Lok Sabha Election 2019: देश के दिग्गज नेताओं में से एक और पूर्व रेल मंत्री लालू यादव चार दशक बाद पहली बार चुनावी मैदान में नज़र नहीं आ रहे हैं. जिस तरह से इस चुनाव में तेज प्रताप और तेजस्वी की लड़ाई सबके सामने आई है उससे साफ जाहिर होता है कि लालू के परिवार को उनकी कमी कितनी खल रही है. वहीं दशकों तक बिहार की सियासत तय करने वाले लालू यादव को अपनी उम्र का 70वां पड़ाव जेल में गुजराना पड़ रहा है. एबीपी न्यूज की खास सियासी घराना सीरीज में आज हम आपके लिए लालू यादव के परिवार की कहानी लेकर आए हैं.


इमरजेंसी के बाद बने सांसद


लालू यादव का जन्म आजादी की लड़ाई के ठीक बाद उस वक्त हुआ था, जब देश में समाजवादी आंदोलन की नींव पड़ रही थी. बिहार के छोटे से परिवार में जन्म लेने के बाद लालू यादव ने पटना के बी एन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में एमए की डिग्री हासिल की. साल 1973 में लालू प्रसाद यादव राबड़ी देवी के साथ शादी के बंधन में बंध गए थे.



बिहार में जब जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन हो रहा था, तो लालू यादव ने सक्रिय छात्र नेता के तौर पर उसमें भाग लेकर अपनी राजनीति का आगाज किया. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में लालू यादव को जनता पार्टी से टिकट मिला और वह 1977 में चुनाव जीत कर पहली बार संसद पहुचे. सांसद बनने के बाद लालू यादव का कद राजनीति में बड़ा होने लगा और वह साल 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए.


आडवाणी का रोका रथ


लेकिन लालू यादव की जिंदगी में असल मोड़ तब आया जब बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण अडवाणी अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के इरादे से रथ यात्रा पर निकले थे. उनका रथ बिहार पहुंच गया था, सीएम लालू यादव उनका रथ रूकवाकर सीधे राष्ट्रीय राजनीति में चर्चा में आ गए.


लाल कृष्ण आड़वाणी का विजय रथ रोककर लालू यादव ने अल्पसंख्यकों के बीच अपनी खास जगह बना ली. इसके बाद लालू यादव बिहार में ना सिर्फ यादवों के बल्कि मुसलमानों के भी नेता बन गए. यादव मुस्लिम फैक्टर की बदौलत ही लालू यादव ने राज्य की सियासत में 15 साल तक राज किया.



1995 में बिहार के विधानसभा चुनाव में लालू यादव को भारी बहुमत से जीत मिली. लेकिन 1997 में लालू को बड़ा झटका तब लगा, जब उनके ऊपर चारा घोटाले के गंभीर आरोप लगने लगे. 1997 में सीबीआई ने उनके खिलाफ चारा घोटाले में आरोपपत्र दाखिल कर दिया और जबरदस्त दबाव के बाद लालू को सीएम के पद से हटना पड़ा. लालू यादव ने सीएम की कुर्सी से तो इस्तीफा दे दिया, पर सत्ता को अपने से दूर जाने देना उन्हें मंजूर नहीं था. लालू यादव ने चौंकाने वाला कदम उठाते हुए अपनी पत्नी राबड़ी देवी को राज्य की मुख्यमंत्री बना दिया. इसी वक्त लालू यादव ने केंद्र में बनी तीसरे मोर्चे की सरकार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.


राबड़ी को बनाया मुख्यमंत्री


1997 में ही लालू यादव ने जनता दल से अलग होते हुए राष्ट्रीय जनता दल बना लिया. इसके बाद 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में लालू की पार्टी को बड़ी कामयाबी मिली और उसके 18 सांसद जीतकर संसद पहुंचने में कामयाब हुए. लेकिन 1999 में लालू यादव की सियासत को बड़ा झटका लगा. लालू यादव ने 1999 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से हाथ मिलाया था, पर उनकी 10 सीटें कम हो गईं. इसके बाद 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में लालू यादव एक बार फिर बिहार की सत्ता को बचाए रखने में कामयाब हुए.


2004 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव को बड़ी कामयाबी मिली. लालू प्रसाद यादव की पार्टी के 24 सांसद जीतने में कामयाब हुए और यूपीए 1 में लालू यादव सबसे बड़े सहयोगी बनकर सामने आए. मनमोहन सरकार में लालू यादव को रेलमंत्री का पद दिया गया. पर कुछ वक्त बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में लालू की पार्टी को सबसे ज्यादा सीट तो मिली, लेकिन बहुमत नहीं होने के चलते वह सरकार नहीं बना पाए. राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. 6 महीने बाद दोबारा हुए चुनाव में राज्य की सत्ता लालू के हाथ से निकल गई. नीतीश कुमार बीजेपी के सहयोग से सीएम बनने में कामयाब हुए.


2009 में मिली करारी हार


2009 में लालू यादव को कांग्रेस से दूरी बनाकर पासवान से दोस्ती बढ़ाना भारी पड़ा. 2004 में 24 सांसद वाली पार्टी बनी आरजेडी सिर्फ 4 सांसद तक सिमट कर रह गई. रामविलास पासवान खुद अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं हुए. 2010 में एक और बड़ा झटका लालू यादव का इंतजार कर रहा था. 2010 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी फिर से चुनाव हार गई.



2013 में लालू यादव को चारा घोटाले के एक मामले में सजा मिलने की वजह से सांसद के तौर पर इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद लालू प्रसाद यादव के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लग गया. इधर नरेंद्र मोदी को पीएम का उम्मीदवार घोषित करने पर नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होने का फैसला किया. नीतीश के अलग होने के बाद लालू यादव ने नीतीश की सरकार को बाहर से समर्थन दिया. हालांकि 2014 का लोकसभा चुनाव दोनों ने अलग अलग ही लड़ा. इस चुनाव में लालू यादव की बेटी मीसा भारती की राजनीति में एंट्री हुई. मीसा पाटलीपुत्र से चुनाव नहीं जीत पाई. राबड़ी देवी को भी सारण सीट से हार का सामना करना पड़ा. लालू की पार्टी के 4 सांसद चुनाव जीते, वहीं नीतीश की पार्टी 2 सीटों पर सिमट गई.


नीतीश के साथ मिलाया हाथ


मोदी लहर में हाशिए पर आने के बाद लालू यादव और नीतीश कुमार ने 20 साल की दुश्मनी खत्म करते हुए हाथ मिलाने का फैसला किया. 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने अपने दोनों बेटों तेजप्रताप और तेजस्वी को राजनीति में लॉन्च कर दिया. नीतीश-लालू की दोस्ती को बिहार की जनता ने भारी बहुमत से जीत दिला दी. नीतीश की सरकार में लालू यादव ने तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाई, तो तेजप्रताप को स्वास्थ्य मंत्री का पद मिला.



2016 का अंत होते होते लालू और नीतीश के रिश्ते में फिर से खटास आनी शुरू हो गई. लालू के परिवार पर एक पुराने मामले में भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे. 2017 में नीतीश कुमार ने लालू के साथ गठबंधन तोड़ने का एलान किया और फिर से बीजेपी का हाथ थाम लिया. नीतीश का अलग होना लालू के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं था. रातों रात लालू यादव एक बार फिर राज्य की सत्ता से बाहर हो गए और उनकी पार्टी विपक्ष की भूमिका में आ गई.


परिवार की फूट आई सामने


इसके बाद लालू यादव पर पुराने चारा घोटाले में सजा मिलने का एलान होने लगा. लालू यादव जेल में चले गए. लालू के जेल में जाने के बाद दोनों बेटों में विरासत की लड़ाई शुरू हो गई. 2018 में लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप की शादी हुई, पर कुछ वक्त बाद ही तेजप्रताप ने तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दे दी. ये मामला अब तक कोर्ट में पेंडिंग है.



2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त लालू यादव जेल में ही बंद हैं. टिकट बंटवारे से नाराज होकर तेजप्रताप यादव कुछ सीटों पर आरजेडी के ही उम्मीदवारों का विरोध कर रहे हैं. वहीं लालू की बेटी मीसा भारती एक बार फिर पाटलीपुत्र से किस्मत आजमा रही हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले 2019 के नतीजे लालू यादव के परिवार की विरासत तय करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.