Congress Disgruntled Leaders: कर्नाटक में मई के महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सभी राजनैतिक पार्टियां जमकर तैयारी कर रही हैं. साल 2024 का लोकसभा चुनाव भी करीब एक साल दूर है. इस चुनाव के परिणाम का असर निश्चित रूप से जीतने और हारने वाली पार्टी के मनोबल पर पड़ेगा. यह लड़ाई कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है इसे महसूस करते हुए बीजेपी ने राज्य में प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए उम्मीदवारों की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण अभियान और नामांकन प्रक्रिया शुरू की है.
हालांकि, इस मामले में कांग्रेस अपने प्रतिद्वंद्वी (बीजेपी) से आगे है क्योंकि कांग्रेस ने आधी से अधिक सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है और कल (मंगलवार) दूसरी सूची जारी करने की राह पर है. वहीं, उम्मीदवारों की चयन की शुरुआत में ही घोषणा करने से कांग्रेस की अंदरूनी कलह पर कुछ असर पड़ सकता है. दक्षिणी राज्य में आने वाली चुनौतियों पर विचार करने से कांग्रेस को फायदा हो सकता है. कर्नाटक में कांग्रेस के सामने चुनौतियां कई प्रकार की हैं.
कांग्रेस में अंदरूनी कलह
किसी भी अन्य राजनीतिक ताकत की तुलना में कांग्रेस अपने उद्देश्य में ज्यादा विफल साबित हुई है. राज्य स्तर के शीर्ष कांग्रेसी नेता एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं और विद्रोह का नेतृत्व भी कर रहे हैं. कर्नाटक कांग्रेस भी इसी तरह की कहानी वाली पार्टी है. पूर्व में कई रिपोर्ट्स में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और वर्तमान राज्य प्रमुख डीके शिवकुमार के बीच आंतरिक कलह को लेकर प्रकाशित हुई हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सिद्धारमैया ने फरवरी में स्वीकार किया था कि कांग्रेस के जीतने की स्थिति में उनकी नजर राज्य के शीर्ष पद पर है. साथ ही, उन्होंने स्वीकार किया कि डीके शिवकुमार भी इसी पद के दावेदार हैं. हालांकि, अगर दोनों नेता उम्मीदवार सूची पर सहमत नहीं हो पाते हैं तो मान लिया जाएगा कि डीके शिवकुमार उसी पद के दावेदार हैं.
दूसरी सूची जारी कर सकती है कांग्रेस
कर्नाटक कांग्रेस में केवल ये ही दो शीर्ष व्यक्ति नहीं हैं जो पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं. इनके अलावा, निचले स्तर के कई नेता भी चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के नामांकन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. हालांकि, पार्टी को अभी तक कोई बड़ी हार नहीं दिखी है, लेकिन आने वाले समय में स्थिति बदल सकती है.
न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, कांग्रेस कल (मंगलवार) अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर सकती है. एक स्थिर अभियान के लिए और चुनाव के बाद भी इसके नेताओं को एक साथ रखना महत्वपूर्ण होगा. पार्टी ने साल 2019 में जेडीएस के साथ अपनी गठबंधन वाली सरकार खो दी थी, क्योंकि जेडीएस के कई विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था.
अकेले चुनाव लड़ेगी कांग्रेस
बीजेपी की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी शायद जेडीएस हो सकती है, लेकिन जेडीएस तमाम तरीकों से अपनी गणित को उलट सकती है. वहीं, कांग्रेस को लेकर पूर्व सहयोगी ने ऐलान किया है कि पार्टी इस बार अकेले ही चुनाव लड़ेगी. अब स्पष्ट रूप से दोनों बीजेपी विरोधी ताकतों से रूढ़िवादी मतदाताओं से वोट पाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. जेडीएस को वोक्कालिगा समुदाय के बीच एक मजबूत समर्थन के लिए जाना जाता है और कांग्रेस भी डीके शिवकुमार के साथ वोक्कालिगा समाज को लुभाने की कोशिश करेगी, जो कि इसी समुदाय से आते हैं.
वहीं, सिद्धारमैया ओबीसी के कोरबा जाति से हैं और दोनों ही जातियां संख्याओं में बहुत ज्यादा है, जिसे हर हाल में कांग्रेस अपने साथ जोड़े रखना चाहती है. अगर इस लड़ाई के परिणामस्वरूप वोटों का विभाजन होता है तो बीजेपी एकमात्र पार्टी है जो लाभ के लिए खड़ी होती है. जाहिर है कि कर्नाटक के लिए चुनावी दौड़ शुरू हो गई है और सभी राजनीतिक पार्टियां जोश के साथ रणनीति बना रही हैं. सत्ता विरोधी लहर, भ्रष्टाचार के आरोप, और भाजपा में आपसी कलह कांग्रेस के लिए तभी काम आ सकती है जब वह एकजुट होकर कदम आगे बढ़ा सके.