Karnataka Election Results 2023: कर्नाटक चुनाव का अंतिम परिणाम आना बाकी है. आगामी लोकसभा से पहले दक्षिण भारत में एक मात्र भाजपा का माने जाने वाला कर्नाटक चुनाव का परिणाम कई मायनों में खास रहने वाला है. अब तक तो आए सर्वेक्षणों के मुताबिक कांग्रेस की स्थिति मजबूत नजर आ रही है. हालांकि चुनाव परिणाम भी क्रिकेट मैच की तरह होते हैं. कब कौन बाजी मार जाए कुछ भी कहना बहुत मुश्किल हो जाता है.
शनिवार 13 मई को जो भी होगा उस पर कर्नाटक की जनता का मुहर लगा होगी. लेकिन 2023 के कर्नाटक चुनाव से पहले हम आपको पिछले पांच साल में तीन मुख्य मंत्रियों के बनने, बदलने और सियासी समीकरणों को बताएंगे. दरअसल, यह इसलिए भी जरूरी है कि 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम की तरह अगर इस बार भी खंडित जनादेश मिला तो क्या समीकरण होंगे. कैसे सरकार का गठन किया जा सकेगा.
क्या जनादेश था 2018 में
कर्नाटक विधानसभा चुनवा 2018 में वहां कि जनता ने किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया था. पिछली बार भी लड़ाई त्रिकोणीय थी यानी भाजपा, कांग्रेस और जेडी (एस) के बीच की लड़ाई. लेकिन जब परिणाम आया तो खंडित जनादेश मिला. पिछली बार भाजपा सबसे बडे़ दल के रूप में उभरी थी. उसके पास 104 विधायक थे. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के पास 78 सीटें थी, वहीं, जेडीएस के खातें में 37 सीटें गई थीं. ऐसे में राज्य में सरकार बानने के लिए किसी के पास बहुमत नहीं था. सिर्फ गठबंधन सरकार ही बनाई जा सकती थी.
इसके बाद राज्यपाल की भूमिका बेहद अहम हो गई थी और उन्होंने राज्य में सबसे बड़े दल होने के नाते और BJP के बहुमत साबित करने के दावे के बीच भाजपा के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार गठन का न्योता दिया. हालांकि राज्यपाल के इस फैसले पर कांग्रेस ने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. रातभर सुनवाई भी चली लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने येदियुरप्पा के शपथग्रहण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. लेकिन येदियुरप्पा का सरकार सात दिन ही चल सका. सदन में बहुमत साबित नहीं हो सका और सरकरा गिर गई.
येदियुरप्पा के बाद एच डी कुमारस्वामी बने थे मुख्यमंत्री
इधर, येदियुरप्पा की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस और JDS ने मिलकर सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी थी. इसमें कांग्रेस के पास 78 सीटें तो थीं लेकिन वह गठबंधन के बिना सरकार नहीं बना सकती थी. इसलिए जेडीएस से ज्यादा सीटें रहने के बावजूद कोई कांग्रेस प्रत्याशी मुख्यमंत्री नहीं बन सका. मुख्यमंभी की कुर्सी जेडी (एस) प्रमुख एच डी कुमारस्वामी को दी गई. लेकिन ये गठबंधन की सरकार महज 14 महीने ही चल सकी और सरकार गिर गई. सरकार गिरने के पीछे विधानसभा के स्पीकर रमेश कुमार ने कांग्रेस के तीन विधायकों को अयोग्य करार दे दिया था. वहीं जेडीएस के एक विधायक ने फ्लोर टेस्ट में हिस्सा नहीं लिया था.
फिर से येदियुरप्पा बने मुख्यमंत्री
राज्य में अब एक बार फिर से नए मुख्यमंत्री की जरूरत थी. ऐसे में भाजपा के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. चूंकि तीन विधायकों के अयोग्य घोषित होने के बाद विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 224 से घटकर 221 रह गई थी. कांग्रेस के 76 विधायकों में से 13 और ऐसे विधायक थे जिनकी सदस्यता पर स्पीकर को फ़ैसला सुनाना था. वहीं, जेडीएस के 37 विधायकों में से तीन के त्यागपत्र पर भी स्पीकर को फ़ैसला देना था.
भाजपा को कर्नाटक में चाहिए था उत्ताराधिकारी इसलिए मुख्यमंत्री बने बोम्मई
बीएस येदियुरप्पा ने 16 जुलाई को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. बैठक के दौरान, मोदी ने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री को बताया कि उन्हें इस्तीफा देने पर विचार करना चाहिए और पार्टी उनके उत्तराधिकारी की घोषणा करेगी. 27 जुलाई को, जब भाजपा के कर्नाटक विधायकों ने 61 वर्षीय वफादार बासवराज बोम्मई को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया था. तब से येदियुरप्पा काफी नाराज भी थे लेकिन इस बार अपने बेटे को टिकट मिलने और काफी मान मन्नोवल के बाद वे चुनाव प्रचार में जुटे थे.
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