Kunwar Danish Ali: लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की धुरी बनी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपना खोया वोट बैंक सहेजने में जुटी है. पिछले दिनों बीएसपी सांसद दानिश अली के खिलाफ बीजेपी के सांसद रमेश बिधूड़ी की ओर से अपशब्दों के इस्तेमाल के बाद से कांग्रेस के नेता उनसे मिलने पहुंच रहे हैं. दरअसल इसके जरिए कांग्रेस एक तीर से कई निशाने साधने में लगी है.
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि कांग्रेस इन दिनों अपने खोए हुए वोटों को पाने की चाहत में सारी कवायद कर रही है. इसके साथ ही विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा बनी सपा पर सीटों के बंटवारे को लेकर दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है.
कभी कांग्रेस के पाले में होता था मुस्लिम वोट
एक दौर में मुस्लिम वोट कांग्रेस के पाले में हुआ करता था, लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस कमजोर होती गई उससे यह वोट बैंक भी खिसकता गया. इस वोट बैंक पर कभी बसपा तो कभी सपा का कब्जा होता चला गया. इसी कारण दानिश अली के बहाने ही सही कांग्रेस ने संदेश देने का प्रयास किया है.
दानिश के साथ सिर्फ कांग्रेस ही हुई खड़ी
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हमारी पार्टी इस बार नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान को आगे बढ़ाने में लगी है. इसी कारण जब संसद में दानिश अली पर भाजपा के सदस्य की ओर से आपत्तिजनक टिप्पणी की तो हमारे वरिष्ठ नेता राहुल गांधी वहां पहुंचे और संदेश दिया कि वह हर उस तपके के साथ हैं, जो भाजपा की ओर से सताया जा रहा है.
भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी गरीब और कम आय वाले लोगों से मिलते भी रहे हैं. चाहे वह ट्रक वाला हो, या कारपेंटर, सभी के दुख दर्द को वह नजदीक से समझ रहे हैं. मुस्लिम भाई कांग्रेस के साथ हमेशा खड़ा रहा है. कांग्रेस ने इन लोगों को बहुत महत्व दिया है. क्षेत्रीय दलों ने महज इन्हें वोट बैंक समझकर इस्तेमाल किया है. अगर वह इतने इनके हमदर्द होते तो दानिश के साथ खड़े होते, लेकिन वहां भी कांग्रेस ही साथ नजर आ रही है.
मायावती को पसंद नहीं आ रहा दानिश का कांग्रेस से मेल
उधर कांग्रेस पार्टी के नेता मानकर चल रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम एकजुट होकर कांग्रेस के पाले में आएंगे. दानिश अली को बसपा ने मुस्लिम बहुल सीट अमरोहा से चुनाव मैदान में उतारा था. सूत्र बताते हैं कि दानिश के कांग्रेस से इतना मेल मिलाप मायावती को पसंद नही आ रहा. इसी कारण वो इन्हें मिलने का भी समय नहीं दे रही हैं. जब घटना हुई थी उस दौरान उन्होंने दानिश के पक्ष में एक पोस्ट कर रस्म अदायगी कर दी थी.
यह भी माना जा रहा है कि दानिश अली इस बार बसपा का दामन छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम सकते हैं. कांग्रेस ऐसे ही अन्य मुस्लिम नेताओं को भी भीतरखाने अपने पाले में लाने के प्रयास कर रही है.
बसपा ने नहीं की इस मामले की कठोर निंदा
कई दशकों से यूपी की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल का कहना है कि बीच में बसपा मुखिया मायावती भाजपा पर कुछ नर्म हुई थीं, लेकिन उस समय कुंवर दानिश अली ने अमरोहा में ‘भारत माता की जय‘ के नारे पर आपत्ति जताई थी. उन्होंने जमकर हंगामा किया था. बसपा भले ही भाजपा के प्रति नरम रही हो लेकिन दानिश उससे अपने को अलग रखना चाहते हैं. ऐसा लगता है कि बसपा में होने के पहले वह अपने धर्म का विचार रखते हैं.
बीच में खबरें आई थी सपा को नियंत्रित रखने के लिए बसपा को इंडिया गठबंधन में लेने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन तब भी दोनो दलों की ओर से कोई खंडन नहीं आया. जब संसद में रमेश विधूड़ी ने दानिश अली पर आपत्तिजनक टिप्पणी की, तब यह बात सामने आई कि दानिश अली पर टिप्पणी बसपा के कारण नहीं, बल्कि मुस्लिम होने के कारण हुई है. मायावती ने उतनी कठोर निंदा नहीं की, जितनी होनी चाहिए.
दानिश में संभावना तलाश रही है कांग्रेस
रतन मणि लाल का कहना है कि दानिश अली अब बसपा में असहज महसूस कर रहे हैं. बसपा में अब फिलहाल दलित और पिछड़े को लेकर जो रणनीति बन रहीं है उसमे मुस्लिम को उतनी बड़ी भूमिका नहीं मिलेगी, जितनी किसी जमाने में हुआ करता था. कांग्रेस और बसपा में जो पर्दे के पीछे बातें हो रही हैं, उसी में दानिश अपनी संभावना तलाश रहे हैं. कांग्रेस मुस्लिम समाज को अपने पाले में लाने के लिए दानिश के पक्ष में देख रही है. सपा को मुस्लिम को उतनी महत्ता भी नहीं मिल रही है. इस कारण कांग्रेस अपनी संभावना देख रही है.
कांग्रेस को लगता है मुस्लिम वोट उसके साथ
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि जब से इंडिया गठबंधन बना है तब से कांग्रेस विभिन्न वर्गों से मिल रही है. खासकर कांग्रेस नेता अपने खोए हुए वोटरों से मुलाकात कर रहे हैं, चाहे दलित हो या मुस्लिम. दानिश अली के साथ जो प्रकरण हुआ है, कांग्रेस को लगता है कि अगर वह दानिश के साथ खड़े रहते हैं तो मुस्लिम वर्ग में एक संदेश जाएगा कि कांग्रेस जो है मुस्लिम के हक के लिए लड़ती है, चाहे वह जिस दल में हो. आगे लोकसभा का चुनाव होना है.
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