गोरखपुरः गोरखनाथ मंदिर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मानी जाने वाली सीट पर बीजेपी ने अभिनेता रविकिशन शुक्ल को उम्मीदवार बनाया है. लेकिन, सीएम योगी की सीट पर उनके जीत की राहें इतनी आसान नहीं है. इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए उन्हें हर वर्ग के साथ पार्टी के स्थानीय पदाधिकारी, कार्यकर्ता और आमजन को भी प्रभावित करना होगा. क्योंकि ये वही सीट है, जहां से फिल्म अभिनेता मनोज तिवारी को योगी आदित्यनाथ के हाथों शिकस्त खानी पड़ी थी. लेकिन, इस बार फर्क बड़ा है. मनोज तिवारी सपा के टिकट पर बीजेपी के सिटिंग एमपी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़े थे और इस बार रविकिशन उसी बीजेपी से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट पर बीजेपी के ही टिकट पर रण में बिगुल फूंकने को तैयार हैं.
2009 में ऐसा रहा था वोटों का समीकरण
साल 2009 के चुनाव में मनोज तिवारी को सपा ने सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर सदर लोकसभा सीट पर चुनाव मैदान में उतारा था. लेकिन, उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. साल 2009 में सिटिंग एमपी योगी आदित्यनाथ ने 4,03,156 वोट के साथ जीत हासिल की थी. वहीं बसपा के विनय शंकर तिवारी 1,82,885 वोट के साथ दूसरे और सपा के मनोज तिवारी को 83,059 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा था. चुनाव और काउंटिंग के दौरान भी उन्होंने योगी आदित्यनाथ का पैर छूकर आशीर्वाद लिया था. लेकिन, इसे दूसरे मायने में नहीं देखा जा सकता है. प्रतिद्वंदी होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ के संत होने के नाते उन्होंने सम्मान में पैर छुए थे. वे गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी भी रहे हैं. लेकिन, इस बार के चुनाव के जोड़-तोड़ में शीर्ष नेतृत्व को कई बार फैसला बदलना पड़ा.
2017 के विधानसभा चुनाव के बाद हुए उप-चुनाव में बीजेपी के हाथ से निकल गई थी गोरखपुर सीट
साल 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद गोरखपुर से लगातार पांच बार जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बन गए. उसके बाद उनकी सीट पर हुए उप-चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. सपा प्रत्याशी और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने बीजेपी प्रत्याशी उपेन्द्र दत्त शुक्ल को साढे बाइस हजार वोटों से शिकस्त देकर सांसद बने. इसके बाद से ही भाजपा शीर्ष नेतृत्व मंथन करने में लगा रहा. कई नाम सामने आए. लेकिन, आखिरकार सवर्ण वोटरों को ध्यान में रखते हुए रविकिशन शुक्ल को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया.
बंट सकते हैं वोट
लेकिन, इस सीट पर टिकट पाने के बाद रविकिशन की राह आसान नहीं दिख रही हैं. क्योंकि उनके पहले सपा से बीजेपी में आ चुके गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद का नाम सबसे ऊपर चल रहा था. प्रवीण निषाद को गोरखपुर से टिकट नहीं मिलने के कारण उनके अपने लोग नाराज हैं. वहीं सपा से बीजेपी में आए अमरेन्द्र निषाद भी टिकट की आस लगाए बैठे थे. उनके लोग भी बीजेपी से नाराज ही हैं. उनके वोटे सपा उम्मीदवार रामभुआल निषाद के साथ जा सकते हैं. ऐसे में बाहरी ब्राह्मण को टिकट देने से सवर्ण ब्राह्मण और राजपूत पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं में अंदर ही अंदर खासी नाराजगी दिखाई देना स्वाभाविक है. इसका असर वोटरों पर भी पड़ सकता है. ऐसे में बड़ी बात ये भी है कि हिन्दू युवा वाहिनी भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष और योगी की हियुवा के बागी सुनील सिंह भी प्रवीण तोगड़या की पार्टी ‘हिन्दुस्थान निर्माण दल’ के टिकट पर गोरखपुर से चुनाव लड़ रहे हैं.
भ्रम की स्थिति में दिख रहा है अंदरूनी खेमा
ऐसे में ये माना जा रहा है कि बीजेपी में शहर के बाहरी व्यक्ति को टिकट दिए जाने का असर वोट पर पड़ सकता है. सवर्णों का अंदरूनी खेमा भ्रम की स्थिति में दिख रहा है. ऐसे में बीजेपी के विश्वस्नीय वोटर तो डिगने वाले नहीं है. लेकिन, काफी प्रवीण तोगडि़या की पार्टी हिन्दुस्थान निर्माण दल के उम्मीदवार सुनील सिंह के साथ भी जा सकते हैं. ऐसा हुआ तो रविकिशन के सामने काफी मुश्किल खड़ी हो सकती है. क्योंकि सुनील सिंह सीएम योगी आदित्यनाथ के खासमखास रहे हैं. वे ये भी कहते चले आ रहे हैं कि उनका आशीर्वाद सदैव उनके साथ है. वहीं रविकिशन को बीजेपी से टिकट मिलने के बाद उनका कहना है कि सात महीने के वनवास के बाद उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से आशीर्वाद मिल ही गया है.
सपा प्रत्याशी रामभुआल निषाद से रविकिशन को मिल सकती है कड़ी टक्कर
वहीं सपा प्रत्याशी रामभुआल निषाद से भी रविकिशन को कड़ी टक्कर मिलेगी. क्योंकि उपचुनाव में भले ही निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद ने सपा के टिकट पर जीत हासिल की थी. लेकिन, सच्चाई यही है कि सपा-बसपा गठबंधन के वोट उनकी जीत के पीछे बड़ा फैक्टर रहा है. ऐसे में सपा-बसपा के वोट को इग्नोर नहीं किया जा सकता है. सीएम योगी की सीट पर हार-जीत शुरू से ही प्रतिष्ठा का विषय है. ऐसे में बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने रविकिशन को मैदान में उतारकर जो दांव खेला है, वो कितना सही पड़ता है, ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा.
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