Mallikarjun Kharge in Karnataka Election: कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बननी तय है. यहां पर विगत 10 मई को 224 सीटों के लिए 2,615 उम्मीदवारों के लिए 5.13 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले थे. आज (13 मई को) चुनाव परिणाम आ रहे हैं. अब तक की काउंटिंग में कांग्रेस (Congress) पार्टी 130 सीटें जीतते दिख रही है. कांग्रेस की इस जीत के पीछे उसके 2 दक्षिण भारतीय राजनेताओं की भूमिका अहम मानी जा रही है. एक हैं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) और दूसरे हैं- कांग्रेस के कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार.


मल्लिकार्जुन खरगे पिछले साल ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए थे. खरगे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना पार्टी को कर्नाटक में संजीवनी दे गया है. सियासत के जानकारों का कहना है कि उनसे कांग्रेस को कर्नाटक की अनुसूतिक बहुल सीटों पर सीधा फायदा हुआ. खरगे कर्नाटक से 9 बार विधायक रह चुके हैं और यहां की राजनीति में उनका खास प्रभाव रहा है. यह अलग बात है कि उन्‍हें मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, किंतु पार्टी ने उन्‍हें अपना राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बनाकर इस बार कर्नाटक की सत्‍ता पा ली है.




अनुसूचित जाति बहुल सीटों पर खरगे की वजह से बढ़ा प्रभाव
जब से कर्नाटक चुनाव के चर्चे शुरू हुए थे, तब से खरगे के गृह प्रदेश के कांग्रेसी दिल से कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए मल्लिकार्जुन खरगे की ही जीत चाहते थे. कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं की ये दलील रही कि खरगे के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से वहां की कई परेशानियां हल हो जाएंगी. उनका कहना था कि इससे पार्टी की गुटबाजी खत्म होने के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में उन्‍हें जीत मिल सकती है. दरअसल, खरगे लंबे समय तक कर्नाटक की सियासत में सक्रिय रहे. 





  • पार्टी को मजबूती देने के लिए खरगे ने स्थानीय स्तर पर कमेटियां बनवाईं. खुद कई बार रैलियां करने आए. उन्होंने पार्टी की प्रदेश कमान का भी सहयोग किया.


कर्नाटक से 9 बार विधायक रहे मल्लिकार्जुन
कर्नाटक की लगभग 23% आबादी दलित है. राज्य की 35% सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. माना जा रहा है कि इन सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव खरगे की वजह से ही बढ़ा और इसीलिए उसने सत्तारूढ़ बीजेपी को यहां मात दे दी. राजनीति के जानकार ने कहा कि कर्नाटक से 9 बार विधायक रह चुके खरगे का इस इलाके में खासा प्रभाव था. हालांकि, उन्हें यहां मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद वो कांग्रेस के लिए कर्नाटक के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए. वह संसद के भी दोनों सदनों में रहे. और, उन्‍हें आगे करने से कांग्रेस को पिछड़ी जातियों का समर्थन पाने में बड़ी आसानी हो गई.


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