'19 के खिलाड़ी': न बहुमत, न किसी नाम पर सहमति तो विपक्षी दलों में मनमोहन हो सकते हैं सबकी 'पसंद'
अगर इस लोकसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिलती है और न ही किसी नाम पर सहमति बनती है तो विपक्षी दलों में मनमोहन सिंह पीएम पद के लिए सबकी 'पसंद' हो सकते हैं.
नई दिल्ली: आमतौर पर कम बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इन दिनों केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर हमला बोल रहे हैं. हाल में ही उन्होंने पीएम मोदी और बीजेपी पर निशाना साधते हुए कई ऐसे बयान दिए जिसने एक बार फिर उन्हें सक्रिय राजनीति के परिदृश्य में ला दिया है. मनमोहन सिंह ने हाल में ही पीएम मोदी पर हमला करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए क्योंकि पांच साल का उनका कार्यकाल भारत के युवाओं, किसानों, व्यापारियों और हर लोकतांत्रिक संस्था के लिए सर्वाधिक त्रासदीपूर्ण और विनाशकारी रहा है.
पूर्व प्रधानमंत्री का वर्तमान के पीएम पर इस तरह से हमला करना कई बातों की तरफ इशारा करता है. दरअसल इस बार के लोकसभा चुनाव में कयास लगाए जा रहे हैं कि 23 मई के बाद अगर ऐसी स्थिति बनती है कि किसी को बहुमत न मिले और विपक्षी पार्टियां गठबंधन के जरिए सरकार बनाए तो ऐसी स्थिति में मनमोहन सिंह एक ऐसे नाम हैं जो सभी राजनीतिक दलों को प्रधानमंत्री पद के लिए मंजूर हो सकते हैं. दरअसल 2004 से 2009 और 2009 से 2014 तक जब वह देश के प्रधानमंत्री थे तो उनके कार्यकाल में कई घोटालों के आरोप मंत्रियों और यूपीए सरकार पर लगे लेकिन मनमोहन सिंह की राजनीतिक और व्यक्तिगत छवी आजतक बिल्कुल साफ है.
यही साफ छवी राजनीतिक दलों को सहमति बनाने के लिए तैयार कर सकता है. अगर विपक्ष की बड़ी पार्टियों में राहुल गांधी, मायावती, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी जैसे बड़े नामों पर सहमति नहीं बन पाती है तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस मनमोहन सिंह के नाम को आगे रख सकती है. कांग्रेस भी इस फॉर्मुले के बारे में सोच रही होगी तभी स्वभाव से कम बोलने वाले मनमोहन सिंह आजकल राफेल से लेकर देश की अर्थव्यस्था जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार को घेर रहे हैं. इस तरह वह साल 2019 के बड़े खिलाड़ी बन सकते हैं.
मनमोहन सिंह की शिक्षा
मनमोहन सिंह शिक्षा के मामले में भी कई नोताओं पर भारी पड़ते हैं. 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान) के एक गांव में पैदा हुए सिंह ने 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मेट्रिक की शिक्षा पास की और आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से हासिल की. 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की. इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नूफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी. फिल किया. उन्हें जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया था. 1971 में डॉ. सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार व 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे. पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में डॉ. सिंह ने शिक्षक के रूप में कार्य किया, जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता को दिखाता है.
राजनीतिक जीवन
1991 से 1996 तक वह भारत के वित्तमंत्री के रूप में काम किया, जो भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय के रूप में याद किया जाता है. उन्होंने आर्थिक सुधारों को लागू करने की उनकी भूमिका की सभी ने सराहना की थी. मनमोहन सिंह ने राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में 1993 में साइप्रस में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का आपने नेतृत्व किया था. 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया. इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे.
पहली बार प्रधानमंत्री के पद पर मनमोहन सिंह साल 2004 में बैठे. दरअसल जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे तब भी स्थिति लगभग आज जैसी ही थी. यूपीए की सरकार बनी थी लेकिन विपक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने को लेकर लगातार विरोध कर रहा था. ऐसी स्थिति में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को पीएम बनाया था और सभी दलों की इसमें सहमति थी. मनमोहन सिंह 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे.