ग्वालियर: लोकसभा चुनाव का खुमार अपने चरम पर है. गांव की चौपाल हो या शहर की गलियां, हर तरफ चुनावी चर्चाएं जोर-शोर से चल रही हैं. उम्मीदों के इस महापर्व में हर बार हजारों लोग अपनी किस्तम आजमाते हैं और ज्यादातर लोगों के हिस्से में गुमनामी आती है, लेकिन कुछ परिवार ऐसे रहे हैं जिनका राजनीतिक दखल आजादी से लेकर अब तक पूरे दमखम से कायम है. ऐसा ही एक परिवार है ग्वालियर का सिंधिया राजघराना. आजादी के 70 साल बाद भी ग्वालियर के लोगों के दिल में सिंधिया राजपरिवार का जलवा बरकार है.


मध्य भारत की राजनीति का गढ़ रहा है जयविलास महल


आजादी के बाद ग्वालियर का जयविलास महल रजवाड़ों की राजनीति का एक प्रमुख केंद्र रहा है. जब देश के मध्य में स्थित अलग-अलग रियासतों को जोड़कर मध्य भारत नाम का एक राज्य बनाया गया तोग्वालियर परिवार के मुखिया जिवाजीराव इसकी धुरी थे. वैसे तो जिवाजीराव की राजनीति में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन ग्वालियर क्षेत्र में सिंधिया परिवार के प्रभाव के कारण कांग्रेस चाहती थी कि जिवाजीराव कांग्रेस में शामिल हो जाएं. खैर जिवाजी तो राजनीति से दूर रहेलेकिन उनकी पत्नी विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर 1957 में गुना से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता. यहीं से सिंधिया परिवार की भारतीय राजनीति में एंट्री होती है.



विजयाराजे- कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत तो बीजेपी पर अंत


कांग्रेस ने 1962 के आम चुनावों में राजमाता विजयाराजे को ग्वालियर से चुनावी समर में उतारा, ताकि यहां कांग्रेस मजबूत हो सके. एक बार फिर से विजयाराजे ने अपने विरोधियों को चारो खाने चित करते हुए जोरदार जीत हासिल की. हालांकि 1967 में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उन्होंने एक स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और जीत दर्ज की. मध्य प्रदेश की राजनीति में नया मोड़ तब आया जब विजयाराजे ने 1989 के आम चुनाव में बीजेपी के टिकट पर गुना लोकसभा से चुनाव लड़ा और एक लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की. इसके बाद वो आजीवन बीजेपी में हीं रहीं.



मां के उलट माधवराव ने जनसंघ से शुरू कर कांग्रेस पर खत्म किया राजनीतिक सफर


राजमाता विजयाराजे के बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने भी सियासत में एंट्री की. माधवराव ने 1971 में जनसंघ के टिकट पर गुना से लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के प्रत्याशी को डेढ़ लाख वोटों के अंतर से पटखनी दी. इसके बाद उन्होंने 1977 के आम चुनाव में ग्वालियर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत दर्ज की. 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गईजनवरी 1980 में देश में आम चुनाव का एलान हुआ. जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी के खिलाफ राजमाता विजयाराजे को रायबरेली से चुनाव लड़वाने का एलान किया. इसी वक्त माधवराव के संजय गांधी के साथ रिश्ते बेहतर हो रहे थेतो उन्होंने अपनी मां से अपना फैसला बदलने के लिए कहा. लेकिन विजयाराजे नहीं मानी और यहीं से मां बेटे के रिश्ते में दरार आ गई. 1980 तक माधवराव ने पूरी तरह से कांग्रेस का दामन थाम लिया और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर उन्होंने जीत दर्ज की. लेकिन दूसरी और विजयाराजे इंदिरा गांधी से चुनाव हार गईं.


इसी वक्त देश की राजनीति में एक और नया मोड़ आया. 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का गठन हुआ. विजयाराजे जनसंघ के खंडहर पर खड़ी की गई इस नई-नवेली पार्टी की उपाध्यक्ष बनाई गईं. यहां से मां बेटे के रिश्ते में जो कड़वाहट पैदा हुई वो आजीवन बनी रही.



वसुंधरा राजे ने मां के नक्शे कदम पर चलकर थाम बीजेपी का ही दामन


माधवराव ने भले ही अपनी मां से बगावत कर कांग्रेस का दामन थाम लिया हो. लेकिन उनकी बहन वसुंधरा राजे ने बीजेपी के साथ ही अपना भविष्य बेहतर समझा. मार्च 1953 को मुम्बई में जन्मी वसुंधरा राजे की शादी धौलपुर के जाट राजघराने में हुई. वसुंधरा राजे ने अपना पहला चुनाव 1984 में मध्य प्रदेश के भिंड लोकसभा से लड़ा. लेकिन इस वक्त सारे देश में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूती की लहर ने बड़े-बड़े सूरमाओं के डुबा दिया था. तो वसुंधरा तो इस राजनीति के महासागर की नई-नई तैराक थीं. वसुंधरा को कांग्रेस प्रत्याशी से लगभग 88 हजार वोटों से शिकस्त का सामना करना पड़ा. हालांकि वो लगतार संगठन के लिए काम करती रहीं और बीजेपी में अपने कद को ऊंचा उठाती रहीं. वसुंधरा राजे बीजेपी में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहीं और 2003 में बीजेपी की तरफ से राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं. वसुंधरा राजे अभी भी राजनीति में सक्रिय हैं. हालांकि राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के कारण अभी वो विपक्ष में हैं.



मां और बहन की तरह की यशोधरा राजे भी बीजेपी में शामिल हुईं


सिंधिया परिवार की एक और अहम सदस्य विजयाराजे की छोटी बेटी यशोधरा राजे को लेकर मीडिया में उस तरह की कभी हलचल नहीं रही जैसी सिंधिया परिवार के बाकी सदस्यों को लेकर रही है. हालांकि यशोधरा राजे की गिनती बीजेपी के दिग्गज नेताओं में की जाती है. यशोधरा राजे ने मध्य प्रदेश के शिवपुरी से 1998 और 2003 में दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. उन्हें मध्य प्रदेश सरकार में उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय जैसी अहम जिम्मेदारी भी दी गई थी.



अब हर किसी की नजर ज्योतिरादित्य सिंधिया पर टिकी हुई है


हाल फिलहाल में सिंधिया वंश के जिस चिराग पर हर किसी की नजर है वो हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया. ज्योतिरादित्य की गिनती मध्य प्रदेश के कद्दावर कांग्रेसी नेताओं में की जाती है. वो 2002 के बाद से कांग्रेस के लिए गुना लोकसभा से लगातार विजयश्री प्राप्त करते रहे हैं. 2018 के मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मख्यमंत्री पद के लिए उनका नाम जोर-शोर से उछाला गया था. हालांकि पार्टी ने कमलनाथ के अनुभव को उनके युवा जोश पर ज्यादा तरजीह दी थी. लेकिन राजनीति के जानकार ज्योतिरादित्य को लंबी रेस का घोड़ा मानते हैं.



सिंधिया परिवार की अगली पीढ़ी भी राजनीति में आने के लिए तैयार है. ज्योतिरादित्य सिंधिया, वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे के बच्चे अपने माता-पिता की राजनीति को नजदीक से देख रहे हैं.


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