Karnataka Muslims Representation: कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाने जा रही है. बीजेपी को झटका देते हुए और जेडीएस के किंगमेकर की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए कांग्रेस अपने दम पर राज्य की सत्ता में काबिज हुई है. इस बार के चुनाव में पार्टी ने 224 में से 137 सीटों पर जीत दर्ज की है. लेकिन, इसी बीच एक जानकारी सामने आयी है कि इस बार के कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम प्रतिनिधित्व काफी कम रहा है. सिर्फ कांग्रेस और जेडीएस के ही मुस्लिम प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. आइये जानते हैं मुस्लिम प्रतिनिधित्व और प्रत्याशियों के बारे में.
राजनीतिक दलों में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व
कर्नाटक विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अब पिछली विधानसभा में सात से बढ़कर नौ हो गया है. ये सभी प्रत्याशी कांग्रेस से हैं. जबकि, जेडीएस की तरफ से मैदान में उतारे गए 211 उम्मीदवारों में से 23 मुस्लिम थे और उनमें से कोई भी नहीं जीता था. वहीं, बीजेपी ने किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा था.
मुस्लिम प्रत्याशी
चुने गए प्रत्याशियों में बीदर से रहीम खान, मंगलुरु से यूटी खादर, नरसिम्हाराजा से तनवीर सैत, बेलगावी उत्तर से आसिफ (राजू) सैत, शिवाजीनगर से रिजवान अरशद, चामराजपेट से बीजेड ज़मीर अहमद खान, कलाबुरागी उत्तर से कनीज़ फातिमा, रामनगर से इकबाल हुसैन और शांतिनगर से एनए हारिस है. आसिफ सैत और इकबाल हुसैन पहली बार विधानसभा में प्रवेश कर रहे हैं. इनके अलावा, बाकि सभी को फिर से निर्वाचित किया गया है.
इस बार के सभी मुस्लिम प्रत्याशी कांग्रेस के
साल 1952 से मुस्लिम विधायकों की औसत संख्या 8.5 रही है. साल 1978 में सबसे बड़ी संख्या थी, जब 16 मुस्लिम चुने गए थे. उसी वर्ष उपचुनाव में एक और प्रत्याशी निर्वाचित हुए. साल 1978 में 17 से यह संख्या बहुत कम हो गई है. पहले कांग्रेस के अलावा, जेडीएस के प्रत्याशी भी चुने जाते थे. लेकिन, इस बार सभी नौ प्रत्याशी कांग्रेस के हैं.
प्रतिनिधित्व की कमी से विकास पर प्रभाव
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि प्रतिनिधित्व की कमी समुदाय के समग्र विकास को प्रभावित कर रही है. पूर्व एमएलसी और पत्रकार खाजी अरशद अली ने बताया कि लिंगायत, वोक्कालिगा और कुरुबा जैसे अन्य समुदायों (जो जनसंख्या के समान अनुपात के हैं) ने राज्य विधानमंडल और लोकसभा में असमान रूप से उच्च प्रतिनिधित्व का आनंदपूर्ण अनुभव लिया है. अरशद अली ने गरीबी जैसी वजहों को भी गिनाया. जिसमें राजनीतिक जागरुकता की कमी, प्रबुद्ध नेतृत्व के स्थापना की कमी और सामान्य मुसलमानों के सामने आने वाली चुनौतियों से अलग रहने वाला आकांक्षी मध्यम वर्ग शामिल हैं.
उन्होंने तर्क दिया कि साल 2011 की जनगणना के अनुसार, कर्नाटक में 12.7% मुसलमान हैं. यदि उनकी जनसंख्या के अनुपात में उनका प्रतिनिधित्व किया जाता, तो राज्य विधानसभा में 26-28 मुस्लिम सदस्य होने चाहिए थे.