नई दिल्ली: अगले लोक सभा चुनाव के लिए राहुल गांधी ने विपक्ष को एकजुट करने का मन बनाया है. लेकिन यूपी में उनका साथ देने को कोई तैयार नहीं है. मायावती अब भी एकला चलो की जिद पर है. जबकि अखिलेश यादव भी कांग्रेस से दोस्ती करने के मूड में नहीं हैं. ऐसे हालात में तो देश के सबसे बड़े राज्य में बीजेपी के खिलाफ साझा विपक्ष एक सपने जैसा ही लग रहा है.


एक पुरानी कहावत है दिल्ली की कुर्सी का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है. कहने का मतलब है कि जो पार्टी यहां अच्छा करती है केंद्र में उसकी ही सरकार बनती है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी ये पता है. इसीलिए वे अब बीजेपी के खिलाफ एकजुट विपक्ष चाहते हैं. लेकिन यूपी में तो ऐसा दूर की कौड़ी ही लग रहा है. सबसे पहले बात समाजवादी पार्टी की. कांग्रेस से चुनावी गठबंधन करने को अखिलेश यादव तैयार नहीं हैं. कुछ ही दिनों पहले समाजवादी पार्टी की एक मीटिंग हुई थी. जिसमें अखिलेश यादव ने कहा कि हम सब मिल कर पार्टी मजबूत करें. नए लोगों को इससे जोड़ें. इसी मीटिंग में अखिलेश ने कहा था कि कांग्रेस बड़े दिल वाले लोगों की पार्टी नहीं है.


पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था. कांग्रेस सात विधायकों पर सिमट गयी. समाजवादी पार्टी के 47 नेता ही चुनाव जीत पाए. चुनाव प्रचार में अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने साथ साथ रोड शो किया था. लेकिन अब दोनों साथ साथ चलने को तैयार नहीं है. 2014 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को दो और समाजवादी पार्टी को पांच सीटें मिली थीं. लेकिन मायावती की पार्टी बीएसपी तो अपना खाता तक नहीं खोल पायी थी. विधान सभा चुनाव में भी पार्टी को मुंह की खानी पडी. दलित और मुस्लिम समीकरण भी काम नहीं आया और पार्टी 19 विधायकों पर सिमट गई. बीएसपी के एक सांसद बोले " बहनजी अकेले चुनाव लड़ने के मूड में हैं और हमारी तैयारी भी वैसी ही है".



आपको बता दें कि बीएसपी और कांग्रेस एक बार गठबंधन में चुनाव भी लड़ चुकी है. ये बात उस दौर की है जब मंदिर आंदोलन अपने उफान पर था. 2003 में समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने मिल कर विधान सभा का चुनाव लड़ा. उन दिनों नारे लगा करते थे - मिले मुलायम कांशीराम और हवा में उड़ गए जय श्री राम. दोनों पार्टियों की मिली जुली सरकार बनी. लेकिन अब दोनों पार्टियों को एक दूसरे का साथ तक मंजूर नहीं है.


कहते है राजनीति में कोई किसी का ना तो स्थायी दोस्त होता है और ना ही दुश्मन. इसीलिए अगर यूपी में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और आरएलडी एक साथ हो जाएं तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए. वैसे ये पार्टियां कभी ना कभी एक दूसरे के साथ मिल कर चुनाव लड़ चुकी हैं. इन दिनों मंच से राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक एक दुसरे के खिलाफ बोलने से बच रहे हैं. मायावती भी उसी राह पर हैं. मुलायम सिंह की राजनीति से अलग अखिलेश अब मायावती को बुआ कह कर बुलाते हैं. साथ भले हो या ना हो लेकिन सब गुंजाइश जरूर बचाये रखना चाहते हैं.