नई दिल्ली: इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने आज इनकार कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने राजनीतिक दलों को इस माध्यम से मिलने वाले चंदे की पूरी जानकारी बंद लिफाफे में चुनाव आयोग के पास 30 मई तक सौंपने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस विषय पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है. इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने याचिका दायर की थी.


क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड? 


इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक माध्यम है. यह ब्याज मुक्त होता है. इसे भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के द्वारा जारी किया जाता है जिसे कोई भी संस्था या भारतीय नागरिक खरीद सकते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड को जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीने में खरीदा जा सकता है. बॉन्ड खरीदे जाने के 15 दिन तक मान्य रहता है. इसमें राजनीतिक दल को यह बताने की जरूरत नहीं है कि उन्हें किस व्यक्ति या संस्था ने चंदा दिया है.


इलेक्टोरल बॉन्ड लाने के पीछे सरकार ने ये तर्क दिया था कि इसके माध्यम से राजनीतिक दलों को मिलने वाले पैसे में पारदर्शिता आएगी. इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान बैंक के पास रहती है. हालांकि, चंदा देने वाले व्यक्ति की पहचान सार्वजनिक नहीं की जाती है और इसी बिंदू का सबसे अधिक विरोध किया जा रहा है.


कितने मूल्य का होता है इलेक्टोरल बॉन्ड-
चुनावी बॉन्ड 1,000, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपए के मूल्य में उपलब्ध होते हैं. चुनाव आयोग में रजिस्टर ऐसी पार्टी जिसने पिछले चुनाव में कुल वोटों का कम से कम 1% वोट हासिल किया है उसे बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिया जा सकता है.


वहीं, इलेक्टोरल बॉन्ड की आलोचना करने वाले लोगों का कहना है कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता की कमी आई है. इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से फंडिंग की कोई सीमा भी नहीं है इस बात की भी लोग आलोचना कर रहे हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड का सबसे बड़ा फायदा सत्ता पार्टी बीजेपी को ही हुआ है. इसके माध्यम से जितने रुपए की फंडिंग राजनीतिक दलों को हुई है उसमें बीजेपी की हिस्सेदारी 94.5 फीसदी है.


पहले क्या था नियम-
साल 2017 से पहले के नियम के मुताबिक राजनीतिक दलों को 20 हजार से कम की राशि चंदे के तौर पर मिलने पर उन्हें इसका स्रोत बताने की जरुरत नहीं थी. इस नियम का लाभ उठाकर राजनीतिक दल 20 हजार से अधिक के चंदे की राशि के बारे में जानकारी छुपा लेते थे. इस कारण देश में काला धन पैदा होता था.


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