BJP on Karnataka Election 2023: कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी अपनी पूरी ताकत झोंक रही है. लेकिन, 31 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक के पांच जिलों पर बीजेपी का प्रदर्शन काफी हद तक निर्भर करेगा, जहां हिंदुत्व का प्रचंड बोलबाला है. हिंदुत्व कैडर वाले 5 जिलों (उत्तर कन्नड़, शिवमोग्गा, उडुपी, चिकमंगलूर और दक्षिण कन्नड़) में साल 2008 में 31 सीटों में से 19 सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी ने साल 2013 में सिर्फ 5 सीटें ही जीती थी.


साल 2018 में बीजेपी ने वापसी की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 31 में से 26 सीटें जीतीं. साल 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भले ही बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों से बीजेपी घिरी हुई हो, लेकिन उसने राज्य में गौहत्या पर बैन लगाने के लिए कानून पारित करके और धार्मिक गतिविधियों पर अंकुश लगाकर अपने हिंदुत्व वोट आधार को खुश रखने की कोशिश की है. इसके अलावा, तथाकथित लव जिहाद, धर्मांतरण और अंतर-धार्मिक विवाह मुद्दों पर भी पार्टी ने ध्यान दिया है.


कर्नाटक पशु वध रोकथाम अधिनियम
जब बीएस येदियुरप्पा ने भाजपा सरकार का नेतृत्व किया था, तब फरवरी 2020 में कर्नाटक पशु वध रोकथाम अधिनियम पारित किया गया था. यह गाय के बछड़े, बैल और भैंस के वध पर प्रतिबंध लगाता है. कानून के उल्लंघन के लिए अदालती वारंट के बिना गिरफ्तारी की जा सकती है, जिसमें अब तीन से सात साल की जेल की सजा, 50 हजार रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. यह कानून स्वयंभू गौ रक्षकों को भी संरक्षण प्रदान करता है, जो अक्सर हिंदुत्व समूहों के संरक्षण में अवैध पशु तस्करों को निशाना बनाते हैं. अभी पिछले हफ्ते ही राज्य के रामनगर क्षेत्र में मवेशियों को ले जा रहे तीन व्यक्तियों पर गोरक्षकों के एक समूह ने हमला किया, जिनमें से एक बाद में मृत पाया गया. इस घटना ने हाल के महीनों में गौहत्या कानून को निरस्त करने और पिछले कम कड़े संस्करण पर लौटने की मांग को और बल दिया है.


कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने फरवरी में विधानसभा को बताया था कि नया कानून किसानों को नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि वे अपने अनुत्पादक मवेशियों को नहीं बेच सकते हैं. सिद्धारमैया ने कहा कि सरकार का दावा है कि मवेशी वध पर प्रतिबंध से पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ हुआ है, लेकिन उसने कुछ भी नहीं किया है. कानून में 'एक छिपा हुआ एजेंडा और सांप्रदायिक एजेंडा' था.


कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता संरक्षण अधिनियम
वहीं, विपक्षी दलों और अल्पसंख्यक समूहों के विरोध के बावजूद कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता संरक्षण अधिनियम, 2022 को पिछले साल पारित किया गया था. इसमें कट्टर हिंदुत्व समूहों की दो प्रमुख मांगों (धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाना और अंतर-धार्मिक विवाहों का नियमन) को शामिल किया गया है. इस अधिनियम में कहा गया कि 'यदि कोई भी व्यक्ति गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से या शादी के द्वारा या तो सीधे या अन्यथा किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा और न ही कोई व्यक्ति धर्मांतरण के लिए उकसाएगा या षडयंत्र करेगा'.


इस कानून को लेकर सीएम बसवराज बोम्मई ने कहा था कि 'धर्म परिवर्तन समाज के लिए अच्छा नहीं है. धर्मांतरण समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को फंसाता है'. जाहिर है बीजेपी इन मुद्दों पर बात करके दक्षिण कन्नड़ के जिलों में अपनी स्थिति को और मजबूत कर रही है, ताकि विधानसभा चुनाव के परिणाम पार्टी के पक्ष में हो.


इन राज्यों की तरह है कर्नाटक कानून
कर्नाटक कानून काफी हद तक उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में इसी तरह के कानून पर आधारित है. इस कानून के तहत विवाह के लिए धर्मांतरण को कानूनी मान्यता तभी मिलेगी, जब इन्हें धर्मांतरण के 30 दिन पहले और धर्म परिवर्तन के 30 दिन बाद जिला मजिस्ट्रेट के संज्ञान में लाया जाएगा. सामान्य वर्ग के उल्लंघनकर्ताओं के लिए तीन साल से पांच साल तक की जेल और 25 हजार रुपये का जुर्माना प्रस्तावित किया गया है, जबकि नाबालिगों, महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के व्यक्तियों के लिए तीन से 10 साल की जेल और 50 हजार रुपये का जुर्माना प्रस्तावित है.