विरासत: अब्दुल्ला परिवार की तीन पीढ़ियां श्रीनगर सीट जीतकर पहुंची हैं संसद, क्या इस बार फिर बचा पाएंगे 'सियासी विरासत' ?
लोकसभा चुनाव में कई राजनीतिक परिवार के लिए राजनीतिक विरासत को संभालना भी एक बड़ी चुनौती है. ऐसा ही एक परिवार है जम्मू-कश्मीर में नैशनल कॉन्फ्रेंस का अब्दुल्ला परिवार. इस परिवार की तीन पीढ़ियों ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अपनी दखलअंदाजी रखी है. इस बार भी फारुक अब्दुल्ला श्रीनगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के सियासत में फारुक अब्दुल्ला का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. फारुक अब्दुल्ला सातवीं लोकसभा (1980-82) में चुनकर पहली बार संसद की सीढ़ियों पर अपना कदम रखा और तब से सियासी सफर जारी है. शेख अब्दुल्ला, फारुख अब्दुल्ला के पिता हैं और उन्हें 'कश्मीर का शेर' के उपाधी से नवाजा गया था. कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला की राजनितिक विरासत को संभाल रहे फारुख अब्दुल्ला इस बार श्रीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला पीडीपी के आगा सैयद मोहसिन, पीपुल्स कांफ्रेंस के इरफान अंसारी और बीजेपी के खालिद जहांगीर से है. डॉ फारुख अब्दुल्ला का सियासी सफर काफी लंबा रहा है. राज्य के मुख्यमंत्री के अलावा वह केंद्र सरकार में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री रह चुके हैं.
श्रीनगर सीट अब्दुल्ला परिवार का गढ़
जीवन के 82 बसंत देख चुके डॉ. फारूक अब्दुल्ला इस सीट से चौथी बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं. कहा जा रहा कि वह अंतिम बार संसदीय चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए इस बार का चुनाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इस सीट पर केवल तीन बार नेशनल कांफ्रेंस के लीडर चुनाव हारे हैं. अब्दुल्ला परिवार के सदस्य बेगम अकबर जहां (फारूक अब्दुल्ला की मां) ने साल 1977 में पहली बार सीट जीती थी 1971, 1996 और साल 2014 के चुनाव में गैर नेकां उम्मीदवार यहां से जीता था. साल 1980 में डॉ. फारूक अब्दुल्ला यहां से सांसद बने. उमर अब्दुल्ला ने लगातार तीन बार साल 1998, 1999 और साल 2004 के संसदीय चुनावों में जीते हैं. साल 2009 में डॉ. फारूक अब्दुल्ला दोबारा यहां से चुनाव जीते थे.
2014 के आम चुनाव के दौरान फारूक अब्दुल्ला को पीडीपी के तारिक हमीद कर्रा ने करारी शिकस्त दी थी. 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद भड़की हिंसा के दौरान लोगों पर हुए कथित अत्याचार के विरोध में हामिद कर्रा ने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद साल 2017 में हुए उपचुनाव में फारुख इस सीट से जीते और अभी सांसद हैं.
70 सालों के दौरान कश्मीर की सियासत में आए बदलाव के बीच अब्दुल्ला परिवार के लिए यह किला बचाना चुनौती से कम नहीं. बीते संसदीय चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के तारिक हमीद करा ने डॉ. फारूक को हराकर साफ कर दिया कि रियासत की सियासत में नेकां का एकछत्र राज अतीत की बात हो चला है. ऐसे में संभवत: अपना आखिरी लोकसभा चुनाव लड़ रहे फारुक अब्दुल्ला के लिए यह किला बचाना बहुत जरूरी है.
फारुक अब्दुल्ला का राजनीतिक करियर1981 में नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष बने. 1982 में फारुक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर विघानसभा के लिए चुने गए और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए. इसके बाद 1983-1987 तक वह राज्य के मुख्यमंत्री रहे. 1987-90 तक फिर वह फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1996 में चौथी बार विधानसभा चुनाव जीतकर राज्य के मुख्यमंत्री बने. 2002 में फारुक अब्दुल्ला पहली बार राज्य सभा के सदस्य बने. 2008 में पांचवीं बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा के सदस्य बने. इसके बाद 2009 में दूसरी बार राज्यसभा सदस्य के रुप में चुने गए. 2009 में दूसरी बार लोकसभा सदस्य बने. 2009 यानी यूपीए वन के कार्यकाल के दौरान नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग के केंद्रीय मंत्री बने.
अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी उमर अब्दुल्ला
फारुक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला अब पार्टी और पिता की विरासत की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. फारुक अब्दुल्ला की बढ़ती उम्र की वजह से अब पार्टी की ज्यादातर जिम्मेदारी उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ही संभाल रहे हैं. 2002 में उमर अब्दुल्ला ने नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष के रूप में अपने पिता फारूक अब्दुल्ला की जगह ले ली.
अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य उमर अब्दुल्ला के नाम कई रिकॉर्ड हैं. उमर के नाम जम्मू-कश्मीर के अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री होने का रिकॉर्ड है. इसके अलावा उमर लगातार तीन बार लोकसभा का चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बना चुके हैं. इस बार उमर लोकसभा चुनाव में नहीं लड़ रहे हैं. उनकी नजर कुछ ही समय बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर है, जिसमें उमर अपनी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं. पिता फारूक अब्दुल्ला भी साफ कर चुके हैं कि उमर अब्दुल्ला ही सीएम कैंडिडेट होंगे.
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