीब परिवारों के लिए 10 किलो मुफ्त चावल, 200 यूनिट तक मुफ्त में बिजली, महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों के लिए 2,000 रुपये का मासिक भत्ता, बेरोजगार स्नातकों और डिप्लोमा धारकों के लिए मासिक भत्ता और कामकाजी महिलाओं के लिए मुफ्त में सार्वजनिक परिवहन की सुविधा देने की बात कही है.
वहीं, भाजपा ने अपने चुनावी षणापत्र में खाद्य सुरक्षा, सामाजिक कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास और आय से संबंधित छह वादों को सूचीबद्ध किया है. इसके अलावा उसने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता (CAA) और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) को लागू करने का भी वादा किया है.
वहीं, तीसरी प्रमुख पार्टी जद (एस) ने अपने घोषणापत्र में ग्राम पंचायत स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, परिवारों को 40 लाख रुपये तक की चिकित्सा सहायता, महिलाओं और स्वयं सहायता समूहों का कर्ज माफ करने, किसानों को वित्तीय सहायता और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का वादा किया है.
अब सवाल यह कि अभी तक के मुताबिक बढ़त किसके पास है?
कुल मिलाकर देखें तो कर्नाटक में जो राजीतिक हवा बह रही है वह कांग्रेस के लिए अनुकूल है. हालांकि, यह देखा जाना काफी दिलचस्प रहने वाला है कि क्या यह पीएम मोदी की जनसभाओं और रोड शो के बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी हो पाएगी या नहीं. 2018 में, हालांकि, "मोदी मैजिक" ने बीजेपी को साधारण बहुमत हासिल करने में मदद नहीं की थी और इस बार अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है. ये सब कुछ 13 मई यानी परिणाम वाले दिन ही स्पष्ट हो पाएगा.
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